ग्राम समाचार,बौंसी,बांका।
यह सिर्फ अनुभव की बात है। अपनी आंखों के सामने मिनट में सब कुछ स्वाहा होने का अनुभव और पानी के लिए दूर-दूर तक भटकने का संत्रास। पानी आग की काट है, जल ही जीवन है, स्थापित सच्चाई है। लेकिन दुर्भाग्य से बिहार में आग और पानी दोनों कहर के तेवर में है। कहीं आग आबादी के अरमानों को राख बना रही है तो, कहीं पानी की किल्लत से जनजीवन तवाह है। इकट्ठे दंश का बकायदा मौसम है, तारीख है,
प्रतिवर्ष तबाही होनी ही है। वाजिब सवाल है, इस सब के बावजूद आखिर इस दो तरफा संकट का सार्थक समाधान क्यों नहीं हो रहा है? लिखित रूप से इसके लिए प्रकृति जिम्मेदार हैं। यह समझ मानवीय गलतियों को छुपाने का सतही प्रयास है। आदमी को हराती गर्मी के लिए आदमी ही जिम्मेदार है। लेकिन मेरा मानना है। इससे निपटने के लिए कोई बेहतर उपाय, कोई वैकल्पिक उपाय किया जाना चाहिए। इस बात से किसे इंकार होगा की, आग में जिंदगी भर की कमाई गंवाने वाले, हजारों लोग वस्तुतः
व्यवस्था गत खामियों के प्रति है। आग से प्रतिवर्ष हजारों लोग बेघर और भीखमंगे बन जाते हैं। संपत्ति के साथ बच्चे, बूढ़े भी आग में जलकर मर जाते हैं। राहत और मुआवजे को तड़पाती फौज पैदा होती है कि, मुख्यमंत्री ने अगलगी प्रभावितों को मुआवजा राहत देने की नीति तय की है। लेकिन अभी भी इन्हें संकटों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं वरिष्ठ समाजसेवी मदन मेहरा का कहना है कि, जिसका घर जलता है, संपत्ति
परिवार तथा जान माल का नुकसान होता है। वह जानता है कि, मुश्किल किसे कहते हैं। आज की परिस्थिति ऐसी है कि, घर जलने के बाद पीड़ित महीनों खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर होते हैं। सरकारी राहत तो तुरंत मुहैया नहीं हो पाता है। उन्हें भूखे प्यासे जीवन गुजारना पड़ता है। इस समस्या का फौरन समाधान होना चाहिए। वहीं दूसरी ओर आज शहर और कस्बों में पेयजल की उपलब्धता मूलतः बिजली पर निर्भर है। यह
दुरुस्त होना अति आवश्यक है। बिजली गुल होते ही पेयजल आपूर्ति ठप हो जाती है। भीषण गर्मी में भूगर्भ जल के स्तर को काफी नीचे कर देता है। ऐसी परिस्थिति में शहर कस्बों में चापाकल खराब होने पर विभाग इस पर ध्यान नहीं देते हैं। आज नल जल योजना को देखिए, केवल शोभा का वस्तु बना है। नल है तो, जल नहीं है। इस परिस्थिति से निपटने के लिए
विभाग को ग्रामीण क्षेत्रों में जल की दुरुस्त व्यवस्था करनी चाहिए और हर मोर्चे पर आग से निपटने के लिए अग्निशमन की व्यवस्था खास तौर से गांव में होनी चाहिए। ताकि किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न ना हो सके। तभी समस्याएं दूर हो पाएंगी। गांव के लोग भय मुक्त रहेंगे।
कुमार चंदन,ग्राम समाचार संवाददाता, बौंसी।
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