फ़ोटो: शहीद वीर सिधु-कान्हू |
ग्राम समाचार, दुमका । मंगलवार को 165 वी हुल दिवस है। हुल संताली शब्द का अर्थ विद्रोह होता है। बर्ष 1855 में वर्तमान संताल परगना क्षेत्र में महाजनी शोषण, जमीन की राजस्व की अप्रत्याशित बृद्धि एवं रेल लाईन बिछाई कार्य के अंग्रेज ठेकेदारों के द्बारा संताल रमणी की शारीरिक शोषण के विरुद्ध आंदोलन हुई थी । संताल विद्रोह के नाम से प्रख्यात उस बिद्रोह में यहां के सीमांत किसान एबं गरीब मजदूर बर्तमान बरहेट विधानसभा के भोगनाडीह में आंदोलन का बिगुल फूंका था ।भोगनाडीह में आंदोलनकारियों ने लगातार सात दिन बैठक कर आंदोलन का रूपरेखा तैयार किया था। उस समय देश का राजधानी कोलकाता हुआ करता था। संताल परगना क्षेत्र बीरभूम जिला के पश्चिम भाग जंगल महल के नाम से जाना जाता था। सात दिन बैठक कर सिधु-कान्हू के नेतृत्व में कोलकाता जाकर सर्वोच्च अधिकारी बड़ा लाट साहब से मिलकर गुहार लगाने का निर्णय लिया था।आंदोलनकारियों ने परम्परागत हथियारों से लेश होकर भोगनाडीह से पैदल कोलकाता के लिये कूच किया था। रास्ते मे आंदोलनकारियों ने महाजनों के साथ संघर्ष किया था। उस समय बर्षात का समय था। आंदोलनकारियों ने रानीश्वर प्रखंड के मयूराक्षी नदी के आमजोड़ा घाट पार करने पंहुचा था, नदी में उफान चल रहा था।आंदोलन कारी नदी पार करने के समय अंग्रेज सैनिकों की गोली से शहीद हो गया था। शहीदों के खून से मयूराक्षी नदी का जल लाल हो गया था। हजारों शहीद का शव दिगुली गांव के एक तालाब में फेंक दिया था। सेटलमेंट रिकार्ड में उस तालाब का नाम हैं संताल काटा पोखर । बचे हुए आंदोलन कारी बीरभूम जिला के सिउड़ी पंहुचे पर अंग्रेज उस आंदोलन को कुचल कर शहीदों को रेल स्टेशन संलग्न मैदान में सामूहिक समाधी देकर आंदोलन समाप्त घोषित किया था। विश्व की इतिहास में किसी आंदोलन का इतना दुःखद अंत नहीं हुई थी। संताल बिद्रोह के बाद उसी बर्ष अंग्रेज बीरभूम जिला को खंडित कर संताल परगना को स्वतंत्र जिला घोषित किया था। संताल बिद्रोह से जुड़ा दस्तावेज कोलकाता के रिकार्ड रूम में अब भी जमा है । बिहार राज्य सरकार एवं वर्तमान राज्य सरकार उस रिकार्ड का यहां लाकर आंदोलन के इतिहास को लेकर शोध करने का पहल नहीं किया है। प्रत्येक बर्ष हुल दिबस के दिन बुद्धिजीवी आज भी यहां संताल काटा पोखर पंहुच कर आंदोलनकारियों को नमन करता है। और उस दिन को स्मरण कर आंखें भर आती है। उस पोखर को हेरिटेज घोषित करने के लिये यहा के बुद्धिजीवियों ने समय समय पर मांग उठाते रहे हैं ।
गौतम चटर्जी,(रानीश्वर),ग्राम समाचार,दुमका।
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