रमजान
उल मुबारक महीने का अलविदा जुमे की नमाज शुक्रवार को अदा की गई। शहरी क्षेत्रों के
मस्जिदों में जुमे की नमाज में सिर्फ चार से पांच लोग ही अदा कर पाए। वहीं ग्रामीण
इलाकों के मस्जिदों में थोड़ी बहुत भीड़ देखने को मिला। बाकी लोग अपने घरों में जुमे
के बजाए जोहर की नमाज अदा किये। हाजी रिजाउल रहमान ने कहा कि रमजान उल मुबारक का
आखिरी जुमा रुखसत हो रहा है जो अपने दामन में अनमोल मोती समेट इबादत की शक्ल में
रुक्सत होने को है। इस अजीम दिन में नमाज़ पढ़ कर दुख जाहिर किया जाता है। कोरोना के
दंश के बीच लॉक डाउन के निर्देश को मानते हुए शारिरिक दूरी का पालन कर सभी जुमे की आखिरी नमाज़ अदा किए। उम्मीद है कि इस
महीने में हमने खोया कुछ नहीं पाया बहुत कुछ है, जो पाया है उसी को नेमत कहते हैं, जिसका
नाम ईद है। बताते चलें कि बासेद अली अंसारी, जसीम
अंसारी, निज़ाम खान, दानिश रहमान लॉकडाउन के मद्देनजर
अलविदा जुमा और ईद की नमाज घरों में पढ़ने की अपील की है। शनिवार की रात चांद का
दीदार हो सकती है। लोगों ने घरों में त्यौहार मनाने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं
मिहिजाम के बाजारों में विशेष पकवानों के सामग्री की खरीदारी भी शुरू हो गई है। कोरोना
महामारी की वजह से देशभर में लॉकडाउन किया गया है। रमजान उल मुबारक महीना भी इसी
लॉकडाउन में चल रहा है। इस महीने में रोजेदार जकात, फित्रा व सदका की रकम ज्यादा से ज्यादा निकालते हैं और जरूरतमंदों को
नगद पैसा देकर उनकी मदद करते थे।
लेकिन लॉकडाउन की वजह से जकात, फित्रा व सदका आदि निकालने के ट्रेंड में तब्दीलियां आ गई है। अब लोग ऑनलाइन बैंकिंग, गूगल पे और पेटीएम के माध्यम से अपनी निकाली जकात, फित्रा और सदका की रकम जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं। जिससे जरूरतमंदों की मदद भी हो जा रही है और लॉक डाउन का उल्लंघन भी नहीं हो रहा है। हाजी रिजाउल रहमान ने ये भी कहा कि जकात में अफजल है कि इसे पहले अपने जरूरतमंद भाई-बहनों को दी जाती है, उसके बाद करीबी रिश्तेदारों को, उसके बाद दूर के रिश्तेदारों के अलावा पड़ोसी, साथ काम करने वाले जरूरतमंदों को भी दी जा सकती है। जकात का इंकार करने वाला काफिर और अदा न करने वाला फासिक व अदायकी में देर करने वाला गुनाहगार होता है। अगर आप साहिब ए निसाब हैं तो हकदार को जकात जरूर दें। जकात हलाल और जायज तरीके से कमाए हुए माल में से दी जाती है। वही हाजी रिजाउल रहमान ने कहा कि देशव्यापी लॉक डाउन को देखते हुए सभी मुस्लिम धर्मावलंबियों से अपील है कि अपने अपने घरों में रहकर ही नमाज़ अदा करें व शारिरिक अलगाव का ध्यान रखते हुए सरकार के निर्देशों का बखूबी पालन करें।
लेकिन लॉकडाउन की वजह से जकात, फित्रा व सदका आदि निकालने के ट्रेंड में तब्दीलियां आ गई है। अब लोग ऑनलाइन बैंकिंग, गूगल पे और पेटीएम के माध्यम से अपनी निकाली जकात, फित्रा और सदका की रकम जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं। जिससे जरूरतमंदों की मदद भी हो जा रही है और लॉक डाउन का उल्लंघन भी नहीं हो रहा है। हाजी रिजाउल रहमान ने ये भी कहा कि जकात में अफजल है कि इसे पहले अपने जरूरतमंद भाई-बहनों को दी जाती है, उसके बाद करीबी रिश्तेदारों को, उसके बाद दूर के रिश्तेदारों के अलावा पड़ोसी, साथ काम करने वाले जरूरतमंदों को भी दी जा सकती है। जकात का इंकार करने वाला काफिर और अदा न करने वाला फासिक व अदायकी में देर करने वाला गुनाहगार होता है। अगर आप साहिब ए निसाब हैं तो हकदार को जकात जरूर दें। जकात हलाल और जायज तरीके से कमाए हुए माल में से दी जाती है। वही हाजी रिजाउल रहमान ने कहा कि देशव्यापी लॉक डाउन को देखते हुए सभी मुस्लिम धर्मावलंबियों से अपील है कि अपने अपने घरों में रहकर ही नमाज़ अदा करें व शारिरिक अलगाव का ध्यान रखते हुए सरकार के निर्देशों का बखूबी पालन करें।
दिनेश
कुमार रजक, ग्राम समाचार, मिहिजाम
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