राजनेताओं की एक किस्म ऐसे काम करने में भी नहीं हिचकती जिसे कोई अनुभवी आदमी शायद ही करे। याद कीजिए कैसे देश के सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चीनी मोबाइल ऐप पर लगे प्रतिबंध को चीन पर डिजिटल स्ट्राइक करार दिया और ऐसा करते हुए इसकी तुलना उस घटना से कर बैठे जिसमें भारतीय युद्धक विमानों ने पाकिस्तान की सीमा में जाकर लक्ष्य को भेदा था।
आप ऐसी तुलना पर चकित हो सकते हैं। इसी बीच जनरल वीके सिंह ने आगे बढ़कर दावा कर दिया कि लद्दाख क्षेत्र में हुए संघर्ष में चीन के 40 सैनिक मारे गए हैं। उन्हें यह कैसे पता लगा होगा? भारत सरकार की ओर से चीन को हुए जान-माल के नुकसान के बारे में कोई ठोस दावा नहीं किया गया था। ऐसे में मंत्री महोदय को उस समय अपयश का सामना करना पड़ा जब चीन ने उनके दावे का प्रतिवाद किया।
इसके विपरीत जिन मंत्रियों को मामले के बारे में ज्यादा मालूमात थी उन्होंने अपेक्षाकृत ज्यादा समझदारी का परिचय दिया और उन्हें क्या कहना है या नहीं कहना है यह तय करने में सावधानी बरती। गृह मंत्री अमित शाह ने एएनआई को दिए साक्षात्कार में कहा कि वह इस वक्त (28 जून को) चीन को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने पहले वक्तव्य के बाद कुछ भी कहने में पर्याप्त संयम बरता।
राजनाथ सिंह ने 2 जून को एक वीडियो साक्षात्कार के जरिये देश के लोगों को भरोसे में लेते हुए कहा, 'यह सच है कि चीन के लोग सीमा पर हैं। उनका दावा है कि यह उनकी जमीन है जबकि हमारा दावा है कि वह हमारी जमीन है। इस बात को लेकर असहमति है और अच्छी खासी संख्या में चीन के लोग भी आ गए हैं। भारत ने आवश्यक कदम उठाए हैं।' उनका यह बयान तथ्यात्मक और सुविचारित था। हालांकि इसकी क्रोधोन्मत व्याख्या की गई। कुछ ही लोग यह जानते हैं कि उसके तत्काल बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात करके राजनाथ सिंह के नियंत्रण को लेकर कृतज्ञता जताई। पेइचिंग में भारतीय राजदूत विक्रम मिस्री के साथ भी ऐसा ही किया गया।
अधिकांश राजनेताओं के लिए, भले ही वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जैसे अनिर्वाचित हों, आपदा भी अवसर होती है। खासतौर पर तब जबकि आपदा टल गई हो। भला ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो उसके प्रबंधन का श्रेय नहीं लेना चाहेगा? राजनाथ सिंह के सामने ऐसे तमाम रक्षामंत्रियों का उदाहरण था जो ऐसे संकट से निपट चुके थे।
मसलन वी कृष्ण मेनन की तरह वह भी अपने फायदे के लिए वरिष्ठ सैन्य नेतृत्व को बरगला सकते थे। जॉर्ज फर्नांडिस की तरह वह भी दुनिया के विभिन्न नेताओं को खत लिखकर बता सकते थे कि भारत का सबसे बड़ा शत्रु कौन है। एके एंटनी की तरह वह कुछ न करने का विकल्प भी चुन सकते थे।
राजनाथ सिंह ने कम बोलने और जरूरत के मुताबिक बोलने का निर्णय लिया। वह निरंतर सशस्त्र बलों के संपर्क में थे और 5 जुलाई की सुबह ही थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने उन्हें यह जानकारी दे दी थी कि चीन के सैनिकों ने गलवान से वापस लौटने लगे हैं और कैसे एनएसए अजीत कुमार डोभाल और वांग यी की वार्ता से यह संभव हुआ। पूरे देश को यह जानकारी उस दिन शाम को हुई।
जब तनाव चरम पर था, उस समय चीन के रक्षा मंत्री ने दो बार मुलाकात का प्रस्ताव रखा: पहली बार राजनाथ सिंह के विजय दिवस परेड के लिए रूस जाने के पहले मॉस्को में बैठक का प्रस्ताव रखा गया। दूसरी बार जब वह मॉस्को में थे उस वक्त वार्ताकारों के जरिये उनके पास मुलाकात का संदेश भेजा गया। राजनाथ सिंह ने दोनों प्रस्तावों को नकार दिया और यह संकेत दिया कि कूटनीति को उसका काम करने दिया जाए। यह एक रणनीतिक कदम था- अगर सैन्य तनाव बढ़ता तो भारत को भी तैयार रहना था।
कहने का तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं है कि राजनाथ सिंह ने चीन से मिली चुनौती को हल्के में लिया। सन 2014 में जब मोदी और शी चिनफिंग अहमदाबाद में मिले थे, उस वक्त राजनाथ सिंह गृह मंत्री थे। शी के भारत में रहते हुए भी सीमा पर चूमर में सैन्य जमावड़ा बढ़ रहा था।
सिंह ने प्रधानमंत्री को सतर्क किया और उन्होंने रूखे अंदाज में चीनी नेता से पूछ डाला कि क्या चीन की सेना और उसके राजनीतिक नेतृत्व में तालमेल की कमी है? क्योंकि चीन के शीर्ष नेता गहरी मित्रता के वादे के साथ भारत में हैं और सीमा पर सैन्य जमावड़ा बढ़ रहा है।
शी ने कहा कि वह पड़ताल करके उन्हें उत्तर देंगे। दोनों नेताओं को अगले दिन हैदराबाद हाउस में दोपहर के भोजन पर इस विषय में बात की थी लेकिन शी ने उसके पहले ही मोदी को आश्वस्त किया कि चीजें जल्दी ठीक हो जाएंगी।
उसके बाद शी जितने समय भी भारत दौरे पर रहे, इस मसले का उल्लेख नहीं किया गया। चीन वापसी के बाद शी ने कहा कि पीएलए को क्षेत्रीय युद्ध जीतने के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत ने इसे पीएलए पर नियंत्रण करने की शी की कोशिशों का हिस्सा समझा बजाय कि भारत को निशाना बनाकर दिया गया बयान मानने के।
राजनाथ सिंह मानते हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा से सेनाओं की वापसी को समस्या का अंत मानना भोलापन होगा। इसके विपरीत माना जाता है कि उन्होंने रक्षा बलों से लंबी तैयारी रखने को कहा है। परंतु वह यह भी जानते हैं कि ऐसे तनावपूर्ण समय में डींग हांकना नुकसानदेह हो सकता है। अन्य नेताओं को शायद ऐसा करना जरूरी लग रहा है लेकिन राजनाथ सिंह केवल दर्शाना चाहते हैं कि वह तैयार हैं।
सौजन्य : बिज़नेस स्टैण्डर्ड
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