स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी, मां भारती के लाडले सपूत वीर सावरकर की जयंती पर उन्हें नमन किया। वीर भगत सिंह युवा दल के प्रधान दिनेश कपूर ने इस अवसर पर कहा कि वीर विनायक दामोदर सावरकर बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत थे। वीर सावरकर अपनी वकालत की पढ़ाई करने जब लंदन गए उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई, जो लंदन में इंडिया हाउस में देशभक्त लोगों की मीटिंग करते थे। 1904 में उन्होंने अपने क्रांतिकारी संगठन 'अभिनव भारत' की स्थापना की। 1905 में बंगाल विभाजन का उन्होंने डटकर विरोध किया। उनके चिंतन में जाती पाती विहीन अखंड भारत की स्पष्ट कल्पना थी। अंग्रेज सरकार उनके कारनामों से घबरा गई। वह दुनिया के पहले क्रांतिकारी थे जिन्हें अंग्रेज सरकार ने दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पोर्ट ब्लेयर में काला पानी की सजा मिलने पर उन्हे अमानवीय यातनाएं दी गई, उन्हें कोल्हू में बैल की जगह लगा कर कठिन श्रम कराया गया। लेकिन इस महान योद्धा को अंग्रेज अपने संकल्प से डिगा नहीं सके।युवा दल के सांस्कृतिक सलाहकार प्रवीण ठाकुर ने कहा कि शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके साथी उन्हे अपना गुरु मानते थे। वीर सावरकर की लिखी हुई स्वतंत्रता संग्राम की पुस्तक जिस पर अंग्रेज सरकार ने पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया था को शहीद-ए-आजम व उनके साथियों ने सफलतापूर्वक पूरे देश में बंटवाया। वीर सावरकर जैसे ही वीरों के प्रयास से अंग्रेजों को देश छोड़कर जाना पड़ा। आज हम सभी उनके त्याग और बलिदान को कोटि-कोटि नमन करते हैं।
Rewari News : स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा थे- वीर सावरकर : दिनेश कपूर
स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा थे- वीर सावरकर
स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी, मां भारती के लाडले सपूत वीर सावरकर की जयंती पर उन्हें नमन किया। वीर भगत सिंह युवा दल के प्रधान दिनेश कपूर ने इस अवसर पर कहा कि वीर विनायक दामोदर सावरकर बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत थे। वीर सावरकर अपनी वकालत की पढ़ाई करने जब लंदन गए उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई, जो लंदन में इंडिया हाउस में देशभक्त लोगों की मीटिंग करते थे। 1904 में उन्होंने अपने क्रांतिकारी संगठन 'अभिनव भारत' की स्थापना की। 1905 में बंगाल विभाजन का उन्होंने डटकर विरोध किया। उनके चिंतन में जाती पाती विहीन अखंड भारत की स्पष्ट कल्पना थी। अंग्रेज सरकार उनके कारनामों से घबरा गई। वह दुनिया के पहले क्रांतिकारी थे जिन्हें अंग्रेज सरकार ने दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पोर्ट ब्लेयर में काला पानी की सजा मिलने पर उन्हे अमानवीय यातनाएं दी गई, उन्हें कोल्हू में बैल की जगह लगा कर कठिन श्रम कराया गया। लेकिन इस महान योद्धा को अंग्रेज अपने संकल्प से डिगा नहीं सके।युवा दल के सांस्कृतिक सलाहकार प्रवीण ठाकुर ने कहा कि शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके साथी उन्हे अपना गुरु मानते थे। वीर सावरकर की लिखी हुई स्वतंत्रता संग्राम की पुस्तक जिस पर अंग्रेज सरकार ने पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया था को शहीद-ए-आजम व उनके साथियों ने सफलतापूर्वक पूरे देश में बंटवाया। वीर सावरकर जैसे ही वीरों के प्रयास से अंग्रेजों को देश छोड़कर जाना पड़ा। आज हम सभी उनके त्याग और बलिदान को कोटि-कोटि नमन करते हैं।
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