Editorials : निरंकुशता की ओर बढ़ रही चीनी शक्ति को नियंत्रित करने के वैश्विक दायित्व का निर्वहन आवश्यक हो गया


चीनी कूटनीति से तत्काल परिणाम की अपेक्षा नहीं की जाती। लद्दाख में सीमा विवाद के मामले में चीन डोकलाम जैसे रवैये पर चल रहा है।

[ आर विक्रम सिंह ]: चीनी कूटनीति से तत्काल परिणाम की अपेक्षा नहीं की जाती। लद्दाख में सीमा विवाद के मामले में चीन डोकलाम जैसे रवैये पर चल रहा है। तनाव के स्तर को फिलहाल बनाए रखकर वह राजनीतिक-आर्थिक सौदेबाजी करना चाहता है। अगर पिछले 40 से अधिक वर्षों में चीनी सीमा पर गोलियां नहीं चली हैं तो यह कोई गांरटी नहीं कि आगे भी नहीं चलेंगी। कोविड-19 के मामले में चीन के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि उसने समय रहते दुनिया को सचेत क्यों नहीं किया? अमेरिका और शेष देशों की प्रतिक्रिया का प्रभाव चीन की निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था पर पड़ना अवश्यंभावी है।

पीएम मोदी की आत्मनिर्भरता की नीति का प्रभाव चीन पर पड़ेगा 



कोरोना ने दुनिया के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी भीषण समस्याएं खड़ी की है। प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भरता की नीति का प्रभाव भी चीन पर पड़ेगा। यह भी दिख रहा कि अमेरिका-जापान-भारत-ऑस्ट्रेलिया का रणनीतिक गठबंधन निकट भविष्य में आकार ले सकता है। अपने को घिरता देखकर चीन ने अपने स्वभाव के अनुसार भारत को धमकाने की कोशिश की है और सचेत किया है कि हम इस शीतयुद्ध में न पड़ें। इसी चीनी रुख का परिणाम हम लद्दाख सीमा पर उसके सैन्य जमावड़े के रूप में देख रहे हैं। वरना जब दुनिया कोविड-19 से निकलने के लिए संघर्ष कर रही हो तो अचानक पूर्वी लद्दाख की पहाड़ियों पर पेट्रोलिंग के साझा गश्त क्षेत्र में कब्जा जमाना सीमा पर यथास्थिति को बदलते हुए भारत को दबाव में लेने की कोशिश ही तो है।


गलवान में भारतीय सेना, युद्ध से चीन को कोई लाभ नहीं होगा

अगर भारत भी अन्य सीमा क्षेत्रों में वैसा ही करे जैसा चीन ने किया है तो चीन को भी अपनी सेनाएं लाकर उसी तरह बैठानी पड़ेंगी जैसे आज गलवान में भारतीय सेना बैठ गई है। युद्ध से चीन को कोई लाभ नहीं होना है, क्योंकि जो अक्साई चिन और वहां से होकर जा रही सिंकियांग-तिब्बत रोड उसे चाहिए थी वह तो उसके कब्जे में 1962 से ही है। चीन की प्रतिक्रिया का एक और महत्वपूर्ण कारण है पीओके से गुजरती हुई बेल्ट रोड इनीशिएटिव योजना के तहत बनी काशगर ग्वादर रोड की असुरक्षा।


भारत गुलाम कश्मीर को वापस लेने की सैन्य तैयारियां कर रहा

गुलाम कश्मीर पर भारत की आक्रामक नीति के परिणामस्वरूप उसे इसकी आशंका हो सकती है कि भारत अपने इस क्षेत्र को वापस लेने की सैन्य तैयारियां कर रहा है। इससे चीन का यह महत्वपूर्ण रणनीतिक मार्ग बाधित ही नहीं, निष्प्रयोज्य हो जाएगा। इसी कारण चीन ने सुरक्षा परिषद में अनुच्छेद 370 के समापन को मुद्दा बनाने की असफल कोशिश की। चीनी इससे सशंकित भी है कि भारत अमेरिकी योजना का हिस्सा बन रहा है।


चीन अनुच्छेद 370 और पीओके पर भारत के पक्ष को समझने को तैयार नहीं

भारत को अमेरिका के साथ जाने के क्या परिणाम होंगे, यह बताने के लिए ही शायद चीन ने लद्दाख में सीमा विवाद को आधार बनाया है। चीन भारत पर वुहान भावना के विरूद्ध जाने का आरोप लगाता है, लेकिन वुहान भावना का प्रदर्शन एकतरफा नहीं हो सकता। चीन अनुच्छेद 370 और पीओके पर भारत के पक्ष को समझने को तैयार नहीं है। जब भी सीमाओं के चिन्हीकरण की बात आई है वह लगातार टालता ही रहा है। व्यापार में असंतुलन को दूर करने के प्रति भी उसका कोई सकारात्मक रुख नहीं रहा। चीनी-पाकिस्तानी रणनीतिक साझेदारी में कोई कमी नहीं है। भारत को घेरने की चीन की समुद्री नीति भी कहीं से ढीली नहीं पड़ी है।

विवाद का लक्ष्य लद्दाख की सड़कें नहीं, बल्कि भारत की बदल रही रणनीतिक धारणा है

सीमा पर समस्या खड़ी कर देने के बाद चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने दावा किया कि प्रश्नगत क्षेत्र में भारत द्वारा किए जा रहे रक्षा निर्माण कार्यों के विरूद्ध सीमा नियंत्रण की कार्रवाई की गई है, लेकिन वहां सड़कों-पुलों का निर्माण तो पहले से ही चल रहा है। दरअसल विवाद का लक्ष्य लद्दाख की सड़कें नहीं, बल्कि भारत की बदल रही रणनीतिक धारणा है। 1993 और उसके बाद के समझौतों में सीमा पर शांति बनाए रखने पर सहमति हुई थी, लेकिन भारतीय प्रयासों के बावजूद चीन युद्धविराम रेखा के चिन्हीकरण पर सहमत नहीं हुआ।

चीन सीमाओं के चिन्हांकन से इसीलिए बचता है ताकि विवाद की स्थितियां पैदा कर सके

सीमा रेखा पर एक चौड़े से क्षेत्र को आभासी सीमा क्षेत्र मान लिया गया जिसमें दोनों पक्ष गश्त करते हैं। इस क्षेत्र में आगे अधिक बढ़ने पर दूसरा पक्ष विरोध करता है, लेकिन अपनी ताजा हरकत से चीन ने सैन्य पेट्रोलिंग के क्षेत्र बाधित कर दिए हैं। इस तरह चीन ने 1993 के समझौते से विकसित हुई आपसी समझ को तिलांजलि दे दी है। चीन सीमाओं के चिन्हांकन से इसीलिए बचता है ताकि विवाद की स्थितियां पैदा कर सके, लेकिन पाकिस्तान को भारत के समानांतर ला खड़े करने वाला चीन अब यह देख रहा है कि डोकलाम के बाद नए भारत की सोच बदल चुकी है। हमारी सेनाओं ने जिस तेजी से चीनी चुनौती के बरक्स अपनी संख्या बल और सशस्त्रबल बढ़ाया है उससे चीन चकित है। चीनी जानते हैं कि 1962 दोहराया नहीं जाएगा। युद्ध हुआ और बराबरी पर भी छूटा तो चीन की अंतरराष्ट्रीय छवि धूलधूसरित हो जाएगी। अगर उसे पीछे हटना पड़ा तो दुनिया में उसका उपहास उड़ेगा।

चीन के साथ उत्तरी कोरिया, पाक और ईरान के अलावा फिलहाल कोई और नहीं दिख रहा

चीन की यह सोच कि सीमा पर तनाव बढ़ाकर और वुहान भावना का हवाला देकर वह भारत को अपने विरुद्ध वैश्विक विमर्श से अलग होने को बाध्य कर देगा, एक खामखयाली ही है। वैश्विक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। दुनिया एक नए शीतयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है। चीन 1980 के पहले का सोवियत संघ नहीं है जो अमेरिका को बराबरी की टक्कर दे रहा था। इस नए शीतयुद्ध में चीन के साथ उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान और ईरान के अलावा फिलहाल कोई और नहीं दिख रहा है।

हिमालय की सरहदों की रक्षा अब भारत की अकेली लड़ाई नहीं रह गई है

भारत के लिए यह निर्णायक समय है। हिमालय की सरहदों की रक्षा अब भारत की अकेली लड़ाई नहीं रह गई है। आज विश्व चीन की यह असलियत जान चुका है कि वह अपने वर्चस्व के लिए कुछ भी कर सकता है। निरंकुशता की ओर बढ़ रही चीनी शक्ति को नियंत्रित करने के वैश्विक दायित्व का निर्वहन आवश्यक हो गया है।

सौजन्य : दैनिक जागरण 

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Editor - MOHIT KUMAR

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