Rewari News :: सनातन संस्कृति के प्रणेता आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा देश को एक सूत्र में बांधने हेतु चारों पीठों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की " विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया



सनातन संस्कृति के प्रणेता आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा देश को एक सूत्र में बांधने हेतु अनेकों तीर्थ को प्रतिष्ठा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनें हेतु सांयकाल ऐतिहासिक सोलराही प्राचीन श्याम मंदिर के प्रांगण में आयोजित संगोष्ठी में भारत माता एवं आदि गुरु शंकराचार्य की आरती पूजा अर्चना के साथ भक्ति में वातावरण में संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ।आर्टिस्ट अमन यादव द्वारा बनाई गई लाइव पेंटिंग का अनावरण पं. दिलीप तिवाड़ी और डॉ.आर.के. जांगड़ा द्वारा किया गया।आर्टिस्ट अमन यादव द्वारा केदारनाथ धाम स्थित भगवान आदि गुरु शंकराचार्य की केदारनाथ स्थित प्रतिमा की लाइव पेंटिंग द्वारा युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और संस्कारों को अपनाने का संदेश दिया गया। उन्होंने कहा आदि शंकराचार्य महान व्यक्तित्व के संत थे। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पं. दिलीप तिवाड़ी ने कहा आदिगुरु शंकराचार्य हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य जी को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है।आदि गुरु शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धान्तों को पुनर्जीवित करने का कार्य किया।आदि शंकराचार्य जी ने ही हिंदू धर्म को पुनर्स्थापना करने का कार्य किया है। धर्म को लेकर लोगों में फैलाई जा रही तरह-तरह की भ्रांतियों को उन्होंने मिटाने का काम किया।आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म आठवीं सदी में भगवान शिव के अवतार के रूप में हुआ। वह 13 वर्ष की उम्र में संन्यासी बन गए थे। 



संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता प्रोफेसर डॉ.जया शर्मा ने कहा आचार्य शंकर ने अल्पायु में ही न केवल बड़े-बड़े ग्रंथो की रचना की बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष का परिभ्रमण कर धार्मिक दृष्टि से उसे एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया। उन्होंने ज्ञान,कर्म और भक्ति के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किये। शंकराचार्य ने शैव, शाक्त, वैष्णव, सौर गणपत्य और कौमार इन छह पौराणिक मत पंथो का प्रति संस्कार किया। वैदिक युग की हिंसा और आडंबरों से क्षुब्ध होकर बुद्ध ने एक नए पथ का प्रवर्तन किया जिसके फल स्वरुप वैदिक परंपराएं लुप्त होने लगी थी। ऐसे में सनातन धर्म को बचाने के लिए कुमारिल भट्ट ने अथक प्रयास किए। वे वैदिक कर्मकांड के प्रबल पक्षधर थे, किंतु वह यह नहीं समझ पाए की इतिहास का चक्र अब आगे बढ़ चुका है,उसे पीछे लौटना संभव होगा। गुरु शंकराचार्य द्वारा खोजी गई नवीन राहें आज का हिंदू धर्म है। उन्होंने देश को एक सूत्र में बांधने के लिए अनेक तीर्थ को प्रतिष्ठा दी और कुंभ मेला प्रारंभ किया।आदि गुरु शंकराचार्य ने इस जगत को मिथ्या बताते हुए ईश्वर को सत्य बताया। उन्होंने कहा विद्वान लोगों का मुख्य उद्देश्य अपने आप को ईश्वर व ब्रह्म से तादात्म्य स्थापित करना है।उन्होंने हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए चार अलग दिशाओं में चार मठों की जो इस प्रकार हैं - उत्तर दिशा में बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ, पश्चिम दिशा में द्वारका में शारदा मठ, दक्षिण दिशा में श्रृंगेरी मठ और पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना की।



कार्यक्रम के संयोजक सामाजिक कार्यकर्ता डॉ.आर.के. जांगड़ा विश्वकर्मा, सदस्य, स्वच्छ भारत मिशन हरियाणा सरकार एसटीएफ ने कहा आदि गुरु शंकराचार्य हिंदू धर्म के महान दार्शनिक और धर्मगुरु थे। वह कम उम्र में ही वेदों के ज्ञाता बन गए और संन्यास धारण कर लिया था। उन्होंने अद्वैत वेदान्त के सिद्धांत को स्थापित कर सनातन धर्म को नई दिशा दी।उनका जीवन मात्र 32 वर्षों का रहा, लेकिन उन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में हिंदू धर्म को संगठित और सुदृढ़ किया।आध्यात्मिकता और भक्ति परंपरा के प्रकाश स्तंभ आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा हिंदू समाज में यज्ञ,ध्यान,पर्व,उत्सव व्रत,जप,तप,उपवास आदि उन्ही के प्रयासों से ही प्रतिष्ठित हुयें। उन्हीं के मार्गदर्शन में चलते हुए रामानुजाचार्य और रामानंद की सामाजिक समरसता वाली सर्वस्पर्शी भक्ति फली फूली। संगोष्ठी में पर्यावरण व जल संरक्षण के संकल्प के साथ सिमरन,रानी, रेखा रानी, सुमित्रा देवी गीता, राधिका, अंजलि, अनामिका, ममता, संतोष, सरिता, सुनीता को तुलसी का पौधा भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर आर्टिस्ट अमन यादव, पं.दिलीप तिवाड़ी, पीयूष गौरव सचिन दीपेंद्र शर्मा हरिकिशन राजन भल्ला, कैलाश चंद्र, जितेंद्र कुमार सतीश यादव, भूपेंद्र सिंह, अजय शर्मा आदि विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी गांड विशेष रूप से उपस्थित थे।

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Editor - राजेश शर्मा : रेवाड़ी (हरि.) - 9813263002

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