रांची, झारखंड: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष, दिशोम गुरु शिबू सोरेन को 'झारखंड आंदोलनकारी' घोषित कर दिया गया है। यह घोषणा उनके 81वें जन्मदिन के अवसर पर की गई, जो उनके लिए एक बेहद गौरवपूर्ण क्षण है। यह निर्णय उन्हें झारखंड राज्य के निर्माण में दिए गए असाधारण योगदान के सम्मान में लिया गया है।
शिबू सोरेन का योगदान:
शिबू सोरेन ने झारखंड के अलग राज्य के लिए 1970 के दशक में शुरू हुए आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी अगुवाई में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने संघर्ष को तेज किया और आदिवासियों के अधिकारों और पहचान के लिए आवाज उठाई। उन्होंने राजनीतिक चेतना जागृत करने और सामाजिक न्याय के लिए अथक प्रयास किए। उनके संघर्षों का ही परिणाम था कि 15 नवंबर, 2000 को झारखंड एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।
सरकारी घोषणा और पात्रता मानदंड:
राज्य सरकार ने झारखंड आंदोलनकारियों को चिह्नित करने के लिए एक विस्तृत मापदंड तैयार किया था। इस मापदंड के अनुसार, 22 सितंबर, 1997 को झारखंड के अलग राज्य के लिए किए गए आंदोलनों में शामिल व्यक्ति, जिन पर पुलिस कार्रवाई हुई थी और उन्हें जेल हुई थी, उन्हें आंदोलनकारी माना गया है।
झारखंड आंदोलनकारियों को कई सरकारी लाभ भी दिए जाएंगे। इनमें स्वतंत्रता सेनानियों की तरह पेंशन, मुफ्त चिकित्सा सुविधा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण शामिल है। इसके लिए एक अलग फंड भी बनाया गया है।
आंदोलनकारियों की सूची में शामिल होने का महत्व:
शिबू सोरेन का इस सूची में शामिल होना न केवल उनके व्यक्तिगत योगदान का सम्मान है, बल्कि उन सभी गुमनाम आंदोलनकारियों के लिए भी एक प्रेरणा है जिन्होंने झारखंड के सपने को साकार करने में अपना जीवन लगा दिया। यह निर्णय राज्य सरकार की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह झारखंड के इतिहास और उन लोगों को भूलेगी नहीं जिन्होंने इसके निर्माण में भूमिका निभाई है।
शिबू सोरेन ने 1969-70 में नक्सलवाद, महाजनी तथा जमीन बेदखली के खिलाफ व्यापक शिक्षा, बिहार बिहारी भगाओ और अन्य के साथ विकास झारखंड की स्थापना की थी। 31 मार्च, 1989 को तत्कालीन बिहार सरकार के साथ समझौता के बाद विधायक कमेटी को आंदोलनकारी घोषित किया था।
यह घोषणा झारखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो आने वाली पीढ़ियों को झारखंड के निर्माण के पीछे के संघर्ष और बलिदानों की याद दिलाएगी।
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