संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए को लेकर फैले भ्रम के बीच प्रधानमंत्री का संसद में दिया भाषण एक तरह से समाज में समग्रता का भरोसा जगाने वाला था। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने भरोसा दिलाया कि मैं पूरी जिम्मेदारी से यह कहना चाहता हूं कि इस कानून से हिंदुस्तान के एक भी नागरिक पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ने वाला। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी सरकार समग्रता में विश्वास करती है और इस कानून के जरिए उस भाव को और मजबूत करने का प्रयास किया गया है। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से निस्संदेह लोगों का भरोसा बढ़ा होगा। सीएए को लेकर देश भर में भ्रम की स्थिति है। कई लोगों का मानना है कि इस कानून से मुसलिम अल्पसंख्यकों की नागरिकता पर बुरा असर पड़ेगा। वे इसे भेदभावपूर्ण कानून बता रहे हैं। इसे लेकर देश के विभिन्न इलाकों में धरने और प्रदर्शन हो रहे हैं। कई जगह पुलिस और नागरिकों के बीच हिंसक झड़पें भी हो चुकी हैं। इसमें कुछ लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। मगर इसके विरोध में उठे आंदोलन शांत होने का नाम नहीं ले रहे। ऐसे में सदन में प्रधानमंत्री के ताजा वक्तव्य की अहमियत समझी जा सकती है। सीएए को लेकर आम लोगों में भ्रम की स्थिति के पीछे एक वजह तो विपक्षी दलों की दलीलें हैं, पर दूसरी वजह सरकार की ओर से इस बारे में स्पष्ट तौर पर लोगों को न समझाया जाना भी है। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि अगर किसी कानून या प्रस्ताव पर लोगों के मन में शंकाएं हैं, तो उनका निवारण किया जाए। मगर सरकार ने इस कानून को बहुत हड़बड़ी में पारित कराया और फिर इसके कुछ पक्षों को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हुए, तो उन्हें स्पष्ट करने के बजाय और गाढ़ा होते जाने दिया। जब इसे लेकर आंदोलन शुरू हुए, तब भी सरकार की तरफ से आंदोलनकारियों को समझाने-बुझाने, उनके भ्रमों या शंकाओं का निवारण करने की कोशिश नहीं की गई। पचास दिन से ऊपर हो गए, मगर अंदोलन पर उतरे और धरनों पर बैठे लोगों से कोई संवाद स्थापित करने का प्रयास नहीं किया गया। बल्कि इसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुद्दा भी बनाया गया और इसकी मार्फत विपक्ष पर निशाना साधा गया। मगर इस पर उठे विवादों को सुलझाने के संजीदा प्रयास नहीं हुए। ऐसे में प्रधानमंत्री ने अगर सदन में भरोसा दिलाया है कि इस कानून से किसी के हितों को नुकसान नहीं पहुंचेगा, तो जाहिर है, सरकार अब इस मुद्दे को शांत करने को लेकर गंभीर है। किसी भी कानून से अगर किसी समुदाय के हितों को चोट पहुंचती है या समाज में विभेद पैदा होता है, तो उसे स्वस्थ लोकतंत्र की निशाानी नहीं कहा जा सकता। भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि यहां सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को समान अधिकार, सुविधाएं और सुरक्षा प्राप्त हैं। उनके साथ जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर कभी कोई भेदभाव नहीं हुआ। देश के विभाजन के बाद दो समुदायों के बीच धर्म के आधार पर कुछ मतभेद जरूर उभरे थे, पर उन्हें आपसी सौहार्द, विश्वास और भाई-चारे से दूर कर लिया गया था। सीएए आने के बाद भी सरकार ने विश्वास दिलाया था कि यह किसी समुदाय के प्रति अन्याय के मकसद से नहीं लाया गया है, पर उसे गलत मोड़ दे दिया गया। अब प्रधानमंत्री ने सदन में एक बार फिर उसे दोहराया है, तो उम्मीद की जाती है कि इससे सीएए को लेकर फैले भ्रम को दूर करने में मदद मिलेगी।
सौजन्य - जनसत्ता।

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