झारखंड, खनिज संपदा से संपन्न एक राज्य, लंबे समय से अवैध खनन की विकराल समस्या से जूझ रहा है। यह समस्या न केवल राज्य के राजस्व को भारी नुकसान पहुँचाती है, बल्कि पर्यावरण को भी गंभीर क्षति पहुँचाती है और स्थानीय समुदायों के जीवन को प्रभावित करती है। इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अवैध खनन का दानव अब भी बेरोकटोक अपनी गतिविधियाँ चला रहा है। हाल ही में, अवैध खनन पर प्रति टन ₹1200 का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव एक ऐसा कदम है जिसने राज्य में एक नई बहस छेड़ दी है: क्या यह अवैध खनन को रोकने की दिशा में एक प्रभावी समाधान है, या यह एक प्रकार का आत्मसमर्पण है जो अवैध गतिविधियों को एक प्रकार की वैधता प्रदान करता है?राजीव कुमार, प्रथान संपादक
नया नियम और उसकी उम्मीदें
झारखंड खनन विभाग द्वारा अवैध खनन पर प्रति टन ₹1200 का कंपोजिशन चार्ज (जुर्माना) लागू किया गया है, जो 13 मई, 2025 से प्रभावी है। यह जुर्माना कोयला, लोहा, पत्थर, बॉक्साइट, बालू और अन्य खनिजों के अवैध परिवहन पर लागू होगा। विभाग का अनुमान है कि प्रतिदिन औसतन 25 हजार चालान निर्गत होंगे, जिससे प्रतिदिन ₹3 करोड़ और सालाना ₹1000 करोड़ की आय होगी। यह राशि झारखंड हाईवे पर (डिजिटलिंग ऑन रोड एंड कलेक्शन) अमेंडमेंट रूल्स 2025 के तहत वसूली जाएगी। जुर्माने से प्राप्त इस भारी राजस्व का उपयोग खनन प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों, पर्यावरण बहाली और स्थानीय समुदायों के कल्याण के लिए किया जा सकता है।
सतही तौर पर, जुर्माना लगाने का यह विचार राजस्व बढ़ाने और अवैध खनन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई करने का एक तरीका लग सकता है। सैद्धांतिक रूप से, यदि जुर्माना इतना अधिक है कि वह अवैध खनन से होने वाले लाभ को कम कर दे, तो यह एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है। ₹1200 प्रति टन एक बड़ी राशि प्रतीत होती है, और यह उम्मीद की जा सकती है कि यह अवैध खननकर्ताओं को हतोत्साहित करेगा।
जेम पोर्टल का निर्देश और उसकी चुनौतियां
इस बीच, खनन निदेशक शिशिर सिन्हा ने 24 जून को एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है, जिसके तहत कंपोजिशन चार्ज की वसूली को जेम पोर्टल (Geological and Mining e-Services Portal) के माध्यम से जोड़ने का निर्देश दिया गया है। यह कदम निश्चित रूप से पारदर्शिता लाने और राजस्व संग्रह में दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है। यदि कोई ट्रांसपोर्टर खनिज परिवहन के दौरान चालान नहीं भरता है, तो उस पर दोगुना जुर्माना यानी ₹2400 रुपये का दंड लगाने का प्रावधान भी किया गया है।
हालांकि, इस प्रस्ताव के निहितार्थों पर गहराई से विचार करना आवश्यक है। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, जुर्माना लगाने का यह कदम एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है। यह परोक्ष रूप से अवैध गतिविधियों को स्वीकार करने जैसा है, बजाय इसके कि उन्हें पूरी तरह से समाप्त किया जाए। क्या इसका मतलब यह है कि सरकार ने अवैध खनन को रोकने के अपने प्रयासों में हार मान ली है? यदि अवैध खनन पर केवल जुर्माना लगाया जाता है, तो क्या यह उन लोगों को प्रोत्साहित नहीं करेगा जो पहले से ही इसमें शामिल हैं, यह मानकर कि यह सिर्फ व्यवसाय करने की लागत का एक हिस्सा है? यह एक 'जुर्माना देकर काम चलाओ' वाली मानसिकता को बढ़ावा दे सकता है, जहाँ शक्तिशाली खनन माफिया, जिनके लिए ₹1200 प्रति टन एक मामूली लागत हो सकती है, अपनी गतिविधियों को जारी रखेंगे। विशेषकर जब अनुमानित आय ₹1000 करोड़ सालाना हो, तो यह अवैध गतिविधियों को एक 'नियमित' व्यापार की तरह मान्यता देने जैसा लग सकता है।
विरोध और निहितार्थ
झारखंड पत्थर व्यवसायी संघ ने जेम पोर्टल से जुड़ने के निर्देश का विरोध किया है। उनका तर्क है कि ओवर-हाइट खनन पर प्रतिबंध का मामला अभी भी उच्च न्यायालय में लंबित है। यह विरोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि खनन क्षेत्र में कई जटिल मुद्दे हैं, और केवल वित्तीय दंड लगाना सभी समस्याओं का समाधान नहीं है। यदि व्यापारी इस मामले को अदालत में ले जाते हैं, तो यह नई नीति की कानूनी वैधता पर भी सवाल खड़े कर सकता है।
अवैध खनन केवल राजस्व का मामला नहीं है; यह कानून और व्यवस्था, पर्यावरण नैतिकता और सामाजिक न्याय का भी मामला है। अवैध खनन अक्सर हिंसा, जबरन वसूली और भ्रष्टाचार से जुड़ा होता है। यह भूजल स्तर को कम करता है, मिट्टी का कटाव बढ़ाता है, वनों का विनाश करता है और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह करता है। यह खनन क्षेत्रों के पास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा करता है। यदि सरकार अवैध खनन पर जुर्माना लगाकर इसे एक 'नियमित' गतिविधि के रूप में मानती है, तो वह इन गहरे बैठे सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को अनदेखा कर रही है।
एक और चिंता यह है कि इस जुर्माने को प्रभावी ढंग से लागू कैसे किया जाएगा। अवैध खननकर्ता अक्सर अपनी गतिविधियों को गुप्त रूप से करते हैं, और उनके द्वारा खनन की गई सामग्री की सटीक मात्रा का आकलन करना एक चुनौती होगी। क्या सरकार के पास पर्याप्त निगरानी तंत्र और प्रवर्तन एजेंसियां हैं जो यह सुनिश्चित कर सकें कि जुर्माना वास्तव में वसूला जाए? यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह केवल एक कागजी शेर बन जाएगा, जिसका कोई वास्तविक प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके बजाय, यह भ्रष्टाचार के नए रास्ते खोल सकता है, जहाँ जुर्माने से बचने के लिए अधिकारियों को रिश्वत दी जाएगी।
समाधान की दिशा
अवैध खनन को रोकने के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें शामिल होना चाहिए:
कठोर प्रवर्तन और निगरानी: अवैध खनन गतिविधियों पर नज़र रखने और उन्हें रोकने के लिए ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी और ग्राउंड पेट्रोलिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। पुलिस और वन विभाग को अवैध खननकर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए सशक्त किया जाना चाहिए। जेम पोर्टल के माध्यम से पारदर्शिता एक अच्छी पहल है, लेकिन यह केवल संग्रह का एक पहलू है, रोकने का नहीं।
कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: खनन कानूनों में खामियों को दूर किया जाना चाहिए और अवैध खनन में शामिल लोगों के लिए सख्त दंड का प्रावधान होना चाहिए, जिसमें कारावास और संपत्ति की जब्ती शामिल हो।
जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को अवैध खनन के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें ऐसी गतिविधियों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें अवैध खनन के खिलाफ लड़ाई में भागीदार बनाना महत्वपूर्ण है।
रोजगार के वैकल्पिक अवसर: खनन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए रोजगार के वैकल्पिक अवसर सृजित किए जाने चाहिए ताकि वे अवैध खनन पर निर्भर न रहें।
पारदर्शिता और जवाबदेही: खनन पट्टों के आवंटन में पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए।
झारखंड की सरकार को यह समझना चाहिए कि अवैध खनन पर केवल जुर्माना लगाना एक आसान रास्ता हो सकता है, लेकिन यह एक स्थायी समाधान नहीं है। यह एक बीमार शरीर पर प्लास्टर लगाने जैसा है जबकि अंदर की बीमारी बढ़ती जा रही है। ₹1200 प्रति टन का जुर्माना एक नीतिगत विफलता का संकेत हो सकता है – यह स्वीकार करना कि राज्य अवैध खनन को पूरी तरह से समाप्त करने में असमर्थ है। ₹1000 करोड़ सालाना का राजस्व लक्ष्य हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह अवैध खनन को रोकने के बजाय उसे एक 'राजस्व स्रोत' के रूप में देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है।
वास्तविक समाधान इस समस्या की जड़ों को खोदना है: भ्रष्टाचार, कमजोर प्रवर्तन, और अवैध खनन के पीछे की शक्तिशाली सांठगाँठ को तोड़ना। झारखंड के प्राकृतिक संसाधनों को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने और राज्य के लोगों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, दृढ़ संकल्प और एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। केवल जुर्माना लगाना दीर्घकालिक दृष्टिकोण में एक आत्मघाती कदम साबित हो सकता है, जो राज्य को उसके मूल्यवान खनिजों और उसके पर्यावरण दोनों से वंचित कर देगा। यह समय है कि झारखंड सरकार समाधान के लिए कठिन रास्ते का चुनाव करे, न कि आसान लेकिन हानिकारक विकल्पों का।
- राजीव कुमार, प्रधान संपादक।
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