ग्राम समाचार, पथरगामा ब्यूरो रिपोर्ट:- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर पथरगामा में स्वयंसेवकों ने निकाला पथ संचलन। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयं सेवको ने पूर्ण गणवेश धारण कर संचलन के उपरांत स्वयंसेवकों ने शस्त्र पूजन किया तत्पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक बिगेंद्र कुमार जी ने अपने बौद्धिक में बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितम्बर 1925, विजयादशमी के पावन अवसर पर डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर के मोहितेबाडा में की गई थी। उस समय भारत पराधीन था, हिंदू समाज में व्यापक विघटन, भय, हीनभावना फैली हुई थी और सांप्रदायिक दंगे-फसाद, आत्मरक्षा में असमर्थता जैसी सामाजिक विकृतियां थी। हेडगेवार बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे, उन्होंने अपने छात्रों और सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रमंडल की एकात्मता, अनुशासन और संगठन के भाव पर बल दिया।डॉ. हेडगेवार का व्यक्तित्व और संघर्ष निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी और महान आयोजक के रूप में थे। वे दो बार ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आंदोलनों में भाग लेकर जेल गए—पहली बार 1908 में 'वन्दे मातरम्' आंदोलन के दौरान और दूसरी बार 21 जुलाई 1930 में जंगल आंदोलन के लिए। उनके जेल जीवन अनुभवों ने उन्हें समझाया कि सामाजिक जागरण और अनुशासन से ही राष्ट्र को स्वतंत्र किया जा सकता है।तत्कालीन परिस्थितियां और संघ की स्थापना का उद्देश्य सन् 1925 तक यह स्पष्ट हो चुका था कि केवल राजनैतिक या बाह्य आंदोलनों के भरोसे स्वतंत्रता नहीं मिलेगी—समाज का सांगठनिक और सांस्कृतिक उत्थान जरूरी है। इसलिए डॉ. साहब ने RSS की स्थापना की और उसका मूल उद्देश्य राष्ट्र की स्वतंत्रता बताते हुए हिन्दू समाज को संगठित करने पर बल दिया। उन्होंने पंच परिवर्तन समाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण, स्व का बोध, और नागरिक कर्तव्यों के साथ-साथ शिक्षा, सेवा, संगठन, नेतृत्व पर विशेष बल देते हुए कहा की तकनीकी, विज्ञान, महिला सशक्तिकरण, एवं वैश्विक स्तर पर हिन्दू समाज की जागरूकता और संगठन बहुत ही आवश्यक है।भविष्य में संघ का ज़ोर आत्मनिर्भर राष्ट्र-निर्माण, सकारात्मक सामाजिक बदलाव, ग्रामीण-शहरी संतुलन, पर्यावरण-जागरूकता और विश्वबंधुत्व पर होगा। वर्तमान चुनौतियाँ और उत्तरदायित्व आज समाज में विघटन, सांप्रदायिकता, छुआछूत, पर्यावरण संकट, नशाखोरी आदि गंभीर चुनौतियाँ हैं। पंच परिवर्तन के सहारे संघ ने शिक्षा, सामाजिक मोह, जातिवाद, गरीबी, अपनेपन की भावना को केंद्र में रखकर समाज उत्थान के लिए योजनाबद्ध कार्य शुरू किए हैं। संघ का शताब्दी वर्ष केवल उपलब्धियों का नहीं, बल्कि समाज को नया प्रेरणा-मार्ग देने का संकल्प वर्ष है। संघ का कार्य किसी एक विचार या संगठन तक सीमित नहीं, बल्कि समूचे राष्ट्र को एकात्मता, अनुशासन, और सामाजिक जिम्मेदारी से सशक्त बनाना है। आने वाले वर्षों में, संघ पंच परिवर्तन और सामाजिक सामंजस्य के साथ भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाने के लिए कृत संकल्पित है। कार्यक्रम में मौके पर सैकड़ों स्वयंसेवक उपस्थित थे।
Pathargama News: पंच परिवर्तन से ही समरसता स्व का बोध व आत्मनिर्भर भारत की कल्पना- बिगेद्र कुमार
ग्राम समाचार, पथरगामा ब्यूरो रिपोर्ट:- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर पथरगामा में स्वयंसेवकों ने निकाला पथ संचलन। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयं सेवको ने पूर्ण गणवेश धारण कर संचलन के उपरांत स्वयंसेवकों ने शस्त्र पूजन किया तत्पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक बिगेंद्र कुमार जी ने अपने बौद्धिक में बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितम्बर 1925, विजयादशमी के पावन अवसर पर डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर के मोहितेबाडा में की गई थी। उस समय भारत पराधीन था, हिंदू समाज में व्यापक विघटन, भय, हीनभावना फैली हुई थी और सांप्रदायिक दंगे-फसाद, आत्मरक्षा में असमर्थता जैसी सामाजिक विकृतियां थी। हेडगेवार बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे, उन्होंने अपने छात्रों और सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रमंडल की एकात्मता, अनुशासन और संगठन के भाव पर बल दिया।डॉ. हेडगेवार का व्यक्तित्व और संघर्ष निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी और महान आयोजक के रूप में थे। वे दो बार ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आंदोलनों में भाग लेकर जेल गए—पहली बार 1908 में 'वन्दे मातरम्' आंदोलन के दौरान और दूसरी बार 21 जुलाई 1930 में जंगल आंदोलन के लिए। उनके जेल जीवन अनुभवों ने उन्हें समझाया कि सामाजिक जागरण और अनुशासन से ही राष्ट्र को स्वतंत्र किया जा सकता है।तत्कालीन परिस्थितियां और संघ की स्थापना का उद्देश्य सन् 1925 तक यह स्पष्ट हो चुका था कि केवल राजनैतिक या बाह्य आंदोलनों के भरोसे स्वतंत्रता नहीं मिलेगी—समाज का सांगठनिक और सांस्कृतिक उत्थान जरूरी है। इसलिए डॉ. साहब ने RSS की स्थापना की और उसका मूल उद्देश्य राष्ट्र की स्वतंत्रता बताते हुए हिन्दू समाज को संगठित करने पर बल दिया। उन्होंने पंच परिवर्तन समाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण, स्व का बोध, और नागरिक कर्तव्यों के साथ-साथ शिक्षा, सेवा, संगठन, नेतृत्व पर विशेष बल देते हुए कहा की तकनीकी, विज्ञान, महिला सशक्तिकरण, एवं वैश्विक स्तर पर हिन्दू समाज की जागरूकता और संगठन बहुत ही आवश्यक है।भविष्य में संघ का ज़ोर आत्मनिर्भर राष्ट्र-निर्माण, सकारात्मक सामाजिक बदलाव, ग्रामीण-शहरी संतुलन, पर्यावरण-जागरूकता और विश्वबंधुत्व पर होगा। वर्तमान चुनौतियाँ और उत्तरदायित्व आज समाज में विघटन, सांप्रदायिकता, छुआछूत, पर्यावरण संकट, नशाखोरी आदि गंभीर चुनौतियाँ हैं। पंच परिवर्तन के सहारे संघ ने शिक्षा, सामाजिक मोह, जातिवाद, गरीबी, अपनेपन की भावना को केंद्र में रखकर समाज उत्थान के लिए योजनाबद्ध कार्य शुरू किए हैं। संघ का शताब्दी वर्ष केवल उपलब्धियों का नहीं, बल्कि समाज को नया प्रेरणा-मार्ग देने का संकल्प वर्ष है। संघ का कार्य किसी एक विचार या संगठन तक सीमित नहीं, बल्कि समूचे राष्ट्र को एकात्मता, अनुशासन, और सामाजिक जिम्मेदारी से सशक्त बनाना है। आने वाले वर्षों में, संघ पंच परिवर्तन और सामाजिक सामंजस्य के साथ भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाने के लिए कृत संकल्पित है। कार्यक्रम में मौके पर सैकड़ों स्वयंसेवक उपस्थित थे।

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