ग्राम समाचार, बौंसी, बांका।
अगर शिक्षा का अधिकार (आरटीई) संविधान प्रदत्त नहीं हो तो भी यह लोकतंत्र की पहली जिम्मेदारी बनती है कि, वह अपने नागरिकों के लिए शिक्षा और चिकित्सा की समुचित व्यवस्था करे। किसी भी राष्ट्र, राज्य की अवधारणा उसके नागरिकों से निर्धारित होती है। अगर नागरिक स्वस्थ, सबल और शिक्षित, दीक्षित होंगे
तो राष्ट्र राज्य भी आशा अनुरूप विकसित और समृद्ध होगा। जरा जीर्ण और मंदबुद्धि नागरिक सभ्य होते हुए भी अपने राष्ट्र राज्य के उत्थान में अपेक्षित योगदान नहीं दे सकते। इसलिए देश में शिक्षा के अधिकार को कानूनी मान्यता दी गई है। नीयत और नीति दोनों अस्पष्ट थी। लेकिन व्यवस्था की सुस्ती के कारण चालाक अपने मकसद में कामयाब होते रहे। बरहाल स्थिति यह है कि, बौंसी प्रखंड के तमाम निजी स्कूल (आरटीई) के नियमों का उल्लंघन कर रहे, कागजों पर कानून के अनुपालन का हिसाब किताब मुकम्मल रखते हुए इन निजी स्कूलों में नामांकन और फी वसूली आदि में गजब की अंधेर गर्दी मचा रखी है। आवाज उठने पर राज्य सरकार सक्रिय होती है। लेकिन वह फौरी और अंशकालिक प्रतिक्रिया होती है। इसमें गरीब छात्र व छात्राओं के लिए ना तो व्यवस्था हर वक्त मददगार होती है और ना ही उन्हें कानून का वाजिब सहारा मिलता है।
इसका प्रारंभिक खामियाजा गरीब वर्ग के होनहार और मेधावी बच्चों चाहे किसी भी जाति के हो भुगतना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में होनहार और मेधावी छात्र छात्राएं उचित शिक्षण प्रशिक्षण पैसे के अभाव में हासिल नहीं कर पाते हैं उनका जो सपना भविष्य के लिए होता है कि मैं भी आइएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर बनकर देश की सेवा करू, अरमान अधूरा रह जाता है। ऐसे ऐसे मुख्य संस्थान बांका जिले और बौंसी में भी हैं। यहां कदम कदम पर पैसा चाहिए। छात्रों के उज्जवल भविष्य के लिए इन्हें लेना देना नहीं है। नतीजा मेघावी और होनहार छात्र छात्राएं उचित शिक्षण प्रशिक्षण के अभाव में उचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। डिप्लोमा नहीं ले पाते हैं या पाने के एवज में उनसे जुड़े सपने और संभावना दम तोड़ देती है। ऐसे संस्थान को बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के सरकार के नारों का कोई असर नहीं पड़ता। विदित हो कि 2020 के कोरोना महामारी में सरकार के निर्देशानुसार विद्यालय बंद किया गया। परंतु आज उस बंद के एवज का फी बच्चों छात्रों से विद्यालय संस्थान वसूल करना चाहते हैं, पर
इतने दिनों का स्कूल फी गरीब तबके के अभिभावक देने में असमर्थ हैं। बावजूद विद्यार्थियों और अभिभावकों की इस मजबूरी का निजी स्कूल नाजायज फायदा उठाना चाहते हैं। आधारभूत संरचना के बगैर गली कूचे में खुल आए निजी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गुणवत्तापूर्ण नहीं है और जो कुछ नामचीन स्कूल हैं, उसके यहां शुल्क आदि के बहाने अंतहीन वसूली का धंधा साल ओ साल चलता रहता है। यह नामचीन स्कूल नियम कानून को ताक पर रखकर विद्यार्थियों और अभिभावकों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। यह आरटीआई के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए निर्धारित 25% सीटों पर गरीब तबके के योग्य विद्यार्थियों का नामांकन नहीं कर रहे हैं। जबकि सरकार से ये स्कूल प्रति विद्यार्थियों से सालाना ₹3600 का लाभ ले रहे हैं। इस दिशा में मुख्यमंत्री ने भी (आरटीई) कानून को प्रभावी तरीके से लागू कराने के लिए प्रतिबद्धता भी जाहिर पूर्व में की है। फिर भी नियम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही है। इस ओर शिक्षा विभाग की तरफ से निजी संस्थानों को निर्देश देना चाहिए कि, निजी संस्थान बच्चों के फी को माफ कर, उन्हें विद्यालय में पुनः नामांकन कर पढ़ाई शुरू करने की अनुमति प्रदान करें, ताकि बच्चे इनरोल होकर पढ़ाई का लाभ उठा सकें।
कुमार चंदन, ग्राम समाचार संवाददाता, बौंसी।
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