Bhagalpur News:बरारी श्मशान घाट के किनारे 2 करोड़ 68 लाख की लागत से निर्मित विद्युत शवदाह गृह जनता को समर्पित


ग्राम समाचार, भागलपुर। बरारी श्मशान घाट स्थित विद्युत शवदाह गृह के कटाव के भेंट चढ़ जाने के लम्बे अर्से बाद निर्मित विद्युत शवदाह गृह का उद्घाटन गुरुवार को मेयर सीमा साहा और डिप्टी मेयर राजेश वर्मा ने संयुक्त रूप से किया। इस मौके पर  डिप्टी मेयर राजेश वर्मा ने कहा कि इस कोरोना संकट के दौर में शवदाहगृह काफी लाभकारी साबित हगा। उन्होंने कहा कि शवदाहगृह के शुरू होने के बाद सभी वर्ग खासकर मध्यम एवं निम्न वर्ग जिन्हें अंतिम संस्कार के लिए स्थानीय लोग के मनमाने रवैये और आर्थिक शोषण का शिकार होना पड़ता था, अब उन्हें इससे निजात मिलेगी और उनका आर्थिक बोझ भी कम होगा। बता दें कि बरारी श्मशान घाट के किनारे 2 करोड़ 68 लाख की लागत से विद्युत शवदाह गृह का निर्माण नगर निगम के द्वारा कराया गया है। इस आधुनिक विद्युत शवदाह गृह में आधुनिक मशीनें लगायी गयी है। शवदाह गृह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें शवदाह गृह से निकले अवशेष को गंगा में नहीं गिराया जायेगा, बल्कि उसे मशीन से ही नष्ट कर दिया जायेगा। शवदाह गृह बनने से गरमी, बारिश और ठंड में शव जलाने वाले लोगों को होने वाली परेशानी से राहत मिलेगी। शवदाह गृह के नहीं होने से चिता को जलाने में लकडिय़ों का बेतहाशा इस्तेमाल और इसके धुएं व राख से प्रदूषण का स्तर भी काफी बढ़ गया था। सबसे बड़ी बात यह है कि सुल्तानगंज से कहलगांव तक फैले विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य में विलुप्तप्राय जालीय जीव डॉल्फिन का निवास स्थल है। केंद् सरकार ने इसे विलुप्तप्राय राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर रखा है। शवदाह गृह के नहीं होने से चिता जलाने के बाद बचे अवशेषों को लोगों के द्वारा गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता था, जिससे गंगा का प्रदुषण स्तर काफी बढ़ गया था। जो डॉल्फिन के लिए भी घातक साबित हो रहा था। बरारी श्मशान घाट पर प्रति दिन बिहार-झारखंड जिलों के एक दर्जन शव का रोज अंतिम संस्कार किया जाता है। घाट किनारे लकड़ी विक्रेता की माने तो एक शव को जलाने में तीन से चार क्विंटल तक लकडिय़ां खपत होती है। जिसकी कीमत 3000 हजार रुपये तक होता है।
औसतन एक दर्जन शव को जलाने में रोज छह टन तक लकड़ियां खपत होती है। इससे गंगा में राख सहित अन्य अवशिष्ट पदार्थ के समाहित होने से जल कितना प्रदूषित होता होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। शव जलाने का खर्च भी आधे से कम हो जाएगा। पैसा और समय की भी बचत होगी। पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा। विद्युत शवदाह गृह स्क्रबर तकनीक से लैस होता है। जो शव जलने के दौरान निकलने वाली खतरनाक गैस और बॉडी के बर्न पार्टिकल को सोख लेता है। शव का डस्ट पार्टिल को पानी के टैंक में जमा होगा। जिससे खाद के रुप में इस्तेमाल किया जा सकता है। आधुनिक फर्निश संयंत्र लगा है। प्रर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक शव के जलाने के बाद गंगा में राख, जलती लकडिय़ां सहित अन्य चीजों को प्रवाहित कर दिया जाता है। जिससे पानी में घूलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। जिससे जलीय जीवों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इतना ही नहीं एक स्वस्थ पेड़ हर दिन लगभग 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे सात लोगों को प्राण वायु मिलती है। यदि हम इसके आसपास कचरा जलाते हैं तो इसकी ऑक्सीजन उत्सर्जित करने की क्षमता आधी हो जाती है। इस तरह हम तीन लोगों से उसकी जिंदगी छीन लेते हैं। आज पेड़ों की कटाई पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। इसलिए पौधे लगाने के साथ-साथ हमें पेड़ों को बचाने की जरूरत है।

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Editor - Bijay shankar

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