ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:- ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केंद्र, गोड्डा के सौजन्य से पोड़ैयाहाट प्रखंड के केलाबाड़ी ग्राम में प्रक्षेत्र परीक्षण, जल शक्ति अभियान तथा स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रक्षेत्र परीक्षण कार्यक्रम के तहत प्रगतिशील किसानों के खेत में खरीफ मक्का फसल में फाल आर्मी वार्म कीट के प्रकोप को देखते हुए पौधा सुरक्षा वैज्ञानिक डाॅ. सूर्यभूषण ने किसानों को फाल आर्मी वार्म कीट की पहचान कराई। इस कीट की वयस्क मादा मोथ पौधों की पत्तियों और तनों पर अण्डे देती है। एक बार में मादा 50 से 200 अण्डे देती है। मादा अपने 20-21 दिनों के जीवन काल में 10 बार यानी 1700-2000 तक अण्डे दे सकती है। ये अण्डे 3 से 4 दिन में फूट जाते हैं। इनसे जो लार्वा निकलते है वो 14 से 22 दिन तक इस अवस्था में रहते हैं। कीट के लार्वा के जीवन चक्र की तीसरी अवस्था तक इसकी पहचान करना मुश्किल है लेकिन लार्वा की चौथी अवस्था में इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है। इसके लार्वा पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाता है जिससे पत्तियों पर सफेद धारियाँ दिखाई देती हैं। जैसे-जैसे लार्वा बड़ा होता है, पौधों की ऊपरी पत्तियों को खाता है और बाद में पौधों के भुट्टे में घुसकर अपना भोजन प्राप्त करता है. पत्तियों पर बड़े गोल-गोल छिद्र नजर आते हैं। इस कीट के नियंत्रण हेतु इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एसजी 0.4 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। उद्यान वैज्ञानिक डाॅ.हेमन्त कुमार चौरसिया ने अरहर की वैज्ञानिक खेती के विषय में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अरहर की प्रजाति राजीव लोचन उकठा रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म है, यह 180 से 190 दिन में पक कर तैयार हो जाती है तथा इसकी उपज 18 से 20 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। सस्य वैज्ञानिक डाॅ.अमितेश कुमार सिंह ने कुल्थी की वैज्ञानिक खेती के विषय में विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने कहा कि कुल्थी की प्रजाति इंदिरा कुल्थी-1 ऊपरी जमीन एवं सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है तथा इसकी उपज 6 से 7कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। कृषि प्रसार वैज्ञानिक डाॅ0 रितेश दुबे ने जल संरक्षण, गांव की साफ-सफाई, कूड़ा-करकट, खर-पतवार, गोबर को गड्ढे में डालकर उसमें केंचुआ छोड़कर केंचुआ खाद बनाने की विधि पर चर्चा किया। मौके पर सुशीला देवी, सनोती सोरेन,अनीता किस्कू, मीरू सोरेन, सोकल बेसरा, लिली हेम्ब्रम, सदमुनी मरांडी, पटवारी हेम्ब्रम, रसिक हेम्ब्रम, मुनि हेम्ब्रम समेत 30 प्रगतिशील महिला-पुरूष किसान प्रशिक्षण में सम्मिलित हुए।
Godda News: एक बार में मादा अपने जीवन काल में 50 से 200 अंडे देती है- डॉ सूर्य भूषण
ग्राम समाचार, गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:- ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केंद्र, गोड्डा के सौजन्य से पोड़ैयाहाट प्रखंड के केलाबाड़ी ग्राम में प्रक्षेत्र परीक्षण, जल शक्ति अभियान तथा स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रक्षेत्र परीक्षण कार्यक्रम के तहत प्रगतिशील किसानों के खेत में खरीफ मक्का फसल में फाल आर्मी वार्म कीट के प्रकोप को देखते हुए पौधा सुरक्षा वैज्ञानिक डाॅ. सूर्यभूषण ने किसानों को फाल आर्मी वार्म कीट की पहचान कराई। इस कीट की वयस्क मादा मोथ पौधों की पत्तियों और तनों पर अण्डे देती है। एक बार में मादा 50 से 200 अण्डे देती है। मादा अपने 20-21 दिनों के जीवन काल में 10 बार यानी 1700-2000 तक अण्डे दे सकती है। ये अण्डे 3 से 4 दिन में फूट जाते हैं। इनसे जो लार्वा निकलते है वो 14 से 22 दिन तक इस अवस्था में रहते हैं। कीट के लार्वा के जीवन चक्र की तीसरी अवस्था तक इसकी पहचान करना मुश्किल है लेकिन लार्वा की चौथी अवस्था में इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है। इसके लार्वा पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाता है जिससे पत्तियों पर सफेद धारियाँ दिखाई देती हैं। जैसे-जैसे लार्वा बड़ा होता है, पौधों की ऊपरी पत्तियों को खाता है और बाद में पौधों के भुट्टे में घुसकर अपना भोजन प्राप्त करता है. पत्तियों पर बड़े गोल-गोल छिद्र नजर आते हैं। इस कीट के नियंत्रण हेतु इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एसजी 0.4 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। उद्यान वैज्ञानिक डाॅ.हेमन्त कुमार चौरसिया ने अरहर की वैज्ञानिक खेती के विषय में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अरहर की प्रजाति राजीव लोचन उकठा रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म है, यह 180 से 190 दिन में पक कर तैयार हो जाती है तथा इसकी उपज 18 से 20 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। सस्य वैज्ञानिक डाॅ.अमितेश कुमार सिंह ने कुल्थी की वैज्ञानिक खेती के विषय में विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने कहा कि कुल्थी की प्रजाति इंदिरा कुल्थी-1 ऊपरी जमीन एवं सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है तथा इसकी उपज 6 से 7कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। कृषि प्रसार वैज्ञानिक डाॅ0 रितेश दुबे ने जल संरक्षण, गांव की साफ-सफाई, कूड़ा-करकट, खर-पतवार, गोबर को गड्ढे में डालकर उसमें केंचुआ छोड़कर केंचुआ खाद बनाने की विधि पर चर्चा किया। मौके पर सुशीला देवी, सनोती सोरेन,अनीता किस्कू, मीरू सोरेन, सोकल बेसरा, लिली हेम्ब्रम, सदमुनी मरांडी, पटवारी हेम्ब्रम, रसिक हेम्ब्रम, मुनि हेम्ब्रम समेत 30 प्रगतिशील महिला-पुरूष किसान प्रशिक्षण में सम्मिलित हुए।
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