परम पूज्या गुरु मां *आर्यिका रत्न 105 अर्हंश्री माताजी* ने रेवाड़ी के नसिया जी में प्रणम्य सागर मांगलिक भवन में चल रहे 48 दिवसीय भक्तामर विधान के अंतर्गत 14 वें काव्य के महत्व के बारे में बताया।
भक्तामर का चौदहवा एवं पंद्रहवाँ काव्य युगल काव्य है। इन दोनों की आराधना एक साथ की जाती है। यह दोनों ही काव्य व्यसनों से मुक्त कराने वाले हैं। इस काव्य में मानतुंगआचार्य दो विकार मार्ग और अविकार मार्ग के बारे में बता रहे हैं। यदि विकार मार्ग में प्रवेश करोगे तो सफल नहीं होगे। अविकार का अर्थ है जहां पर किंचित भी विकार ना हो, इसीलिए विकार मार्ग को त्याग कर अविकार मार्ग को अपनाओ। जब अविकार मार्ग को स्वीकार कर लोगे तो भक्तामर स्तोत्र में सफल हो जाओगे। ब्रह्म की आराधना जो ब्रह्म मुहूर्त में ब्रह्मचर्य के साथ करता है, जो अविकार मार्ग में प्रवेश कर जाता है तो उसे दुनिया की कोई भी शक्ति पराजित नहीं कर सकती है।
आज के पुण्यार्जक परिवार-
श्रीमान देवेंद्र कुमार जैन श्रीमती सविता जैन , श्री सचिन जैन श्रीमती प्रीति जैन, श्री पुनीत जैन श्रीमती अर्चना जैन, सलोनी जैन, रक्षित जैन, मोक्षित जैन वंदित जैन रहे।
सूचना प्रभारी "श्रीमती नेहा जैन प्राकृत" ने बताया प्रवचन के पश्चात आज का नियम में "केले का त्याग एवं अपने बच्चो को नही डाटना एवं संकल्प-7 बार 15 वे काव्य को निश्चल और निस्छल स्वभाव से करना" यह विधान "विधानचार्य श्री वरुण भैया" द्वारा कराया जा रहा है, यह 48 दिनों तक इसी तरह पूरी भक्ति के साथ चलेगा। सैकड़ों परिवार प्रभु भक्ति का आनंद ले रहे हैं।
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