Editorials : छात्रों की वापसी पर अड़ा अमेरिका


अमेरिकी में पढ़ रहे विदेशी छात्रों को बड़ा झटका लगा है। इनमें भारतीय छात्रों की संख्या बहुत बड़ी है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि जिन विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है वहां के छात्र अपने घर चले जाएं

भारतीय छात्र
अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे विदेशी स्टूडेंट्स को ट्रंप प्रशासन की ओर से एक और बड़ा झटका लगा है। प्रशासन ने इन विद्यार्थियों से कहा है कि उनके कॉलेज या विश्वविद्यालय अगर पूरी तरह ऑनलाइन पढ़ाई पर आ गए हैं तो वे या तो किसी और संस्थान में कोई ऐसा कोर्स जॉइन कर लें जहां क्लासरूम में प्रत्यक्ष उपस्थिति के जरिए पढ़ाई हो रही हो, या फिर अमेरिका छोड़कर अपने देश चले जाएं, क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाई के लिए उनका वीजा मंजूर नहीं किया जाएगा।

ध्यान रहे, कोरोना के चलते अन्य देशों की तरह अमेरिका में भी ज्यादातर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन क्लासेज ही ली जा रही हैं। बहुत सारे स्टूडेंट महामारी की दहशत में पहले ही अपने घर लौट आए हैं। इस नए निर्देश का मतलब यह होगा कि कुछ समय बाद महामारी का असर कम होने पर जब वे अमेरिका लौटना चाहेंगे तो उन्हें वीजा नहीं मिलेगा और जो बाहरी छात्र अभी वहां रह रहे हैं, उन्हें भी कई तरह की उलझनों का सामना करना पड़ेगा। अमेरिका के इन विदेशी स्टूडेंट्स में सबसे बड़ी संख्या चीनियों की और उसके बाद भारतीयों की है।


अमेरिकी सरकार के इस कदम के पीछे सीधा तर्क यह हो सकता है कि जब ऑनलाइन पढ़ाई ही करनी है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि आप इसके लिए किसी अमेरिकी शहर में बैठे हैं या भारत स्थित अपने घर में। इस काम के लिए आपको अमेरिकी वीजा क्यों दिया जाए? लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि जब भी कोई युवा लाखों रुपये लगाकर किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी के कोर्स में दाखिला लेने का फैसला करता है तो इसके पीछे सिर्फ वहां के स्टडी मटीरियल का आकर्षण नहीं होता।

इस कोर्स के दौरान, और हो सके तो कोर्स के बाद कुछ दिन वहां काम करके उस देश के माहौल का प्रभाव ग्रहण करना, अपने संपर्क बढ़ाना और एक ऐसी ग्लोबल पर्सनैलिटी के रूप में खुद को विकसित करना, जिसकी करियर संभावनाएं किसी खास देश तक सीमित न रहें, ये सभी कारक उसके इस फैसले के पीछे होते हैं। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई का हवाला देकर उनसे वीजा छीनना उन्हें उन अवसरों से वंचित करना है जिनके लिए उन्होंने किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने का फैसला किया था।

ध्यान रहे, ये विदेशी स्टूडेंट्स कुल अमेरिकी स्टूडेंट्स का 5.5 फीसदी हैं और साल 2019 में इन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालयों में 41 अरब डॉलर तो सिर्फ फीस भरी थी। यह भी विचित्र है कि वीजा नियमों में ऐसे फेरबदल की खबरें कहीं और से नहीं आ रहीं जबकि कोरोना काल में लगभग सभी देशों के विश्वविद्यालय ऑनलाइन पढ़ाई ही करा रहे हैं। बहरहाल, अमेरिकी विश्वविद्यालयों को इस मसले पर पहल करते हुए सरकार से बातचीत करके कोई राह निकालनी चाहिए, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था का सबसे बड़ा फायदा भी वही ले रहे हैं।

सौजन्य : नवभारत टाइम्स 
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Editor - MOHIT KUMAR

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