जब से आये हो, कहर बरसा रहे हो।
गरीबों और अमीरों सब के प्राण लिये जा रहे हो।
लक्षण अपने तबदील करते हो,
कैसे कठोर चित्त हो तुम, इतना रंग बदलते हो?
सारी गलियों में अब तेरा बसेरा है,
चारों तरफ से मासूमों को तुमने घेर है।
हर मक़ाम पर तबाही का अंधेरा है,
है तो कुदरत का इन्तेक़ाम, या किसी शैतान ने तुझे भेजा है?
जो भी हो तुम अब तो रुक जाओ,
लाचारी हमारी अब तो समझ जाओ।
ऐ सन्न दो हज़ार बीस अपना विष फैलाना अब छोड़ दे,
डसना है तो सबको डस, अथवा लाखों जीवन उजाड़ करना छोड़ दे।
- पृथा रॉय जयसवाल।
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