स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने वित्तमंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट 2023-24 को लोक लुभावना चुनावी बजट बताया जिसमें वादे, जुमले, दावों और आंकडों की बाजीगिरी के सिवाय कुछ नही है। व्यक्तिगत आयकर सीमा 5 लाख से 7 लाख रूपये बढ़ाने से लोवर इनकम गु्रप के नौकरीपेशा लोगों को जरूर कुछ लाभ होगा। विद्रोही ने कहा कि इस बजट से न तो नये रोजगार के अवसर पैदा होंगे और न हीे महंगाई कम होगी और न ही विकास होगा। बजट से जब नये रोजगार बढ़ेंगे ही नही तो स्वभाविक है कि बेरोजगारी बढेगी व आमजन की जेब में पैसा नही होगा और जब आमजन की जेब में पैसा नही होगा तो महंगाई में बाजार से खरीददारी कौन करेगा। जब बाजार में ज्यादा खरीददारी ही नही बढेगी तो विकास की चेन का बढऩे का दावा एक जुमला नही तो क्या है? वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट में जितने दावे किये है, उनके स्पोर्टिंंग आंकडे बजट में उपलब्ध नही है। नौकरीपेशा लोगों की आयकर सीमा 5 से 7 लाख रूपये करके एक छोटे से वर्ग को जरूर लाभ होगा जिसका स्वागत है।
विद्रोही ने कहा कि इस बजट से बड़े पूंजीपति, उद्योगपति, शेयर मार्किट तो खुश हो सकता है, लेकिन किसान, मजदूर, गरीब के लिए बजट में खुश होने के लिए कुछ नही हैं उद्योगपतियों को आयकर में छूट दी है जबकि आमजन की जेब में पैसा आये, इसका बजट में कोई प्रावधान नही है। यह सरकार आंकडों की कैसी बाजीगिरी करती है, इसकी बानगी आर्थिक सर्वे में फिगर 111.3 कम्पोजिशन टैक्स प्रोफाईल में दिखती है जहां टैक्स कम्पोजिशन को जोडा जाये तो वह 100 प्रतिशत की बजाय 114 प्रतिशत बैठता है जिसका साफ अर्थ है कि मोदी सरकार के आंकडों में 15 से 17 प्रतिशत की हेराफेरी होती है। इसकी बानगी पूर्व के आंकडों में भी झलकती है। वर्ष 2022 के आर्थिक सर्वे में जीडीपी का अनुमान 8.5 प्रतिशत था जो वास्तव में 7 प्रतिशत रहा। इसी तरह वर्ष 2023 के आर्थिक सर्वे में जीडीपी का अनुमान 6 से 6.8 प्रतिशत बताया है जो पूर्व वर्षो के अनुभव के आधार परे 5.6 प्रतिशत रहना है। वर्ष 2022-23 के बजट में घाटे में जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने व 2023-24 में 5.9 प्रतिशत होने को अनुमान बताया गया है जो साफ बता रहा है कि महंगाई बढ़ेगी और विभिन्न योजनाओं के लिए दिये गए बजट आवंटन राशि में कटौती होगी। आश्चर्य की बात है कि वित्तमंत्री ने बजट 2023-24 का रखा है और दावा 25 सालों के विकास का किया जा रहा है जो अपने आप में हास्यास्पद है। विद्रोही ने कहा कि बजट साफ बता रहा है कि जीडीपी सुस्त होगी जिससे बेकारी, गरीबी, महंगाई बढनी तय है। बजट में किसान, मजदूर, ग्रामीणों, गरीबों, शोषितों, पिछडो, दलितों, आदिवासियों के लिए जुमले व दावों के सिवाय कुछ नही है। इस बजट में कृषि, पब्लिक हैल्थ, शिक्षा, मनरेगा, भोजन सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा व जनकल्याण के बजट को पिछले वर्ष की तुलना में कम किया गया है जो किसान, मजदूरों व गरीबों के लिए बहुत बड़ा झटका है। विद्रोही ने इस बजट को दिशाहीन, विकासहीन, पूंजीपति हितैषी, किसान, मजदूर, गरीब विरोधी बजट बताया जिससे बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी बढऩा तय है। वहीं कृषि और किसान का विकास रूकेगा और आमजन को नागरिक सुविधाओं का अच्छा ढांचा नही मिलेगा जिससे उसकी कठिनाई ज्यों की त्यों रहने वाली है।
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