Dumka News : सरना कोड के बहाने जनजातियों को आरक्षण से हटाने एवं अल्पसंख्यक बनाने का साजिश

जनजातियों को आरक्षण से हटाने एवं अल्पसंख्यक बनाने का साजिश ‌

आदिवासी समुदाय अपने पैर स्वयं कुल्हाड़ी चला रहे

राजनीतिक दल ये जानते हुए भी स्वार्थ सिद्धि के लिए साधी हुई है चुप्पी

समाज के लोगों को इस षड्यंत्र से बचने की है जरूरत

 डॉ० राजकिशोर हंसदा, राष्ट्रीय सह संयोजक जनजाति सुरक्षा मंच, दुमका झारखंड

ग्राम समाचार, दुमका। स्वतंत्र भारत में पहली जनगणना  1951ईस्वी से प्रारंभ हुई। जनगणना की सुविधा के लिए 6 धर्म कोड बनाये गये जो इस प्रकार है 1.हिन्दू धर्म 2.मुस्लिम धर्म  3.ईसाई धर्म 4.सिख धर्म  5.बौद्ध धर्म 6.जैन धर्म, इसके अलावे अन्य धर्म और आठवां कॉलम बिना धर्म वाले। पहली जनगणना से ही अनुसूचित जनजाति समाज के लोग अपना धर्म का नाम हिन्दू धर्म ही लिखते आये हैं। आगे चलकर जनजाति समाज में अलगाववादी तत्वों के द्वारा एक षड्यंत्र किया जा रहा है और उनके बीच में दुष्प्रचार किया जा रहा है कि तुम लोग हिन्दू नहीं हो। उसके बाद पूरे देश में जनजाति समाज में एक भ्रम का स्थिति निर्माण हो रहा है और अपने को अलग धर्म का बताने लगे। वास्तव में सनातन हिन्दू धर्म, संस्कृति का आधार प्रकृति के संरक्षक हैं,पूजक हैं। इस प्रकार से जनजाति संस्कृति और सनातन हिन्दू संस्कृति अलग नहीं है बल्कि एक हैं। सनातन धर्म संस्कृति रूपी विशाल महल का आधार जनजाति समाज और संस्कृति है। यदि जनजाति समाज को सनातन धर्म संस्कृति से अलग थलग कर दिया जाए, तो यह विशाल महल ढह जाएगा। इस बात को षड्यंत्रकारी अच्छी तरह से जानते हैं।ये षड्यंत्रकारी हमारा शिकार करना चाहते हैं जैसे जंगल में एक शेर वन भैंसा या हिरण का झुंड से एक को बिलगाव करता है।अंत में उसका अस्तित्व को समाप्त करते हैं। सनातन संस्कृति रूपी विशाल वटवृक्ष के नीचे शीतल छाया में हम सभी लोग शांति से हैं, ये षड्यंत्रकारी हमको अलग कर हमारा अस्तित्व को समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। इस बात को हम सब लोग गम्भीरता से विचार करें, इससे केवल जनजाति समाज का नुक़सान ही नहीं है बल्कि सम्पूर्ण सनातन हिन्दू समाज के लिए खतरा है। इस बात को हमारे राजनैतिक दलों के मित्र जानते हुए भी कि इससे कितना बड़ा नुक़सान होने वाला है,अपना स्वार्थ सिद्धि के लिए मौन धारण किए हुए हैं। यदि हम सभी समय रहते हुए निद्रा से नहीं जागे तो भावी पीढ़ी हमको माफ नहीं करेगा।हम जानते हैं  इस भारत भूमि में जो जो जाति समाज के रीति-रिवाज, परम्परा, संस्कृति का जन्म हुआ है वो सभी सनातन संस्कृति है,सभी का मूल आधार एक है। जिस भी धर्म संस्कृति का जन्म विदेशी धरती में हुए हैं,उसका विचार सनातन संस्कृति से मेल नहीं खाती है। हमारे संस्कृति में सभी को अपने मानते हैं,सभी धर्म,पंथ,सम्प्रदाय सामान है, भगवान एक है। लेकिन पाश्चात्य विचार धारा के अनुसार हमारा ही धर्म, संस्कृति और भगवान श्रेष्ठ है, बाकी लोगों का तुच्छ है। इसलिए दुनिया के सभी लोगों को अपने धर्म में लाना है। ये साम्राज्यवादी विचार धारा के लोग दिन रात अपना संख्या को विस्तार करने के लिए लगे हुए हैं। यदि कोई व्यक्ति उसके धर्म में चला जाता है तो ठीक है और नहीं तो कम से कम हिन्दू न कहे।वे अपने को अलग ही कहे। दुनिया में किसी पूजा स्थल के नाम से किसी भी धर्म का नाम नहीं है, लेकिन झारखंड में किसी खास जाति विशेष का पूजा स्थल के नाम सरना के नाम से धर्म का नामकरण हो रहा है।जो जाति सरना स्थल मानते हैं उसके लिए सरना धर्म हो सकता है, लेकिन सम्पूर्ण जनजातियों के लिए मान्य नहीं है।जो लोग सरना धर्म कोड का मांग कर रहे हैं, वह बिल्कुल अनुचित है और अव्यवहारिक है। संविधान का धारा 342केद्वाराअनुसूचित जनजाति समाज के लोग गाईड होते हैं, संविधान में अनुसूचित हैं। यदि जनजाति समाज के लोग षड्यंत्रकारी के बहकावे में आ गए तो कहीं के भी नहीं रहेंगे। राजनैतिक दल को अपना स्वार्थ सिद्ध करना है इसलिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं।उसको जनजातियों का लाभ और हानि से क्या मतलब है। हम जानते हैं जाति प्रथा केवल सनातन हिन्दू धर्म में ही लागू है, बाकी धर्मों में जाति प्रथा नहीं है। हम सभी ये भी जानते हैं कि एक नम्बर कोड यानी हिन्दू धर्म छोड़कर बाकी सभी अल्पसंख्यक हैं जैसे मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म,सिख धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म। यदि सातवां कॉलम में कोई धर्म कोड लागू होता है तो उसके ऊपर भी अल्पसंख्यक का धारा ही लागू होगा। इस प्रकार से जनजातियों को आरक्षण से हटाने का बहुत बड़ा षड्यंत्र रची जा रही है। एक बात ध्यान देने लायक है कि जो लोग पहले से अल्पसंख्यक हो गये हैं,वही लोग जोर शोर से अलग धर्म कोड का समर्थन कर रहे हैं। इसका मतलब हमको समझ लेना चाहिए कि इसके पीछे का उनकी क्या मंशा है।

          जनजाति धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराओं का जड़ सनातन धर्म संस्कृति में इतना गहराई तक गया है, यदि वहां से कोई भी अलग होना चाहेगा तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा, उसके पास कुछ भी नहीं बचेगा।मानलिया जाय यदि किसी पेड़ से एक बड़ा सा तना या डाली कहे कि हम अलग हैं और आपके साथ नहीं रहेंगे। इसके बाद उस डाली का क्या स्थिति होगी हम समझ सकते हैं। कहीं हमारे जनजाति समाज का भी वैसे स्थिति न हो जाए। इस देश का मुख्यधारा जो काल से बहते आ रहा है,उसी धारा में हम सभी चल रहे हैं।यदि कोई इस सनातन धारा से अलग होकर चलना चाहेगा तो वह अलग थलग पड़ जायेगा और अंत में उसका अस्तित्व पर संकट पैदा हो जाएगा।समय रहते हुए हम सभी लोगों को जनजाति समाज के हितों के लिए चिन्तन, मंथन कर सभी को सावधान करना चाहिए। कहीं हम अनजाने में अलगाववादियों और षड्यंत्रकारियों के स्वर में स्वर तो नहीं मिला रहे हैं,यदि हम ऐसा करते हैं तो अपने पांव में ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं। मैं झारखंड सरकार से निवेदन करना चाहता हूं अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा करने के लिए सरना धर्म कोड पर पुनर्विचार करे।

रिपोर्ट- केसरीनाथ

       

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Editor - केसरीनाथ यादव, दुमका

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