ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:- भारत रत्न लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 150वीं जयंती के अवसर पर शुक्रवार शाम साहित्य समागम भारत की गोड्डा जिला शाखा द्वारा एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन कर देश के प्रथम गृह मंत्री को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। स्थानीय गायत्री शक्ति पीठ में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ बतौर मुख्य अतिथि देवघर से पधारे संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि शंकर साह, विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल सीनियर सिटीजन एसोसिएशन की राष्ट्रीय सचिव गीता मिश्रा एवं प्रतिभागी कवियों द्वारा लौह पुरुष के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ।
संस्था के जिलाध्यक्ष डॉ. ब्रह्मदेव कुमार की अध्यक्षता सह संचालन में आयोजित कार्यक्रम में स्वागत संबोधन संस्था के जिला सचिव सोनू कुमार झा ने किया। मुख्य अतिथि श्री साह ने अपने संबोधन में कहा कि सरदार पटेल ने जिस निस्वार्थ और समर्पण की भावना से देश की सेवा की हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। साहित्यकारों की तो यह महती जिम्मेवारी है की उनके सपनों के भारत को बनाने में अपना योगदान दें। विषय प्रवेश करते हुए मुखर वक्ता के तौर पर उपाध्यक्ष सुरजीत झा ने सरदार पटेल के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को अविस्मरणीय एवं सदैव वंदनीय बताया। साथ ही उन्होंने शहादत दिवस पर देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री आयरन लेडी स्व. इंदिरा गांधी जी को भी याद करते हुए संस्था की तरफ से शब्द - श्रद्धांजलि दी।
अन्य वक्ताओं में गीता मिश्रा, अरविंद सिन्हा एवं शैलेंद्र राम ने अपने - अपने विचार रखे और सरदार पटेल को एक श्रेष्ठ जन नायक की संज्ञा दी। कार्यक्रम के दूसरे चरण में आयोजित काव्यांजलि में नवोदित कवियित्री अनामिका मिश्रा की प्रस्तुति "हे सरदार नमन करती हूं" एवं "हां - हां मैं नारी हूं", विनीता प्रियदर्शिनी की "छठ पर्व हमें सिखाता" एवं बाल कविता "दादा जी का चश्मा टूटा", पोड़ैयाहाट से आई अर्पणा कुमारी की तरन्नुम में पेश "आओ पूजें इस माटी को" अहमद फिरोज की "अदब की महफिल लगी हुई है", अरविंद सिन्हा की राजनीति पर चोट करती रचना "सच बोल मेरे मांझी नाव डूबी कैसे", ऋतंभरा 'मीठी' की "काश हम स्वयं रच पाते अपनी श्रृष्टि" एवं "सोचती हूं कभी - कभी उस मन्नत के धागों का ईश्वर करते क्या होंगे", शैलेंद्र राम की "कोटिशः नमन सरदार पटेल को ", विपुल दुबे की सरदार पटेल को समर्पित "हे नवभारत के निर्माता" एवं "एक राज है जिसकी कहानी", चेतन राज की "नया भारत बनाना है", सोनू कुमार झा की "जीवन के लक्ष्य से जीवन संघर्ष तक" तथा "बचपन में हाथ पकड़ चलना सीखा है", प्रकाश कुमार यादव की "सांसों को एहसासूं तो", डॉ. स्मिता शिप्रा की अंगिका रचना "मईया कहिया देबौ दर्शनीया", अधिवक्ता अनंत नारायण दुबे की "जागो तो एक बार युवाओ जागो तो" सुरजीत झा की रचना "मैंने एक गांव को मरते देखा है" तथा "दीपशिखा हो तुम", ओम प्रकाश मंडल की "हम भी कर्म कुछ ऐसा कर जाएं" डॉ. ब्रह्मदेव कुमार की प्रस्तुति "और वह दीप अनायास ही भूकभुकाने लगा था" तथा रवि शंकर साह की तरन्नुम में पेश "मेरी आंखों में अक्श है तेरा, ये तो तुझे बताऊं कैसे" को श्रोताओं की भरपूर सराहना मिली। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक प्रकाश कुमार यादव ने किया।



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