ग्राम समाचार गोड्डा, ब्यूरो रिपोर्ट:- ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केंद्र के सभागार में "गरीब कल्याण रोजगार अभियान के अन्तर्गत प्रवासी श्रमिकों के जीविकोपार्जन हेतु दक्षता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम" के तहत "बकरी पालन" विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम जारी है। सभी प्रवासी श्रमिकों को फेस मास्क के साथ सामाजिक दूरी के नियमानुसार सभागार में बैठाया गया। पशुपालन वैज्ञानिक डॉ0 सतीश कुमार ने बताया कि किसान दुधारू पशुओं को खिलाने के लिए चारे और हरे घास के विकल्प के रूप में हाइड्रोपोनिक विधि से उगाए गए चारे को इस्तेमाल कर सकते हैं। एक ट्रे में बिना मिट्टी के ही चारा सात से दस दिनों में ही उगकर तैयार हो जाता है। साथ ही इस तकनीक से इस चारे को किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है। खास बात ये है कि दूधारू पशुओं के दूध बढ़ाने में यह चारा दूसरे हरे चारे की तुलना में ज्यादा पोषक भी होता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक से तैयार की गई घास में साधारण हरे चारे की तुलना में 40 फीसदी ज्यादा पोषण होता है। पौधे उगाने की हाइड्रोपोनिक तकनीक पर्यावरण के लिए काफी अच्छी होती है। इन पौधों के लिए कम पानी की जरूरत होती है, जिससे पानी की बचत होती है। कीटनाशकों के भी काफी कम प्रयोग की आवश्यकता होती है। इस तकनीक से एक किलो मक्का से पांच से सात किलो चारा दस दिन में बनता है, इसमें जमीन भी नहीं लगती है। इस विधि से हरे चारे के उगाने के लिए सबसे पहले मक्के को 24 घंटे के लिए पानी में भिगोया जाता है। उसके बाद एक ट्रे में उसे डाला जाता है और जूट के बोरे से ढक देते हैं। तीन दिनों तक इसे ढके रखने पर उसमें अंकुरण हो जाता है। फिर उसे पांच ट्रे में बांट दिया जाता है। हर दो-तीन घंटे में पानी डालना होता है। ट्रे में छेद होता है, जितना पौधों को पानी की जरूरत होती है उतना पानी ही रुकता है बाकी पानी निकल जाता है। यह तकनीक मेहनत भी बचाती है क्योंकि खेतों में काम करने के लिए काफी मेहनत की जरूरत पड़ती है, जबकि इस तकनीक में ज्यादा मेहनत की आवश्यकता नहीं रहती। ऐसे में फसलों की लागत कम रहती है तथा किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक से पौधों को ज्यादा आक्सीजन मिल जाती है और पौधे ज्यादा तेज गति से न्यूट्रीएंट को सोखते हैं। परंपरागत हरे चारे में प्रोटीन 10.7 फीसदी होती है जबकि हाइड्रोपोनिक्स हरे चारे में प्रोटीन 13.6 प्रतिशत होती है। इसके अतिरिक्त अजोला, नेपियर, कसावा तथा सुबबूल से हरा चारा तैयार करने की विस्तृत जानकारी दी। सभी प्रवासी श्रमिकों के बीच "बकरी पालन" विषयक पुस्तिका का वितरण किया गया।
मौके पर डाॅ0 सूर्यभूषण, डाॅ0 प्रगतिका मिश्रा, डाॅ0अमितेश कुमार सिंह, रजनीश प्रसाद राजेश, राकेश रौशन कुमार सिंह, वसीम अकरम मौजूद रहे। सुनीता देवी, दिलखुश मंडल, इंदु यादव, गोकुल ठाकुर, कुन्दन यादव, समेत 35 प्रवासी श्रमिक प्रशिक्षण में सम्मिलित हुए।
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