ग्राम समाचार न्यूज : रेवाड़ी : गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर दिल्ली और पूरे भारत में जो देखा है वह बहुत से लोगों की नीयत और सही चेहरे को दिखा गया है भारतीय जनता पार्टी की मीडिया पैनलिस्ट वंदना पोपली ने पूरे घटनाक्रम को शर्मनाक बताते हुए कड़ी निंदा की।
उपद्रवियों द्वारा लाल किले पर तिरंगे के स्थान पर किसी ओर झंडे को लगाना यह बहुत ही शर्मनाक है हरेक धर्म का अपना स्थान है परंतु तिरंगे से ऊपर कुछ नही है। हरेक भारतवासी के दिल मे तिरंगा बसता है । जिसे लाल किले पर तिरंगा बर्दाश्त नही जिसे भारत की शान पर तकलीफ है वो कौन लोग है देश की जनता आज उन सब की सही पहचान कर ले.
पिछले कुछ महीनों से लगातार भारतीय जनता पार्टी देश के सामने इस तथ्य को लाने के लिए प्रयास कर रही थी कि किसान आंदोलन और दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए किसानों के पीछे किसका हाथ है। किसान आन्दोलन के नाम पर की जा रही राजनीति का असली चेहरा आज पूरे देश को दिख गया है मोदी सरकार ने कृषि कानूनों में सुधारों की बात कही, 2 साल तक किसान कानूनों को टालने के लिए भी बात कही लेकिन इस आंदोलन का असली मकसद तो किसान था ही नही। किसान आंदोलन की आड़ में राजनीति करनी थी। अराजकता फैलानी थी।
जिन किसान नेताओं ने शांतिपूर्ण ट्रैक्टर मार्च की जिम्मेदारी ली थी क्या आज वह किसान नेता इस अराजकता के लिए जिम्मेदार नहीं है जब दिल्ली की सड़कों पर उपद्रवी तांडव दिखाने की कोशिश कर रहे थे तब यह तथाकथित किसान नेता कहाँ थे और उन्होंने उपद्रवियों को रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया। ट्रेक्टर मार्च के रूट को धता बताते हुए, तमाम नियम कानून की परवाह न करते हुए उपद्रवियों ने दिल्ली में उपद्रव मचाने की कोशिश की
जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी आशंका जताई गई थी तब किसान नेता अड़े रहे कि शांति पूर्वक ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे लेकिन जिस तरह का परिदृश्य दिल्ली की सड़कों पर दिखाई दिया वह देश की छवि को शर्मसार करने वाला था जिसके लिए पूर्णरूप से किसान नेता जिम्मेवार है। शांतिपूर्ण मार्च के नाम पर अराजक तत्वों द्वारा हथियारों को साथ लेकर चलना, पथराव करना, लाठी, डंडो से पुलिस पर हमला करना यह किसान आंदोलन नही हो सकता।इसके साथ ही कही न कही किसानों के नाम पर राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियों का असली चेहरा भी सामने आ चुका है तथा वे भी पूरी तरह से इसके लिए जिम्मेवार है। आज के घटनाक्रम ने साबित कर दिया है कि किसान आंदोलन किसानों के हाथों में न हो कर किन्ही ओर हाथों में है.
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