सुशान्त सिंह राजपूत नवोदित चेहरा। अपनी माटी का लड़का । बौद्धिक रूप से किसी भी अन्य कलाकार से बढ़कर प्रतिभा। मेहनत और लगन में बेमिसाल । आर्थिक स्थिति भी सामान्य से अच्छी । पारिवारिक पृष्ठभूमि भी समृद्ध और समर्थ। फिर भी एक अत्यंत गलत निर्णय । आत्महत्या .....
आत्महत्या सबसे बड़ा पाप है । ईश्वर प्रदत्त मानव जीवन का उपयोग अपने उत्थान के लिए करना चाहिए न कि पतन के लिए । हमारे आर्ष ग्रंथों में कहा गया है-
असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता।
तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।
आत्महत्या करनेवाला मनुष्य अज्ञान और अंधकार से भरे, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को जाते हैं।”
बिहार झारखण्ड जैसे राज्य का बच्चा बच्चा इस तथ्य को जानता है। समाज, परिवार, मित्र, बन्धु बान्धव हमेशा इस सत्य से अपने पीढी को अवगत कराते हैं ।
कहाँ कमी रह गई ...
भौतिकता का चकाचौंध, माया नगरी की मायावी आभासी दुनियां की रंगीनियों का दोष तो नहीं ...
इस प्रकार टूट कर बिखर जाने से अपने चाहने वालों को क्या संदेश दिया आपने सुशांत?
आपने अच्छा नहीं किया मेरे भाई ।
विनम्र श्रद्धांजलि ....
डॉ धनंजय कुमार मिश्र
एस पी कालेज दुमका
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