ग्राम समाचार बोआरीजोर, गोड्डा। सरकार भले ही गरीब मजदूरों को रोजगार देने और उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लाख दावे करे, लेकिन धरातल पर हालात कुछ और ही बयां करते हैं। गरीब मजदूरों को रोज़गार और रोजी-रोटी दे रही है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके उलट है। एक बार फिर मनरेगा योजना की हकीकत उजागर हुई है, जहां मजदूरों को पता भी नहीं कि उनके नाम पर मनरेगा से पैसे की निकासी की जा रही है।
झारखंड के गोड्डा जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने मनरेगा योजना की पारदर्शिता और निगरानी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बोआरीजोर प्रखंड के मेगी पंचायत स्थित खजुरिया गांव के एक मजदूर के मनरेगा जॉब कार्ड से अवैध रूप से पैसे निकाले जा रहे थे और उसे इस निकासी की भनक तक नहीं थी। जब पीड़ित मजदूर सानतो हेंब्रम ने आधार नंबर को गूगल पर सर्च किया तो उन्हें इस धोखाधड़ी की पूरी जानकारी मिली। इसके बाद उन्होंने उपायुक्त गोड्डा को लिखित शिकायत दी, जिसकी प्रतिलिपि प्रखंड विकास पदाधिकारी बोआरीजोर और भारतीय राष्ट्रवादी पार्टी के झारखंड प्रदेश, महासचिव दीनबंधु मंडल को भी भेजी गई।
शिकायत में यह भी उल्लेख है कि यह निकासी फिनो ऐप के जरिए की जा रही है। इसमें बिचौलिए मजदूरों से जरूरी दस्तावेज और जानकारी लेकर उनके नाम पर मोबाईल पर फिनो ऐप पर खाता खोलते हैं और फिर पासवर्ड अपने पास रखकर मनरेगा से आने वाली मजदूरी की राशि निकाल लेते हैं। यह धोखाधड़ी लंबे समय से चल रही है।
बोआरीजोर के बीडीओ मिथिलेश कुमार सिंह को इस मामले को लेकर पत्रकार से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि मामला संज्ञान में आया है और जांच के आदेश दे दिए गए हैं। जाँच उपरांत दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय राष्ट्रवादी पार्टी के झारखंड प्रदेश महासचिव दीनबंधु मंडल ने कहा इस तरह गरीब मजदूरों के साथ धोखा करना और सरकारी राशियों का अवैध तरीके से निकासी करना निंदनीय है। मैं इस मामले में मजदूर को न्याय दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करूंगा और प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग करता हूं।
यह कोई इक्का-दुक्का मामला नहीं है, बल्कि झारखंड के कई प्रखंडों में मनरेगा योजना के तहत इसी तरह गरीब मजदूरों के हक का पैसा निकाला जा रहा है। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या मजदूरों का अधिकार सुरक्षित है? या फिर सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही गरीबों के कल्याण का भ्रम फैलाती रहेंगी?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस पर क्या ठोस कदम उठाता है। यदि ऐसे मामलों पर कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो मजदूरों का भरोसा सरकारी योजनाओं से उठता जाएगा और विकास सिर्फ आंकड़ों में सीमित रह जाएगा।
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