रेवाडी। कांग्रेस विधायक चिरंजीव राव ने आरक्षण के मुद्दे पर हरियाणा सरकार को घेरते हुए कहा कि नीजि क्षेत्र के संस्थानों में स्थानीय युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने वाले विधेयक में जिलावार केवल 10 प्रतिशत ही क्षेत्रिय युवाओं को आरक्षण दिया जाएगा, जबकि अन्य 65 प्रतिशत आरक्षण प्रदेश के दूसरे जिलों के युवाओं का दिया जाएगा, जोकि बिल्कुल अनुचित है। चिरंजीव राव का कहना है कि सरकार ने वोट की राजनीति में प्रदेश हित को दरकिनार कर दिया है। इस विधेयक के कानून के रूप में लागू होने के बाद प्रदेश में नया उद्दोग तो आएगा ही नहीं और प्रदेश में बना बेहतर औद्दोगिक माहौल भी बिगड जाएगा।
विधायक चिरंजीव राव ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा पारित किए गए स्थानीय उम्मीदवार नियोजन विधेयक 2020 में यह प्रावधान गैर संवैधानिक है। इसके अनुसार एक जिला से एक संस्थान में मात्र 10 प्रतिशत से ज्यादा उम्मीदवार को नौकरी नही दी जा सकेगी। इस प्रावधान को करते हुए भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने उस जिले को भी इस आरक्षण में वरीयता नही दी, जिस जिले में कंपनी या संस्थान हैं। दक्षिणी हरियाणा के रेवाडी, गुडगांव और फरीदाबाद से एकत्रित राजस्व प्रदेश के दूसरे जिलों में बांटती थी, अब दक्षिणी हरियाणा से नौकरियों भी इस सरकार ने छीन ली। श्री राव ने सरकार से पूछा कि दक्षिणी हरियाणा से बार-बार भेदभाव क्यों किया जा रहा है। विधायक चिरंजीव राव ने कहा कि स्थानीय उम्मीदवार नियोजन विधेयक-2020 में प्रवासी मजदूरों के खिलाफ भी मौजूदा सरकार ने आपत्तीजनक टिप्पणी की है। इसमें लिखा गया है कि यह विधेयक इसलिए बनाया जा रहा है कि प्रवासी श्रमिकों की बडी संख्या विशेषत: कम वेतन पर कार्यरत रोजगारों के लिए प्रतिस्पर्धा के चलते स्थानीय आधारभूत संरचना, मूलभूत ढांचे व आवास संबंधी सुविधाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इसके अलावा प्रवासी मजदूर मलिन बस्तियों का प्रसार करते हैं। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र, एक कानून और अखंड भारत की परिकल्पना करने वाले महापुरुषों के लिए यह यह विधेयक कष्टदायी होगा। इसलिए इस कानून पर सरकार को पुनर्विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा विधानसभा में पंचायती राज संस्थाओं के लिए पारित विधेयक में सरपंचों की 33 प्रतिशत मतदाताओं द्वारा वापस बुलाए जाने (राइट टू रिकाल) के प्रावधान पर श्री राव ने कहा कि इस बिल से जहां विकास कार्य ठप्प होंगें वहीं गांवों व शहरों में आपसी गुटबाजी को बढावा मिलेगा और इससे आपसी भाईचारा भी बिगडेगा। राइट टू रिकाल से बार-बार चुनाव हुए तो आर्थिक व सामाजिक समस्याएं खडी होगी जो देश के मजबूत लोकतंत्र के लिए घातक साबित होंगी। इस बिल के आने से पंचायत प्रतिनिधि दबाव में काम करेंगे और उनके अधिकार छिन जाऐंगे तथा दबंबों का वर्चस्व भी बढेगा।
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