Editorials : दबाव और नरमी

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने साल की पहली मौद्रिक नीति में मुख्य ब्याज दर रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। तमाम बैंक इसी दर पर आरबीआई से कर्ज उठाते हैं और यह 5.15 फीसदी पर ही स्थिर रहेगी। ऐसे में कर्ज लेने वालों को भारत के केंद्रीय बैंक की तरफ से कोई राहत नहीं मिलने जा रही है, हालांकि इसे भी आरबीआई का नरम रुख माना जा रहा है।

बढ़ती हुई मुद्रास्फीति को देखते हुए विश्लेषकों को लग रहा था कि 2019 में रेपो रेट में रिकॉर्ड पांच बार कटौती करने के बाद रिजर्व बैंक नए साल की शुरुआत ब्याज में सख्ती के साथ कर सकता है। अनुमान था कि 2020-21 में उसे बढ़े राजकोषीय घाटे का दबाव झेलना पड़ेगा इसलिए रेपो रेट बढ़ाना उसके लिए अधिक स्वाभाविक है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बढ़ाकर जीडीपी का 3.8 फीसदी कर दिया है। पहले इसे 3.3 प्रतिशत रखा गया था।

रिजर्व बैंक का कहना है कि वृद्धि दर की तुलना में मुद्रास्फीति की तेज रफ्तार को देखते हुए उसने रेपो रेट में कटौती न करने का फैसला किया। कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के बीच दूध और दालों की कीमत में बढ़ोतरी के कारण जनवरी-मार्च तिमाही के लिए खुदरा महंगाई का अनुमान बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर दिया गया है। आरबीआई ने इसे बहुत अनिश्चित बताते हुए कहा कि भविष्य में खुदरा महंगाई का अनुमान खाद्य महंगाई, कच्चे तेल की कीमत और सेवाओं के लिए इनपुट लागत के आधार पर लगाया जाएगा। वैसे उसने माना कि रबी फसलों के बाजार में आने से खाद्य महंगाई की दर दिसंबर में दर्ज उच्च स्तर से नीचे आएगी।

आरबीआई ने अनुमान जाहिर किया कि कारोबारी साल 2020-21 में मॉनसून सामान्य रहेगा, जिससे अगले कारोबारी साल की पहली छमाही में खुदरा महंगाई दर घटकर 5.0-5.4 फीसदी पर और अगले कारोबारी साल की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2020) में और घटकर 3.2 फीसदी पर आ सकती है। बैंक का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 में देश की जीडीपी ग्रोथ छह फीसदी रहेगी, जबकि उसके पहले छह महीने में वृद्धि दर 5.5 फीसदी से छह फीसदी रहने का अनुमान है।

आरबीआई के मुताबिक वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में वृद्धि दर 6.2 फीसदी रह सकती है। मौद्रिक नीति में कमर्शल रीयल्टी लोन लेने वालों के लिए बड़ा निर्णय किया गया है। उचित कारणों से हुई देरी पर अब लोन डाउनग्रेड नहीं होगा। यानी अगर कोई डिवेलपर किसी वजह से कर्ज समय पर नहीं चुका पाता है तो उसके कर्ज को एक साल तक एनपीए घोषित नहीं किया जाएगा। रीयल्टी सेक्टर को इससे काफी राहत मिली है और कारोबारी जगत ने भी इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई है। पॉलिसी के ऐलान के बाद शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांकों निफ्टी और सेंसेक्स में उछाल देखने को मिला। रिजर्व बैंक का रुख चूंकि नरमी का है, इसलिए आगे ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद बनी हुई है।


सौजन्य - नवभारत टाइम्स ।
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