GoddaNews: स्व० निर्मल महतो का 33 वां बलिदान दिवस मनाया गया



ग्राम समाचार गोड्डा, ब्यूरो रिपोर्ट:- शनिवार को झारखंड आंदोलनकारी अमर शहीद निर्मल महतो के 33 वां शहीद दिवस पर गोड्डा पीरपैंती मुख्य मार्ग के रंगमटिया स्थित संजीव कुमार महतो के कार्यालय परिसर में शहीद के चित्र पर धुप दीप, तेल दुध पानी और पूष्प अर्पण कर श्रद्धांजली अर्पित किया गया।

मौके को संबोधित करते हुए संजीव कुमार महतो, केंद्रीय सचिव आजसू व चानकु महतो हूल फाउंडेशन के संयोजक एवं अखिल भारतीय आदिवासी कुड़मि महासभा(ऐकता) के संस्थापक सदस्य ने कहा कि "सवाल बन फिर आउंगा, हो सके तो जवाब रखना|

मेरी शहादत व्यर्थ ना हो, मेरे खून का हिसाब रखना|"

झारखण्ड अलग राज्य के लिए बलिदान देने वाले महान प्रेरणादायक, झारखण्ड के सच्चे और वीर सपूत निर्मल महतो का जन्म तात्कालीन बिहार प्रदेश यानि वर्तमान में झारखण्ड कोल्हान के सिंहभूम जिलान्तर्गत जमशेदपुर के उलियान नामक गाँव में 25 दिसंबर 1950 को हुआ था। इनके पिता का नाम जगबंधु महतो और माता का नाम प्रिया महतो था। जगबंधु महतो के आठ पुत्र और एक पुत्री में से निर्मल महतो द्वितीय पुत्र थे। वे बचपन में बहुत ही नटखट माने जाते थे। निर्मल महतो स्वच्छ आचरण, शिक्षित व बेदाग सुचरित्र और सदा हंसमुख चेहरा वाले कर्मठ निर्मल, कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी कभी नहीं घबड़ातने वाले नेता थे। शांति पूर्वक तत्काल निर्णय लेना उनकी सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक थी। उनमें बचपन से नेतृत्वकारी गुण थे। वे आजीवन अविवाहित रहे। निर्मल महतो छात्र जीवन से ही राजनीति में रूचि लेने लगे थे। इनकी राजनीतिक तेज ऐसी थी कि कम ही समय में कार्यकर्ता से लेकर झामुमो केंद्रीय अध्यक्ष बने और झारखंड आंदोलन को प्रखर और परिणामदायी बनाने के लिए 22 जून 1986 को आजसू का स्थापना भी किया।

श्री महतो ने कहा कि  स्व०  निर्मल महतो एक अच्छे नेता व संगठनकर्ता के साथ साथ बेहतरीन समाज सेवक व समाज सुधारक भी थे। उनमें अनंत आत्मविश्वास था। वे किसी भी गलत आचरण के खिलाफ आवाज़ उठाने से डरते नहीं थे। वे आजीवन गरीबों के लिए लड़े, गरीब किसानों और मजदूरों के लिए लड़े, झारखंडियों का आत्मविश्वास और आत्मसम्मान प्रदान करने के लिए आखिरी दम तक लड़े। वे शहीद हुए, मगर अपने जीवन में ना कभी प्रलोभित हुए और ना ही किसी तरह का कोई समझौता किये। शोषितों, पीड़ितों एवं ग़रीबों के साथी निर्मल महतो का एक ही सपना था, कि अपना अलग झारखण्ड प्रान्त हो, ताकि झारखण्ड क्षेत्र में रहने वाले लोगों को शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाई जा सके। निर्मल दा के अथक प्रयास और बलिदान का ही परिणाम था कि 15 नवंबर 2000 को झारखण्ड अलग राज्य बना। झारखंड राज्य का गठन के 20 वर्ष हो चुके पर यह बहुत बड़ी विडम्बना है कि निर्मल दा के हत्या का राज पूरी तरह अबतक उजागर नहीं हो पाया। कई राजनीतिक समाजिक संगठन व नेता एन आई ऐ जांच की अनुशंसा की मांग लगातार राज्य सरकार से कर रहे हैं पर अबतक नहीं हो पाया है। ये झारखंड के नेतृत्व कर्ताओं व सरकार के लिए निंदनीय है। मौके पर संजीव कुमार महतो, नंद कुमार, रामराज महतो, विवेक कुमार महतो, सच्चिदानंद स्वर्णकार , पंकज,संतोष, पुरुषोत्तम, सुमन आदि उपस्थित थे।*

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Editor - भुपेन्द्र कुमार चौबे

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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