ग्राम समाचार बौंसी,बांका।
वैलेंटाइन डे का इंतजार दुनिया भर की प्रेमी युगल जोड़ियों को रहता है। इस दिन प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलन का इजहार करते हैं तथा एक दूसरे को गुलाब का फूल देकर जिंदगी भर एक साथ रहने की कसमें खाते हैं तथा यह वचन लेते हैं कि, जीवन में लाख मुसीबत आएंगे पर हम ना जुदा होंगे। अगर सोचा जाए तो प्यार विश्वास और दोस्ती के ख्याल से यह तो एक पहलू है। परंतु दूसरा पहलू भारतीय संस्कृति और भारतीय सामाजिकता के ख्याल से यह
ठीक नहीं है। यह हमारी संस्कृति नहीं है। यहां वह बातें आती है कि, अंग्रेज चले गए अपनी औलाद छोड़ गए। वैलेंटाइन डे पश्चिमी सभ्यता की निशानी है। यह हमारी भारतीय संस्कृति नहीं है। हमारी संस्कृति में प्यार का दूसरा नाम है प्रेम। जो भारतीय सभ्यता है और इस सभ्यता की रक्षा करना हम युवाओं का कर्तव्य है। आज इस अंग्रेजी नियम वैलेंटाइन डे से हमारा शहर तो शहर गांव भी अछूता नहीं रहा। आज के वर्तमान समय की बनती पश्चिमी सभ्यता के एडल्ट फिल्मों को देखकर बच्चे मार्ग से भटक रहे हैं। आज गांव एवं शहर में सुनने को मिलता है कि,
लड़कियां घर से भाग गई। लड़के भाग गए। यह इसी का नतीजा है। आज के किशोर एवं किशोरियों को चाहिए कि, वैलेंटाइन डे हमारी संस्कृति नहीं है यह पश्चिमी सभ्यता की यानी अंग्रेजों की बनाई निशानी है। आज भूलवश वैलेंटाइन डे मनाने के ख्याल से लड़कियां घर से बाहर कदम निकाल तो देती है, लेकिन घर से निकलती अकेली लड़की को कदम कदम पर समाज एवं व्यभिचारी पुरुषों की घूरती निगाहों का निशाना बनना पड़ता है। उठते बैठते उस पर चरित्र हीनता का आरोप लगा दिया जाता है। साथ ही उनके माता-पिता को समाज में उपेक्षित का शिकार होना पड़ता है। इसलिए आज के इस आधुनिक परिवेश में अपनी सोच बदलनी होगी और इस अंग्रेजों की इस निशानी वैलेंटाइन डे को भुलाकर भारतीय संस्कृति को अपनाना होगा।
कुमार चंदन, ग्राम समाचार संवाददाता,बौंसी।
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