आरजू किताबों की - श्रृंखला ::07(कोठा नंबर-64)

पुस्तक - कोठा नं०64
लेखक - राकेश शंकर भारती

तवायफों की जिंदगी से पर्दा उठाती बेहतरीन कहानी संग्रह. पुस्तक के नाम से ही अंदाजा लगा लेना सहज है की कहानी किस पर आधारित है. लेखक ने बड़े ही सहजता से चौदह कहानियों के माध्यम से तवायफ के जीवन को उतारने का काम किया है.

वैसे वेश्यावृत्ति का उल्लेख प्राचीन साहित्य में मिलता है, मिस्र के चित्र लेखों में मिलता है, सुमेर के ग्रंथों में मिलता है, प्राचीन और नवीन टेस्टामेंट में भी पाया जाता है. पर इस पेशे ने व्यवस्थित रूप, छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में ही लेना शुरू किया, जब एक यूनानी विधायक, सोलोन ने राज्य नियंत्रित वेश्याघरों की स्थापना की और इस चमड़ी के व्यापार पर कर लागू किया. वेश्याओं को उनके कर चुकाने की क्षमता के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाने लगा. 

 

किन परिस्थितियों के कारण लड़कियां तवायफ बनती है, तवायफों को किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, उम्र का पड़ाव ढ़लने के बाद वे कितनी बेबस हो जाती है इन बातों को इन पुस्तक में सरलता से रखा गया है.

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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