GoddaNews: शहीद विरेंद्र महतो के शहादत दिवस पर लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की

"कारगिल शहीद विरेन्द्र महतो के शहादत दिवस पर विशेष रिपोर्ट"


श्रद्धासुमन अर्पित करते लोग  

ग्राम समाचार गोड्डा, ब्यूरो रिपोर्ट:-  कारगिल शहीद विरेंद्र महतो के पुण्यतिथि पर लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये|श्रद्धांजलि अर्पित करने में आजसू के केन्द्रीय सचिव संजिव महतो भी शामिल थे|विदित हो कि आज 24 जून है| आज के दिन गोड्डा (धर्मोडिह) के धरतीपुत्र शहीद विरेन्द्र महतो की शहादत दिवस हमलोग मनाते हैं, और देश के लिए प्राण की आहूति देने वाले इस महान देशभक्त को प्रत्येक वर्ष श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। कारगिल युद्ध में लड़ते लड़ते गोड्डा जिला झारखंड के विरेन्द्र महतो ने खुद को देश के मान की खातिर शहीद कर दिया। प्रत्येक वर्ष विरेन्द्र महतो के दोस्त परिवार समाज मिलकर इस वीर शहीद को श्रद्धांजली देते हैं। उनकी वीरता और शहादत जिला ही नही देश के लिए गर्व की है।
पोस्ट के साथ शामिल छाया चित्र गोड्डा मेन चौक की है जिसे कारगिल शहीद विरेंद्र महतो चौक के नाम से झारखंड सरकार ने नोटिफाइड किया और इस टावर का निर्माण व सोंदर्यीकरण किया है। परंतु अबतक एक छाया चित्र या प्रतिमा जिला मुख्यालय या शहीद विरेन्द्र महतो के जन्म स्थल के इर्द-गिर्द नहीं लगाया जा सका है। जिला के तमाम बुद्धिजीवी व जिला प्रशासन एवं सरकार को चाहिए कि इस महान शहीद के सम्मान में शहीद के पैतृक गांव और जिला मुख्यालय के किसी विशेष स्थल पर शहीद की प्रतिमा लगाने की पहल करनी चाहिए।
आज के तारीख में शहीद विरेन्द्र महतो के जन्म गांव धर्मोडिह और इसके चारों और पूरा गोड्डा एवं जिला समाहरणालय समेत तमाम सरकारी कार्यालय व कृषि कालेज , बायो डायवर्सिटी पार्क आदि दर्जनों सरकारी भवन बने हैं या बन रहे हैं। ऐसे में जिला प्रशासन को चाहिए कि जहां जिला मुख्यालय का कार्यालय बन रहा उसके प्रवेश स्थल पर शहीद विरेन्द्र महतो की एक शानदार आदम कद प्रतिमा लगाकर उस स्थल के सोंदर्यीकरण पर कारगिल शहीद का देश भक्ति रंग चढ़ाकर सोंदर्यता की विकास के साथ साथ शहीद को विशेष सम्मान देने की पहल करें। जिस प्रकार भागलपुर के सबौर कृषि कालेज का नाम तिलका मांझी कृषि महाविद्यालय उसी तरह शहीद विरेन्द्र महतो बायो डायवर्सिटी पार्क कर कारगिल के इस शहीद को सम्मान देने का पहल होना चाहिए ‌
यूं तो प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई 1999 देश कारगिल विजय दिवस के रूप में सरकारी तौर पर मनाती है पर क्यों ना इस दिन गोड्डा प्रसाशन भी कारगिल विजय दिवस मनाए और शहीद विरेन्द्र महतो के शहादत को उसदिन सरकारी तौर पर सम्मान देने की कोशिश की जाय‌। यह दिन भारत और हम भारतीयों के लिए स्मरणीय दिन है| इसी दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था। इसी की याद में ‘26 जुलाई’ अब हर वर्ष कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का, जो हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया।
*आइए जानते जानते हैं कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि:- कारगिल युद्ध जो कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है| भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था। इस युद्ध का कारण था बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर कर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना। पूरे दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध (विदेशी मीडिया ने इस युद्ध को सीमा संघर्ष प्रचारित किया था) में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था। स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है।
*कारगिल युद्ध शहीदों का हिमालय से ऊँचा था साहस:- इस युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। इन रणबाँकुरों ने भी अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे मे लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी। जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था। इन्हीं में से था हमलोग का अपना विरेन्द्र महतो जिसने जान की बाजी लगाकर देश को झुकने नहीं दिया और गोड्डा जिला को देश के प्रति शहादत के इतिहास के पन्ने में जोड़ कर गोड्डावासियों को ये गौरव दिया कि देश के लिए मर मिटने की जो जज्बा हुल शहीद चानकु महतो जैसे पूर्वजों से हमें प्राप्त है वो गोड्डा में आज भी बरकरार है।
-: भुपेन्द्र कुमार चौबे, पथरगामा, गोड्डा :-

सौजन्य:- संजीव कुमार महतो, केंद्रीय सचिव आजसू व संयोजक चानकु महतो हुल फाउंडेशन एवम् संस्थापक सदस्य अखिल भारतीय आदिवासी कुड़मि महासभा।
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Editor - भुपेन्द्र कुमार चौबे

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