प्रयागराज महाकुंभ से संस्कारी दीक्षा ग्रहण कर रेवाड़ी पहुंचे अजीतानंद गिरी महाराज का स्वागत। भूरथल ठेठर शिव मंदिर पर ग्रामीणों ने फूलमाला पहनाकर डीजे के साथ नागा संस्कारी बाबा अजीतानंद का स्वागत किया।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर नागा संस्कार की दीक्षा लेकर रविवार को रेवाड़ी पहुंचे महंत अजीतानंद का गांव पहुंचने पर स्वागत किया गया। महंत अजीतानंद महाराज से नागा साधु संन्यासी बने अजीतानंद गिरी का गांव पहुंचने पर डीजे के साथ स्वागत किया गया।
गांव काकोडिया जाट भूरथल तथा भूरथल ठेठर सहित आसपास के गांव से पहुंचे ग्रामीणों ने पुष्प वर्षा कर फूलमाला और नोटों की माला पहनाकर तथा शाल ओढ़ाकर अजीतानंद गिरी महाराज से आशीर्वाद लिया। अजीतानंद गिरि महाराज ने कहा कि प्रयागराज में 144 साल बाद महाकुंभ रूपी पर्व आया है जो साधु संतों महात्माओं का दुनिया का सबसे बड़ा समागम है। उन्होंने बताया कि प्रयागराज संगम के सेक्टर 19 में स्थित आह्वान अखाड़े में उनके गुरु गोविंद गिरी तथा दादा गुरु झोपडी वाले ने उनकी नागा संस्कारी दीक्षा कराई। इस कठोर तप के बाद अब वे नागा सन्यासी बन गए हैं।
कुलदीप, महावीर सिंह, महेश यादव एडवोकेट तथा राजेश कौशिक आदि ग्रामीणों ने कहा कि यह उनके लिए सौभाग्य की बात है कि गुरु जी नागा संस्कार की दीक्षा ग्रहण कर गांव पहुंचे है। आज उनका समस्त ग्रामीणों की ओर से गांव के शिव मंदिर में स्वागत किया गया है और डीजे के साथ नाच गाकर धूमधाम से गांव की छतरी वाले आश्रम तक छोड़कर आएंगे। इस अवसर पर महावीर प्रसाद, कुलदीप सिंह, मदनलाल सोमदत्त, कपिल धारूहेड़ा चुंगी, महेश यादव एडवोकेट, कालाका से सुरेंद्र भगतजी, राजेश कौशिक, नरेश नंबरदार, शमशेर तथा देवेंद्र आदि सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं पुरुष और बच्चे उपस्थित रहे।
अजीतानंद गिरी महाराज ने कहा कि महाकुंभ में योगी सरकार की ओर से बहुत ही बेहतर व्यवस्था की गई है। साधु संतों की शाही स्नान के अलावा आम श्रद्धालुओं के लिए भी अच्छे बंदोबस्त किए गए हैं। प्रतिदिन खालसा में एक साथ हजारों साधु संत भोजन करते हैं। नागा संस्कार की पूरी प्रक्रिया बताते हुए कहा कि मौनी अमावस्या के दिन उनका नागा संस्कार हुआ था। आह्वान अखाड़े से उनकी नागा दीक्षा हुई जो चौबीस घंटे की कड़ी तपस्या थी। गंगा किनारे पर एक सौ एक गुप्ची (डुबकी) लगाकर उन्होंने अपनी तपस्या पूरी की। सांसारिक मोह माया व्यसन आदि छोड़कर अब वे नागा साधु बन गए हैं। उन्होंने कहा कि गांव वासियों ने जो उन्हें मान सम्मान दिया है उसका वे सदैव आभारी रहेंगे।
उन्होंने बताया कि पहले वे गृहस्थी थे लेकिन अब पूरी तरह से सन्यासी हो गए हैं। उन्होंने कहा कि ऋषियों मुनियों से सुना था कि पचास वर्ष के बाद सांसारिक मोह माया को त्यागकर संन्यास ले लेना चाहिए जिसके बाद उन्होंने महाकुंभ में जाकर नागा संस्कार की दीक्षा ग्रहण की और अब वे पूरी तरह से नागा संस्कारी बन गए हैं।
घोर तप के बाद ही महाकुम्भ के दौरान एक सामान्य संन्यासी नागा बनता है और जब नागा बनता है तो शस्त्रत्त् व शास्त्रत्त् दोनों की शिक्षा में पारंगत होता है। नागा संन्यासी को धर्म और शस्त्रत्त् चलाने की पूरी दीक्षा दी जाती है।
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