ग्राम समाचार, भागलपुर। परिधि द्वारा शुक्रवार को काव्य संध्या "प्रेम के रंग" का आयोजन किया गया। वर्चुअल कविता संध्या में कवि और कवयित्रियों ने प्रेम को समर्पित कविताओं का पाठ किया। प्रेम कोई नया नहीं है, यह प्रकृति जन्य है और समाज में इसे विशेष महत्व दिया जाता रहा है। तभी तो राधा-कृष्ण, लैला-मजनू, शीरी-फरहाद के किस्से कहे सुने जाते रहे हैं। वहीं दूसरी ओर प्रेम को ईश्वर से जोड़ते हुए कभी सूफी संतों जैसे- बुल्ले शाह, निजामुद्दीन औलिया, मीरा, रहीम रसखान आदि के गीतों को तो हम जानते ही हैं। तब भी रूढ़ीवादी ताकतें लगातार प्रेम को एक दायरे में बांधने की कोशिश करते रहे हैं। इसलिए कभी जाति, कभी अलग धर्म, कभी अलग समुदाय, कभी अलग नस्ल के नाम पर प्रेमी जोड़ों को प्रताड़ित किया जाता रहा है। हम मर्यादित प्रेम को समाज के विकास के लिए जरूरी समझते हैं। राधा शैलेन्द्र ने अपनी कविता-यूँ भूलकर इन्सनियत तुम बिखरोगे कुछ इस कदर, खुद अपने हाथों कत्ल हो रोती है मौत, जिस कदर सम्भलो अभी भी वक़्त है, जनों अभी भी एक हो मजहब अलग है। खून की रंगत तो एक है ।
सीनू कल्याणी ने अपनी रचना- बांधना हो बांध मुझको
शब्द में कूची कलम में
डालना है ढाल मुझको
प्रेम के अविरल तरल में । सुनाया ।
पूनम पांडे ने प्रेम और आकर्षण के बारीकियों को रेखांकित करती कविता -....एक बारीक रेखा
प्रेम और आकर्षण के बीच
प्रेम कभी पूर्ण नहीं होता और आकर्षण क्षणिक होता है
प्रेम सभी संबंधों की जान होती है
लेकिन,प्रेम के लिए
संबंधों का होना जरूरी नहीं होता.. !! के माध्यम से प्रेम की गरिमा रखी। धन्यवाद देते हुए उदय ने कहा कि वर्चस्व वादी ताकतें मनुष्य मनुष्य में नफरत और घृणा पैदा करती है। कभी छूत अछूत के नाम पर एक दूसरे से अलग करती है तो कभी धर्म और जात के नाम। अपनी नस्ल और समुदाय की श्रेष्ठता कायम करने हेतु उसकी शुद्धता बनाए रखना चाहते हैं। अजनबी बनाए रखना चाहते हैं। प्रेम मनुष्य सभ्यता का आधार है इसलिए सभी धर्मों ने प्रेम की दुहाई दी है । हर धर्म प्रेम करना सिखाता है नफरत नहीं। इस अवसर पर नेहा कश्यप पिंकी मिश्रा कमल मिश्रा, संयुक्ता भारती, सीनू कल्याणी पूनम पांडे आरजू आलिया खान इकराम हुसैन साद आदि ने अपनी रचना पढ़ी और दीप प्रिया, एनुल होदा, रश्मि राज, अभिषेक उदय, कोमल गुप्ता रमेश कमल सुभाष पवन मृदुला सिंह नीरज कुमार रविंद्र कुमार सिंह अशअर उरैनवी आदि कविता संध्या में शामिल हुए।
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