ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:- अखिल भारतीय आदिवासी कुड़मि महासभा (ऐकता) के संयोजक व "कुड़मालि भाषा परिषद- संथाल परगना" के संयोजक संजीव कुमार महतो ने बताया कि झारखंड सरकार द्वारा जिलास्तरीय भाषा के सुची में कुरमाली (कुड़मालि) को गोड्डा और संथाल परगना के किसी जिला में शामिल ना रखना दुर्भाग्यपूर्ण है। गोड्डा जिला के 20 प्रतिशत आबादी का मातृभाषा कुड़मालि है वहीं पूरे संथाल परगना के 18 में से 11 विधानसभा में कुड़माली भाषी कुड़मि समुदाय के लाखों लोग निवासरत हैं। संथाल परगना में कुरमाली (कुड़मालि) को मान्यता नहीं देकर झारखंड सरकार ने कुड़मि समुदाय के लाखों लोगों की जुबान काटने जैसा काम किया है। गोड्डा जिला में कुड़मि समुदाय द्वारा लगातार हेमन्त सोरेन एवं सरकार के निर्णयकर्ताओं का पुतला जलाया जा रहा है। कुड़मि समाज के सभी अगुआओं व नेतृत्वकर्ताओं में अवनीकांत महतो , धनंजय महतो, अर्जून महतो, देवेंद्र कुमार महतो पूर्व जिप सदस्य, रविन्द्र महतो, के पी महतो, रजनीकांत महतो, दशरथ महतो, दयानंद महतो, खगेश महतो , संजय महतो, मदन महतो, भानु महतो, प्रफुल्ल महतो, अशोक महतो, सुरेश महतो, राजकपूर महतो, हरिनारायण महतो, आशुतोष महतो, मालेशर महतो, दीपक महतो, उमेश महतो, बिनोद महतो, दिनेश महतो, कालीचरण महतो, गौतम महतो, उदय महतो, समेत समुदाय के तमाम बुद्धिजीवी, छात्र-युवा सरकार के प्रति गहरी नाराजगी कार्यक्रमों व समाचार एवं सोशल मीडिया पर ब्यक्त कर रहे हैं । बीते माह से ही समाज के लोगों द्वारा उपायुक्त गोड्डा एवं स्थानीय विधायकों में अमित कुमार मंडल व प्रदीप यादव के साथ साथ झारखंड के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, कार्मिक प्रशासनिक सुधार एवं राज भाषा विभाग व कर्मचारी चयन आयोग झारखंड को प्रेषित किया है। लेकिन अबतक कुड़मालि भाषा को संथाल परगना के जिलों में शामिल करने या इस संबंध में कोई सरकारी पहल नहीं होने से आहत कुड़मि समाज द्वारा पिछले दिनों रंगमटिया में आयोजित बैठक में 23 फरवरी को अशोक स्तंभ में धारना का निर्णय लिया गया था। आज आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए धारना के लिए सुचना आवेदन अनुमंडल पदाधिकारी गोड्डा को दिया गया है। धारना प्रदर्शन के दिन आंदोलन के अगले चरण की घोषणा सामुहिक रूप से किया जायेगा!
*हमारी मांगे-*
1- गोड्डा समेत संथाल परगना में कुरमाली (कुड़मालि) भाषा लागू किया जाय।
2- सर्टिफिकेट और भाषा आधारित स्थानीयता संबंधित गजट को रद्द कर खतियान आधारित स्थानीयता लागू हो।
3- एकीकृत बिहार झारखंड के समय जिन 9 भाषाओं को मान्यता वही झारखंड की भाषा रहे।
4- नियोजन व रोजगार नीति में खतियानी को 80% , गैर खतियानी ( जो अन्य राज्यों की स्थानीयता परित्याग कर झारखंड में रचे-बसे हैं) को 10% और सभी भारतवासियों के लिए 10% आरक्षण सुनिश्चित हो। हमारे उपरोक्त चारों मांगो पर सरकार शीघ्र विचार करे नहीं तो चरणबद्ध आंदोलन को बाध्य होंगे।
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