शीतला सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र नाम से नए ट्रस्ट का गठन हो गया है। 22-23 दिसंबर, 1949 की रात मूर्ति रखने वाले, 1992 में उसका विध्वंस करने या राममंदिर के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वालों में कोई स्वयं या उनका उत्तराधिकारी इस ट्रस्ट में नहीं शामिल हो सका। अयोध्या में जो लोग अपने को राम मंदिर आंदोलन का शीर्ष बताते थे, वे संभवत: नए ट्रस्ट की सदस्यता के पात्र साबित नहीं हुए। राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष को भी भागीदारी नहीं मिल पाई। बाबरी मस्जिद विध्वंस के अभियुक्त होनेके कारण लोगों के चाहते हुए भी उन्हें ट्रस्ट में शामिल नहीं किया जा सका।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नए ट्रस्ट के गठन के लिए कहा था और पुराने ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वाभाविक रूप से अयोग्य करार दिए गए थे। बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखने और उसे गिराने वालों को आपराधिक कार्य के अभियुक्त होने के कारण नए ट्रस्ट से अलग रखना पड़ा। इस कसौटी के अनुसार ट्रस्ट की सदस्यता की अपेक्षा रखने वाले अधिकांश साधु-संत अपात्र की श्रेणी में आ गए। ट्रस्ट में न शामिल किए जाने के कारण उनकी जमात में असंतोष व निराशा स्वाभाविक ही है। जमीन नए ट्रस्ट को सौंपी जानी थी, इसलिए ग्रेटर कैलाश-2 के रजिस्ट्रार कार्यालय में 5 फरवरी को औपचारिकताएं पूरी की गईं।
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता 92 वर्षीय के पाराशरन और देश के कई प्रमुख संत-महंत नए ट्रस्टी हैं। अयोध्या से जो तीन लोग इसमें शामिल किए गए हैं, वे सभी राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका में नहीं थे। राजा राम के उत्तराधिकारी की खोज भी नहीं हो पाई है। अलबत्ता, अयोध्या के पूर्व राजा नए ट्रस्ट में शामिल हैं, जिनके पूर्वज 1857 से पहले शाहगंज के राजा थे और गोंडा के राजा देवीबख्श सिंह का विद्रोह नाकाम होने के बाद अंग्रेजों द्वारा उन्हें ‘महाराजा अयोध्या’ के खिताब के साथ देवीबख्श की जब्त संपत्ति का बड़ा हिस्सा दिया गया था। अलबत्ता, ट्रस्टी राजा क्षत्रिय की बजाय ब्राह्मण कुल से हैं। अयोध्या के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता और राम मंदिर आंदोलन में भागीदार रहे चंपत राय भी बाबरी विध्वंस के आरोपी निकले, तो उनके स्थान पर संघ के कार्यकर्ता होम्योपैथी के डॉक्टर अनिल मिश्रा को ट्रस्टी बनाया गया है।
अब सवाल है, मंदिर निर्माण से जनाकांक्षाएं कितनी तृप्त होनी हैं? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिग्गज नेता नानाजी देशमुख यह नहीं मानते थे कि नए युग में रामराज्य की स्थापना हो सकती है। अलबत्ता, वह राम व राममंदिर का इसलिए समर्थन करते थे, क्योंकि राम गुणों और मर्यादाओं की खान माने जाते हैं। बहरहाल, पुराने ट्रस्ट द्वारा राममंदिर निर्माण हेतु एकत्र जो आठ करोड़ रुपये बैंकों में जमा थे, कहा जाता है कि वे पत्थरों की खरीद, तराश तथा अन्य कार्यों में खर्च किए जा चुके हैं। वैसे जिस तरह का उत्साह है, मंदिर निर्माण के लिए धन की कमी नहीं पड़ने वाली। इसी क्रम में मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या जिले की सोहवल तहसील के धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ कृषि भूमि, जिसमें इस समय गेहूं की फसल लहलहा रही है, आवंटित की गई है। इसके मालिकों का रोना है कि उनके जीवन का आधार ही छीना जा रहा है। दूसरी ओर, यह भी कहा जा रहा है कि बाबरी मस्जिद की एवज में पांच एकड़ भूमि स्वीकार नहीं करनी चाहिए। मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता रहे जफरयाब जिलानी का कहना है कि जस्टिस वेंकटचलैया की पीठ ने अधिगृहीत भूमि में से ही मस्जिद के लिए भूमि देने की बात कही थी और उसके बाहर किया गया यह आवंटन निर्णय के विरुद्ध है।
यह सवाल भी अपनी जगह है कि राम जन्मभूमि आंदोलन की यह परिणति नए परिवेश में भाजपा की राजनीति के लिए कितनी सहायक होगी? कहीं उसका हाल वैसा ही न हो, जैसे बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए चुनावों में उसके मतों का अनुपात घटता गया था। इस गिरावट से उसका पीछा तब छूटा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘विकास के महानायक’ के रूप में अभ्युदय हुआ। उनके दो बार सत्ता में आने के पीछे इकलौता राम मंदिर मुद्दा नहीं, बल्कि महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के उन्मूलन की उम्मीद के साथ ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे मुद्दे थे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सौजन्य - हिन्दुस्तान।

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