ग्राम समाचार, भागलपुर। खानकाह पीर दमड़िया शाह खलीफा बाग़ भागलपुर के सज्जादानशीन हज़रत मौलाना सैयद शाह फकरे आलम हसन मजाहरी इन दिनों अज़रबैजान के दौरे पर हैं। इस दौरान उन्होंने बाकू (अज़रबैजान की राजधानी) में स्थित ऐतिहासिक और रूहानी दरगाह बीबी हैबत पर हाज़िरी दी, जो अहले बैत की महान हस्ती हज़रत बीबी फातिमा हकीमा सलामुल्लाह अलैहा का मजार मुबारक है। हज़रत बीबी फातिमा हकीमा, हज़रत इमाम मूसा काज़िम रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु की सुपुत्री और हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रज़ी अल्लाहु अन्हु की पोती थीं। आप अत्यंत परहेज़गार, इबादतगुज़ार और नेक ख़ातून थीं, जिन्हें अहले बैत की महान महिलाओं में शुमार किया जाता है। आपका मजार बाकू में कैस्पियन सागर के किनारे एक विस्तृत क्षेत्र में स्थित है, जिसकी एक ओर पहाड़ी श्रृंखला है और दूसरी ओर आम मुस्लिमों की कब्रें हैं। मौलाना फखरे आलम मजाहरी ने ज़ियारत के बाद कहा कि अहले बैत की पाक हस्तियों ने उम्मवी और अब्बासी दौर में जो अत्याचार झेले, वह इतिहास का एक न भूलने वाला अध्याय है। हज़रत इमाम मूसा काज़िम रज़ी अल्लाहु अन्हु को हारून रशीद के दौर में 14 वर्षों तक कैद में रखा गया, जहां आपने शहादत पाई। इन्हीं अत्याचारों से बचने के लिए अहले बैत के कई अफराद ने विभिन्न देशों की ओर हिजरत की, जिनमें हज़रत बीबी हकीमा सलामुल्लाह अलैहा का अज़रबैजान पहुंचना भी शामिल है। हज़रत मौलाना ने आगे कहा कि अहले बैत से मुहब्बत ईमान का हिस्सा है और उनके नक्श-ए-क़दम पर चलना ही हमारे दीन और दुनिया की निजात का ज़रिया है। इस मौके पर उन्होंने उम्मते मुस्लिमा और ख़ासकर अहले बैत से मुहब्बत रखने वालों के लिए दुआ की कि अल्लाह तआला सबको अहले बैत के पाकीज़ा किरदार को अपनाने, उनके तरीक़े पर चलने और हक़ व इंसाफ़ की राह में सच्चाई से डटे रहने की तौफ़ीक़ अता फरमाए।उन्होंने इस बात पर भी ख़ुशी ज़ाहिर की कि इससे पहले उन्हें हज़रत फातिमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा (हज़रत इमाम मूसा काज़िम की दूसरी सुपुत्री) के मजार, जो क़ुम, ईरान में स्थित है, वहाँ हाज़िरी का भी शरफ़ मिल चुका है। अब बाकू, अज़रबैजान में हज़रत फातिमा हकीमा सलामुल्लाह अलैहा की ज़ियारत नसीब हुई। उन्होंने इस दौरे को रूहानी दृष्टि से बेहद मुबारक और क़बूलियत से भरा हुआ क़रार दिया और अल्लाह से दुआ की।

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