ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:- ग्रामीण विकास ट्रस्ट- कृषि विज्ञान केंद्र, गोड्डा के सभागार में आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत "विश्व दलहन दिवस" कार्यक्रम पर वेबिनार आयोजित किया गया| विश्व दलहन दिवस की थीम "आत्मनिर्भर भारत- आयात प्रतिस्थापन के लिए संभावित दालों का उपयोग करना" है| वरीय वैज्ञानिक-सह-प्रधान डाॅ. रविशंकर ने प्रगतिशील किसानों को बताया कि विश्व दलहन दिवस वैश्विक आबादी के वंचित वर्गों के बीच खाद्यान्न की पहुंच बढ़ाने की कोशिश है| संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2013 में दालों के महत्व को मान्यता देने के बाद वर्ष 2016 को अन्तर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष के रूप में अपनाया था| 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के रूप में घोषित किया|साथ ही, दलहन के महत्व को देखते हुए 2050 तक दुनिया भर में दाल के उत्पादन को दोगुना करने का मकसद रखा गया है| सस्य वैज्ञानिक डाॅ. अमितेश कुमार सिंह ने कहा कि किसानों को अपने खेतों में दलहनी फसलों की खेती भी करनी चाहिए| इससे खेत में मिट्टी की उर्वरकता बनी रहती है, साथ ही उनको अच्छा उत्पादन भी मिलता रहता है| दलहनी फसलों की जड़ों में बने राइजोबियम गांठ में नाइट्रोजन फिक्स रहता है, जो खेती की मिट्टी की उर्वरता शक्ति को बढ़ाता है, जो किसानों के खेतों की अगली फसल के लिए भी लाभकारी होता है| उद्यान वैज्ञानिक डाॅ. हेमंत कुमार चौरसिया ने बताया कि दाल को पचा पाना बहुत आसान है| हर रोज दाल खाने से बॉडी एक्टिव बनी रहती है| दालें न केवल प्रोटीन की कमी को पूरा करती हैं बल्कि ये आयरन की जरूरत को भी पूरा करती हैं| दालों में कई ऐसे तत्व भी पाए जाते हैं जो कैंसर से बचाव में सहायक होते हैं| पौधा सुरक्षा वैज्ञानिक डाॅ.सूर्य भूषण ने कहा कि भारतीय कृषि में दलहनी फसलों की खेती को प्रमुख स्थान दिया गया है| कई लोग केवल शाकाहारी भोजन करते हैं, जिनके लिए दलहन प्रोटीन का मुख्य ज़रिया होता है| इसी वजह से दलहनी फसलों का महत्व भी काफी बढ़ गया है| दलहनी फसलों में चना, मूंग, मसूर, उड़द, अरहर और सोयाबीन समेत कई खास फसलें शामिल हैं| कृषि प्रसार वैज्ञानिक डाॅ. रितेश दुबे ने कहा कि दलहनी फसलों की खेती करने के लिए रोग-कीट के प्रति प्रतिरोधी किस्मों का चयन, बीज उपचार, लाईन से बुआई करना चाहिए| किसानों को दलहनी फसलों की बुवाई से कई लाभ होंगे| एक तरफ इसकी खेती से किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अपने खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा सकते हैं| प्रदान संस्था के सहयोग से मनोज मुर्मू, बेटा राम बेसरा, गणेश सोरेन, रमेश किस्कू, पकू हेम्ब्रम, सीमा मुर्मू, बसंती कुमारी हेम्ब्रम, तेरेसा सोरेन, संगीता किस्कू आदि मास्टर ट्रेनर, आजीविका सखी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए|
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