Bhagalpur News:खानकाह पीर दमड़िया शाह में इमाम-ए-मसाजिद की बैठक


ग्राम समाचार, भागलपुर। खानकाह पीर दमड़िया शाह, खलीफा बाग भागलपुर के तत्वावधान में गुरुवार को शाह मंज़िल में इमाम-ए-किराम की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में भागलपुर और आसपास के इमामों ने बड़ी संख्या में शिरकत की। बैठक की अध्यक्षता खानकाह पीर दमड़िया शाह के सज्जादानशीन मौलाना सैयद शाह फ़ख़्र आलम हसन मजाहिरी ने की। इस मौके पर मौलाना सैयद शाह फ़ख़्र आलम हसन ने अपने संबोधन में कहा कि आज का नौजवान नशे और बुराइयों की गिरफ्त में तेजी से फँस रहा है। ऐसे में इमाम-ए-किराम को विशेष जिम्मेदारी निभानी होगी। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नौजवानों को ग़लत रास्तों से बचाने के लिए संगठित प्रयास जरूरी है। नास्तिकता से बचाव तथा शिक्षा व्यवस्था के सुधार को समय की अहम ज़रूरत बताया। मौलाना ने कहा कि अगर समाज से बुराई का एहसास ही खत्म हो जाए तो ईमान और धर्म की बुनियाद कमज़ोर पड़ जाएगी। इसलिए इमामों को चाहिए कि वे फिक्रमंदी के साथ अपने क्षेत्रों में सुधार का काम करें। उन्होंने कुरआन की शिक्षाओं का हवाला देते हुए कहा कि उम्मते-मुसलिमा की पहचान यही है कि वे नेकियों का हुक्म देती है और बुराइयों से रोकती है। अगर यह ज़िम्मेदारी हमसे छूट गई तो अल्लाह का अज़ाब हम पर आएगा और दुआएँ भी क़बूल न होंगी। उन्होंने कहा कि इमाम-ए-मसाजिद को फुरूई मसलों से ऊपर उठकर एकता, भाईचारा और दीन का पैग़ाम आम करना चाहिए। इस मौके पर अन्य उलमा ने भी अपने विचार प्रकट किए। मौलाना मासूम रज़ा सिद्दीकी ने कहा कि मिंबर और मेहराब से पहुँचने वाला संदेश किसी और माध्यम से नहीं पहुँच सकता। जुमे का ख़ुत्बा एकता और इत्तेफ़ाक़ का सबसे प्रभावी जरिया है। अगर इस राह में तकलीफ़ भी उठानी पड़े तो उठाएँ, क्योंकि मुसलमान की पहचान उसका अमल और अख़लाक़ है। मुफ़्ती फ़सीहुर्रहमान ने कहा कि हर व्यक्ति अपने मातहतों के सुधार का ज़िम्मेदार है। समाज और मोहल्लों की इस्लाह के लिए इमाम और अवाम को मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने मक़तब को मज़बूत बनाने और बड़ों की शिक्षा का भी इंतज़ाम करने की ज़रूरत बताई। मौलाना अफ़ज़ल हुसैन नदवी ने उम्मत की एकता पर बल दिया। सूफ़ी हकीम सईद कुरोडियाह ने कहा कि औरतों, मर्दों और बच्चों की इस्लाह के लिए मक़ातिब का जाल फैलाना ज़रूरी है। उलमा को अवाम के करीब होना चाहिए ताकि सामाजिक मसलों का हल निकले। लड़कियों और लड़कों की तालीम पर गंभीर ध्यान देना चाहिए। डॉ. हबीब मुरशिद ख़ान ने कहा कि दावत और इस्लाह के लिए मस्जिद और खानकाह सबसे बेहतर जगहें हैं। मुफ़्ती जुबैर क़ासमी (सन्हौला) ने कहा कि अब तक सुधार का काम व्यक्तिगत स्तर पर होता रहा, लेकिन खानकाह ने इसे सामूहिक स्तर पर शुरू किया है। मुफ़्ती अब्दुल्लाह आज़ाद (रशीदुल उलूम क़स्बा) ने कहा कि समाज में बुराइयाँ बढ़ चुकी हैं और उनका हल मस्जिद के माध्यम से ही निकल सकता है। उन्होंने बच्चों और बच्चियों की सही शिक्षा पर विशेष ध्यान देने और संगठित जद्दोजहद की आवश्यकता जताई। मुफ़्ती सलमान ने कहा कि अवाम को पहले यह समझाना होगा कि कौन सा काम बुराई है, तभी वे उससे बच सकेंगे। मुफ़्ती हुदैफ़ा ने कहा कि पहले अवाम और उलमा-बुज़ुर्गान-ए-दीन का रिश्ता मज़बूत था, इसी कारण लोग बुराइयों से बचते थे, लेकिन आज यह रिश्ता कमज़ोर हो गया है। ज़रूरत है कि इस रिश्ते को फिर से मज़बूत किया जाए। इस बैठक में सैयद अहमद बुख़ारी, मौलाना जाहिद हलीमी, डॉ. हबीब मुरशिद ख़ान, मौलाना शाहिद अख़्तर मिफ़्ताही, फ़िरदौस हलीमी समेत बड़ी संख्या में उलमा और इमाम मौजूद थे।

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Editor - Bijay shankar

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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