Bhagalpur News:मनाया गया हज़रत सुल्तान-उल-मशाइख रहमतुल्लाह अलैह का सालाना उर्स
ग्राम समाचार, भागलपुर। मशाइख चक स्थित मस्जिद में आज हज़रत सुल्तान-उल-मशाइख रहमतुल्लाह अलैह का सालाना उर्स बड़े ही तुजक व एहतराम, अकीदत और रूहानी माहौल के साथ मनाया गया। सुबह फज्र के बाद से ही अकीदतमंदों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था, और पूरे इलाके में दरूद और सलाम की गूंज सुनाई दे रही थी। उर्स की तकरीबात का बाक़ायदा आग़ाज़ कुरआन ख्वानी से हुआ, जिसमें स्थानीय उलेमा, मशाइख, मदरसे के छात्र और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। कुरआन ख्वानी के दौरान माहौल रूहानी सुकून से भर गया और सभी प्रतिभागी विशेष आध्यात्मिक कैफ़ियत में डूब गए। इसके बाद एक विशेष जलसे का आयोजन किया गया, जिसमें दीन और इस्लाह के विषयों पर रोशनी डाली गई। मदरसे के छात्रों ने मधुर आवाज़ में नात-ए-पाक पेश की, जिससे माहौल महक उठा और सभी श्रोता रूहानी लुत्फ़ में डूब गए। इस मौके पर खानकाह पीर दमड़िया शाह ख़लीफ़ा बाग़, भागलपुर के सज्जादानशीन मौलाना सैयद शाह फ़ख़रे आलम हसन ने प्रभावशाली और दिल को छू लेने वाला बयान दिया। उनका बयान कार्यक्रम की जान बन गया। उन्होंने कहा कि “सज्दों में गिर-गिराकर दुआ करनी चाहिए, क्योंकि जब बंदा मोहब्बत-ए-रसूल के साथ अपने गुनाहों की माफी मांगता है, तो अल्लाह तआला उसे नेक बंदों में शामिल फ़रमा लेता है।” मौलाना ने आगे कहा कि अल्लाह बंदे की नीयत और दिल की पाकीज़गी को देखता है। उन्होंने कहा “अल्लाह जिसे चाहता है अपना महबूब बना लेता है, लेकिन अल्लाह का क़ुर्ब पाने के लिए ज़रूरी है कि बंदा सच्चे दिल से उसके सामने झुके, उसकी नेमतों का शुक्र अदा करे और हज़रत मुहम्मद की सुन्नतों को अपनी जिंदगी में उतारे। बंदा जब एक क़दम अल्लाह की तरफ बढ़ाता है, तो अल्लाह उसकी ओर कई कदम बढ़कर आता है – यही रहमत का दरवाज़ा है।“ उन्होंने कहा कि दुनिया और आख़िरत की कामयाबी उसी को मिलती है जो अल्लाह और उसके रसूल के रास्ते पर चलता है। जो इंसान ईमान, मोहब्बत, अच्छे कर्म और इंसानियत की सेवा को अपना उसूल बनाता है, वही जन्नत का हक़दार होता है। मौलाना ने बताया कि “अल्लाह की बख़्शिश और मग़फ़िरत उन्हीं को नसीब होती है जो दिल से उसकी तरफ़ रुझान रखते हैं, अपने दिलों को हसद और नफ़रत से पाक करते हैं और मोहब्बत व भलाई को अपनाते हैं।” हज़रत सुल्तान-उल-मशाइख की सीरत बयान करते हुए मौलाना फ़ख़रे आलम हसन ने कहा कि वे शरियत के पाबंद, इल्म और तक़वा के पहाड़ और अख़लाक़ के नायाब मिसाल थे। सदियां गुजरने के बाद भी लोग उन्हें अकीदत से याद करते हैं, और यह उनकी इल्मी और रूहानी बुलंदी की वजह से है। उन्होंने कहा कि विलायत की ऊंची मंज़िल वही पाता है जो इल्म-ए-दीन का तलबगार हो और शरियत पर मजबूती से क़ायम रहे। अंत में मुल्क व मिल्लत की सलामती, अमन, भाईचारा, नई पीढ़ी की रहनुमाई और उम्मत-ए-मुस्लिम की एकता के लिए खास दुआ की गई। उर्स का समापन दरूद व सलाम और रूहानी दुआओं के साथ हुआ। इस मौके पर मस्जिद व मक़तब के निगरां शाहजहां सहित बड़ी संख्या में अकीदतमंद मौजूद थे।

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