पितृ दिवस विशेष
पापा
उंगली पकड़कर चलना सिखाते हैं पापा
कंधे पर बिठाकर मेला दिखाते हैं पापा।
बेशक बेरंगी दुनिया खुद जी लेते हैं
साथ होने का एहसास दिलाते हैं पापा।।
बिन कहे भी बहुत कुछ कह जाते हैं पापा
मेरी नादानी में चुप्पी सह जाते हैं पापा।
मेरी खुशी के लिए परिवार से दूर जाकर
भीड़ में सदैव अकेले रह जाते हैं पापा।।
मेरी पढ़ाई के लिए डाँट लगाते हैं पापा
सेहत के लिएमुझे खेल खिलाते हैं पापा।
फीस मेरी जब भी कम पड़ जाती है
साहूकार से ऋण लेकर आते हैं पापा।।
जिम्मेवारी का एहसास दिलाते हैं पापा
सेवाभाव व दायित्व सिखाते हैं पापा।
छोटी - छोटी मेरी खुशियों की खातिर
घोड़ा बनकर पीठ पर घूमाते हैं पापा।।
जीवन के सभी सुरीले साज हैं पापा
मेरे लिए सबसे बड़े जांबाज है पापा।
परिश्रम मुझे उन्होंने पाला है मुझको
मुझे तुम पर सदा ही नाज है पापा।।
मेरा सब कुछ, मेरे भगवान है पापा
इस जगत में सबसे विद्वान है पापा।
ज्यादा नहीं पर गर्व से कह सकता हूँ
मेरे लिए सबसे महान है मेरे पापा।।
मौलिक रचना
रचनाकार
अरविंद भारद्वाज
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें