ग्राम समाचार, हिरणपुर(पाकुड़)। प्रखंड के डांगापाड़ा में शुक्रवार शाम से सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा प्रारम्भ हुई। भारी बारिश के बावजूद भी कथा के दौरान काफी संख्या में लोग उपस्थित थे। वृंदावन से पधारे कथावाचक दुर्गेश नन्दन जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि सत्संग का मूल अर्थ है सत्य। जहाँ सत्य है, वही भगवान है। सत्यचित्त आनन्द की कभी विनाश नही होती। जिससे काम, क्रोध, मोह व माया से मुक्ति मिलती है। तीनो काल में सत्य ही सर्वोपरि बना हुआ है। सत्संग रूपी दीया जलाने से बुरे आदतों से छुटकारा मिलेगी। भागवत कथा प्रारम्भ होने के साथ ही इंद्र देव ने भागवत स्थल को पवित्र कर दिया। भागवत में 18000 श्लोक व 338 अध्याय है। जिसके श्रवण से ईश्वर की प्राप्ति होती है। उन्होंने आगे कहा कि संसार मे कोई भी प्राणी सुखी नही है। कोई तन से तो कोई मन से दुखी है। मानो दुनिया सुख की खोज में लीन है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा कि धन, वैभव कमाना ही सुख नही है। सुख पाने के लिए भगवान की शरण में आना पड़ता है। शुद्ध सोने से आभूषण नही बनता, जिसमे तामा जैसे तत्व मिलाकर ही आभूषण बनाया जा सकता है। उसी तरह भगवान की माया - मोह को सम्मिलित कर ही जीवन जिया जाता है। परिवार से प्रेम करो, पर ईश्वर को मत भूलो। वही मुक्ति की अनुभूति प्रदान करती है। सच्चा सुख के लिए कही जाने की आवश्यकता नही है। वह तो पवित्र मन से ईश्वर की आराधना करने से ही प्राप्त हो जाती है। मीठा पदार्थ का स्वाद जीभ तक ही सीमित रहता है। भगवान प्रति आस्था व प्रेम आपके जीवन को सुखमय बना देती है। मुक्ति की द्वार खुलती है। इसलिए भागवत कथा से लोगो को काफी कुछ प्रेरणा मिलती है। इसकी श्रवण कर जीवन मे अंगीकार करना आवश्यक है। तब ही जीवन सार्थक होगा। कथा के दौरान भक्तिमय भजन की भी प्रस्तुति की गई। जिससे श्रोता भावविभोर हो उठे। कथा के दौरान यजमान मोहनलाल भगत, पत्नी राम प्यारी देवी सहित ग्रामीण भी उपस्थित थे।
Pakur News : सत्य ही भगवान की असली रूप है: आचार्य दुर्गेश
ग्राम समाचार, हिरणपुर(पाकुड़)। प्रखंड के डांगापाड़ा में शुक्रवार शाम से सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा प्रारम्भ हुई। भारी बारिश के बावजूद भी कथा के दौरान काफी संख्या में लोग उपस्थित थे। वृंदावन से पधारे कथावाचक दुर्गेश नन्दन जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि सत्संग का मूल अर्थ है सत्य। जहाँ सत्य है, वही भगवान है। सत्यचित्त आनन्द की कभी विनाश नही होती। जिससे काम, क्रोध, मोह व माया से मुक्ति मिलती है। तीनो काल में सत्य ही सर्वोपरि बना हुआ है। सत्संग रूपी दीया जलाने से बुरे आदतों से छुटकारा मिलेगी। भागवत कथा प्रारम्भ होने के साथ ही इंद्र देव ने भागवत स्थल को पवित्र कर दिया। भागवत में 18000 श्लोक व 338 अध्याय है। जिसके श्रवण से ईश्वर की प्राप्ति होती है। उन्होंने आगे कहा कि संसार मे कोई भी प्राणी सुखी नही है। कोई तन से तो कोई मन से दुखी है। मानो दुनिया सुख की खोज में लीन है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा कि धन, वैभव कमाना ही सुख नही है। सुख पाने के लिए भगवान की शरण में आना पड़ता है। शुद्ध सोने से आभूषण नही बनता, जिसमे तामा जैसे तत्व मिलाकर ही आभूषण बनाया जा सकता है। उसी तरह भगवान की माया - मोह को सम्मिलित कर ही जीवन जिया जाता है। परिवार से प्रेम करो, पर ईश्वर को मत भूलो। वही मुक्ति की अनुभूति प्रदान करती है। सच्चा सुख के लिए कही जाने की आवश्यकता नही है। वह तो पवित्र मन से ईश्वर की आराधना करने से ही प्राप्त हो जाती है। मीठा पदार्थ का स्वाद जीभ तक ही सीमित रहता है। भगवान प्रति आस्था व प्रेम आपके जीवन को सुखमय बना देती है। मुक्ति की द्वार खुलती है। इसलिए भागवत कथा से लोगो को काफी कुछ प्रेरणा मिलती है। इसकी श्रवण कर जीवन मे अंगीकार करना आवश्यक है। तब ही जीवन सार्थक होगा। कथा के दौरान भक्तिमय भजन की भी प्रस्तुति की गई। जिससे श्रोता भावविभोर हो उठे। कथा के दौरान यजमान मोहनलाल भगत, पत्नी राम प्यारी देवी सहित ग्रामीण भी उपस्थित थे।
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