छठी शताब्दी के बाद राजपूत काल भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल कहलाया । छोटी बड़ी सैकड़ों रियासतों में सेना के अपने-अपने रिसाले और टुकड़िया थीं । अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अक्सर एक दूसरी रियासतों के बीच छोटे-मोटे युद्ध होते रहते थे । हारने वाले राजा को जीतने वाले से एक ईर्ष्या व बैर बना रहता था। विदेशी आक्रांताओं ने रियासतों के इस परस्पर मनमुटाव का फायदा उठाते हुए धीरे धीरे देश पर अपना वर्चस्व स्थापित करना शुरू किया । मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भी इसी नीति पर चलकर भारत पर अपना शासन कायम किया । मुगलों की अपेक्षा अंग्रेजों की रणनीति फूट डालो और राज करो अधिक कारगर साबित हुई । अंग्रेजों ने देश की सभी रियासतों को अपने अपने क्षेत्र में शासन के कुछ प्रभावी अधिकार भी दिए । इतिहास गवाह है की अंग्रेजों का कभी भी पूर्ण रूप से भारत पर शासन नहीं रहा । उन्होंने रियासतों को आगे करके आम जनता पर अपने कायदे कानून लागू किए । आगे चलकर अंग्रेजों ने इन रियासतों के सैनिक रिसालों को जातिगत रेजीमेंट में बदल कर जहां एक तरफ उन जातियों का मान सम्मान बढ़ाया वहीं उनके शौर्य पराक्रम की बड़ाई करके उन्हें प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध में अपने लिए लड़ने को इस्तेमाल भी किया । क्योंकि अधिकतर रियासतें राजपूत, सिख, जाट, ब्राह्मण भूमिहार व मुसलमानों की होने के कारण राजपूत रेजीमेंट, जाट रेजीमेंट, सिख रेजीमेंट , ब्राह्मण रेजीमेंट और मुस्लिम रेजिमेंट 1750 से 1917 के काल में खड़ी की गई । अहीर व गुर्जर जातियों की कोई प्रभावी रियासत ना होने के कारण ना तो उनकी कोई सैनिक टुकड़ी थी और ना ही अंग्रेजों ने उनकी जातियों की रेजीमेंट बनाना उचित समझा । इन जातियों के जवानों को अन्य जातीय रेजिमेंटों में भर्ती कर इनकी सेवाएं ली गई । द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में चमार रेजीमेंट भी अंग्रेजों ने खड़ी की लेकिन 1946 में उसे में तोड़ दिया गया । देश जब आजाद हुआ तो अंग्रेजों ने सभी रियासतों को भी अपने-अपने ढंग से हिंदुस्तान-पाकिस्तान या स्वतंत्र रहने की आजादी भी दी । इतिहास गवाह है पाकिस्तान में आज भी सोडा राजपूतों की अमरकोट रियासत मौजूद है । कश्मीर व हैदराबाद भी काफी समय तक स्वतंत्र रहे । मुस्लिम रेजिमेंट पाकिस्तान में चली गई। आजादी के बाद जिन क्षेत्रों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व मजबूत रहा उनका भी सरकार ने मान सम्मान रखते हुए 1970 में नागा रेजीमेंट का गठन किया । दुर्भाग्य से जिस प्रकार अहीर व गुजर जाती की आजादी से पहले कोई प्रभावी रियासत नहीं थी, आजादी के बाद भी इन जातियों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी इस मामले में उदासीन ही रहा । अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के आगे कभी भी इन जाति के धुरंधर नेताओं ने सत्ता में रहते हुए अपनी जातियों की रेजीमेंट बनवाने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की । इसमें कोई दो राय नहीं है की अहीर, गुर्जर, अनुसूचित व मेव जाति के युवा कद काठी और बहादुरी में रेजीमेंट वाली जातियों से कम नहीं है । आजादी के बाद देश की रक्षा करते हुए इन जातियों की कुर्बानी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । देश का मौजूदा निजाम बड़े बड़े ऐतिहासिक निर्णय ले रहा है । अहीर, गुर्जर ,मेव व अनुसूचित जाति की रेजीमेंट बनाए जाने से इन जातियों में भी देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने का जज्बा और अधिक बढ़ेगा । अगर जातिगत रेजिमेंट गठन करने में कहीं कोई सरकार को घाटे का सौदा नजर आता हो तो फिर क्षेत्रीय आधार पर बिहार,पंजाब,मद्रास,गढ़वाल,मराठा रेजीमेंटस,असम राइफल, जैक राइफल की तरह अहीरवाल रेजीमेंट, मेवात रेजीमेंट, अनुसूचित राइफल या रेजिमेंट का गठन किया जा सकता है।
आजादी के 75 साल बाद पिछड़ी व अनुसूचित जातियों के क्षत्रियत्व को नजरअंदाज करना राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में कदाचित नहीं है ।
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