Godda News: जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वाधान में जिला स्तरीय मल्टी स्टेकहोल्डर्स पर हुई परिचर्चा




ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:-  समाहरणालय स्थित डीआरडीए सभागार में झारखण्ड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देश के आलोक में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में जिला स्तरीय मल्टी स्टेकहोल्डर्स की परिचर्चा आयोजित की गई। परिचर्चा के दौरान प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, गोड्डा, उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक, प्रधान जज, परिवार न्यायालय, प्रधान जज, व्यवहार न्यायालय, सचिव, डालसा द्वारा सभागार में उपस्थित जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन एवं सिविल कोर्ट के पदाधिकारियों को संबोधित किया गया एवं पोक्सो कानून, जुवेनाइल जस्टिस कानून के प्रावधानों तथा राष्ट्रीय लोक अदालत के बारे में सभी उपस्थित अधिकारियों को विस्तार से जानकारी दी गई।प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए जानकारी दी कि बच्चों के प्रति होने वाले यौन अपराध, यौन उत्पीड़न एवं पोर्नोग्राफी के विरुद्ध संरक्षण के उद्देश्य से पॉक्सो कानून वर्ष 2012 में लागू किया गया था। पॉक्सो एक्ट के तहत् मामलों की सुनवाई में देखा गया है कि पीड़िता स्वयं को पीड़िता नहीं समझकर अपराधी समझने लगती है। यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों को इस मनोदशा से मुक्त कराने के लिए एक टीम एफर्ट आवश्यक है और इस संबंध में सभी संबंधित विभागों को पूर्ण संवेदनशीलता का परिचय देते हुए पीड़ित को न्याय दिलाने और उसके आत्मसम्मान को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। पुलिस जांच एवं न्यायिक प्रक्रिया को इतना चाइल्ड फ्रेंडली बनाने की जरूरत है कि यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चे पॉक्सो एक्ट के माध्यम से उपलब्ध कराए गए विधिक समाधानों से न्याय की प्राप्ति करते हुए अपने आत्मसम्मान को फिर से पा सकें। इसके लिए पुलिस , मेडिकल, बार एसोसिएशन , चाइल्ड वेलफेयर समिति , ज्यूडिशियरी एवं जिला प्रशासन से जुड़े सभी पदाधिकारियों को आपसी समन्वय बना कर पूर्ण संवेदनशीलता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। पॉक्सो एक्ट के मामलों में पीड़ित के राहत एवं पुनर्वास के उपायों के अंतर्गत इसका उचित ध्यान रखा जाए कि पीड़ित की शिक्षा का क्रम नहीं भंग हो। उपायुक्त जिशान कमर द्वारा उक्त कानूनों के प्रति जिला एवं पुलिस प्रशासन के अधिकारियों की समझ बढ़ाने के लिए ऐसी कार्यशालाओं के आयोजन की दूरदर्शिता को लेकर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, गोड्डा का आभार व्यक्त किया गया। उपायुक्त के द्वारा यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चियों की मनोदशा की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए उन्हें कानून के तहत अधिकार दिलाने, न्याय दिलाने और उनके साथ जो गलत हुआ है उसके परिमार्जन को सुनिश्चित करने हेतु सभी संबंधित विभागों को पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। उन्होंने उपस्थित अधिकारियों को निर्देश दिया किया कि ऐसे मामलों में पीड़िता को अपने परिवार का अंग समझकर पुलिस जांच एवं न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित करें।पुलिस अधीक्षक नाथू सिंह मीना ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट या जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के मामलों में पुलिस की भूमिका सबसे पहले शुरू होती है। कानून का वास्तविक रूप में क्रियान्वयन हो सके, पीड़िता को न्याय मिल सके और जेजे एक्ट के तहत् निरुद्ध किशोर के प्रति भी उचित व्यवहार हो, इसके लिए कानून के प्रावधानों का अनुपालन आवश्यक है।पॉक्सो एक्ट के मामलों में पीड़िता डरी सहमी एवं कुछ बताने की स्थिति में नहीं रहती। कई बार उसके जान पहचान वाले ही उसके साथ गलत करते हैं। ऐसे में पुलिस के जांच अधिकारी को पूर्ण संवेदनशीलता एवं चाइल्ड फ्रेंडली तरीके से ऐसे मामलों को देखने की आवश्यकता है। घटनास्थल की सही तरीके से जांच एवं साक्ष्यों का संग्रहण पीड़िता को न्याय दिलाने की पहली कड़ी है। पुलिस की कार्यवाही ही आगे की पूरी प्रक्रिया को निर्धारित करती है। मीडिया का भी सेंसीटाइजेशन आवश्यक है। पीड़िता से जुड़े किसी भी पहचान को उजागर नहीं करने में मीडिया का सहयोग भी आवश्यक है। प्रधान जज, परिवार न्यायालय द्वारा पॉक्सो एक्ट एवं जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों के बारे में कार्यशाला में उपस्थित अधिकारियों को विस्तार से जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य बच्चों को यौन हिंसा, स्पर्शीय या गैर स्पर्शीय यौन उत्पीड़न एवं पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से संरक्षण प्रदान करना है। विभिन्न यौन अपराधों के लिए आईपीसी में भी दंड का प्रावधान है, पर बच्चों के प्रति हुए यौन अपराधों के मामले में बच्चों को न्याय दिलाने और अपराधी को दंड सुनिश्चित करने के लिए पॉक्सो एक्ट में विशेष प्रावधान किए गए हैं। पॉक्सो एक्ट के माध्यम से यौन अपराध के शिकार बच्चे या बच्चियों के हित में विशेष सुरक्षोपाय किए गए हैं। पुलिस जांच प्रक्रिया, साक्ष्यों के संग्रहण एवं न्यायिक प्रक्रिया को ह्यूमन, कंपैसनेट एवं चाइल्ड फ्रेंडली बनाने के लिए पॉक्सो एक्ट में विशेष प्रावधान किए गए हैं।प्रधान जज, परिवार न्यायालय द्वारा पॉक्सो एक्ट एवं जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों के बारे में कार्यशाला में उपस्थित अधिकारियों को विस्तार से जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य बच्चों को यौन हिंसा, स्पर्शीय या गैर स्पर्शीय यौन उत्पीड़न एवं पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से संरक्षण प्रदान करना है। विभिन्न यौन अपराधों के लिए आईपीसी में भी दंड का प्रावधान है, पर बच्चों के प्रति हुए यौन अपराधों के मामले में बच्चों को न्याय दिलाने और अपराधी को दंड सुनिश्चित करने के लिए पॉक्सो एक्ट में विशेष प्रावधान किए गए हैं। पॉक्सो एक्ट के माध्यम से यौन अपराध के शिकार बच्चे या बच्चियों के हित में विशेष सुरक्षोपाय किए गए हैं। पुलिस जांच प्रक्रिया, साक्ष्यों के संग्रहण एवं न्यायिक प्रक्रिया को ह्यूमन, कंपैसनेट एवं चाइल्ड फ्रेंडली बनाने के लिए पॉक्सो एक्ट में विशेष प्रावधान किए गए हैं। एक साल के अंदर स्पीडी ट्रायल सुनिश्चित करने हेतु विशेष न्यायालय बनाए गए हैं, जिसमे एफआईआर दर्ज करने से लेकर फाइनल जजमेंट की कार्रवाई सिंगल विंडो प्रणाली के तहत निष्पादित की जाती है। पॉक्सो एक्ट जेंडर न्यूट्रल कानून है, जिसमें बच्चे या बच्ची दोनों के विरुद्ध हुए यौन अपराध के मामलों की पड़ताल की जाती है, जबकि आईपीसी में लैंगिक अपराध का पीड़ित सिर्फ महिला को ही माना गया है। आईपीसी में आरोपी को दोषसिद्ध नहीं होने तक निर्दोष माना गया है, जबकि पॉक्सो एक्ट के तहत् आरोपी को आरोप लगने के साथ ही दोषी मान लिया जाता है जब तक कि उसे अदालत द्वारा निर्दोष नहीं घोषित किया जाए। इस तरह पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार आरोपित पर ही होता है। पॉक्सो एक्ट के तहत् यदि पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम है तो उसके साथ भी यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में आएगा।बच्चों के साथ किसी भी तरह के यौन अपराध की जानकारी मिलने के बाद उसकी रिपोर्टिंग नहीं करना अथवा पुलिस पदाधिकारी द्वारा एफआईआर नहीं दर्ज करना भी दंडनीय अपराध है। पुलिस अधिकारी के क्षेत्राधिकार से बाहर हुए बाल यौन अपराध की सूचना पर भी किसी थाने के पुलिस अधिकारी द्वारा जीरो एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान है। किसी बच्चे के माता पिता या अभिभावक द्वारा बच्चे के यौन शौषण के झूठे मामले की शिकायत करना पॉक्सो एक्ट के तहत् दंडनीय अपराध है। किसी बच्चे या बच्ची के प्रति यौन अपराध की सूचना पर पुलिस स्टेशन के पदाधिकारी द्वारा तुरंत एफआईआर दर्ज करते हुए बिना समय गंवाए 24 घंटे के भीतर बच्चे का बयान लेना, उसका मेडिको लीगल जांच कराना, स्पेशल कोर्ट को सूचित करना, चाइल्ड वेलफेयर कमिटी को सूचित करना, घायल होने की स्थिति में हॉस्पिटल में भर्ती कराना, विशेष देखभाल एवं सुरक्षा की आवश्यकता होने पर शेल्टर होम में रखवाना सुनिश्चित करना होता है। सब इंस्पेक्टर रैंक या ऊपर के पुलिस पदाधिकारी, विशिष्ट रूप से महिला पुलिस अधिकारी को सिविल ड्रेस में पीड़ित का बयान लेना चाहिए। पीड़ित का बयान वर्बाटिम या शब्दशः लेना चाहिए, जैसा कि बच्चे द्वारा बताया गया। अगर पीड़ित बच्चा या बच्ची मेडिकल जांच के लिए तैयार नहीं है तो पुलिस, सीडब्ल्यूसी, मेडिकल अधिकारियों का दायित्व है कि पीड़ित की अच्छे तरह से काउंसलिंग कर उसे मेडिकल जांच के लिए तैयार करे। पीड़ित का नाम, उसके परिजन, मोहल्ला, स्कूल या उससे जुड़े किसी भी पहचान का उजागर करना पॉक्सो एक्ट के तहत दंडनीय अपराध है।

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Editor - भूपेन्द्र कुमार चौबे

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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