Chandan News: आज राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले कि124वां परिनिर्वाण दिवस आयोजित

ग्राम समाचार,चांदन,बांका। चांदन प्रखंड के कुसुमजोरी पंचायत अंतर्गत कड़वमारण के ज्ञान भवन में 10 मार्च 2021को बिहार दलित विकास समिति के द्वारा सावित्री बाई माता समिति तथा दलित मुक्ति मिशन के संयुक्त तत्वावधान में माता सावित्री बाई फुले की परिनिर्वाण दिवस मनाया गया। जिसमें पूर्व पंचायत समिति सदस्य कुसुमजोरी श्रीमती सुनीता देवी के अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम का दीप जलाकर उदघाटन डीएमएम के निदेशक महेंद्र कुमार रौशन ने किया। वक्ता के रूप में महेंद्र रौशन ने बताया कि, आधुनिक भारत में महिलाओं की शिक्षा की ऐतिहासिक नींव 

रखने वाली, प्रथम छात्रा और शिक्षिका,ऊंच-नीच, छुआछूत एवं लिंग-विभेद के खिलाफ जीवन भर संघर्ष करने वाली अदम्य योद्धा, समाज सुधार की महानायिका राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले का 124वां परिनिर्वाण दिवस है। इस पुनीत अवसर पर सभी नागरिकों एवं बहुजन समाज के लोगों की ओर से उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि और शत शत नमन। 3 जनवरी,1831ई में उनका जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले में खंडाला तहसील के नायगांव निवासी खंडोजी नेवसे पाटिल की ज्येष्ठ पुत्री के रूप में हुई थी। 1840 ई में केवल 9 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई की शादी तेरह वर्षीय ज्योतिबा फुले के साथ कर दी गई थी। ज्योतिबा फुले और बुआ सगुणाबाई क्षीरसागर के प्रयास से उनकी शिक्षा हुई। 1जनवरी,1848ई में ज्योतिबा फुले ने आधुनिक भारत में प्रथम कन्या विद्यालय की स्थापना की थीं। जिसमें प्रथम छात्रा के रूप में सावित्रीबाई फुले का नामांकन कराया गया था। बहुत ही कम समय में ही दिन- रात मेहनत कर सावित्रीबाई फुले ने शिक्षण और प्रशिक्षण प्राप्त कर आधुनिक भारत की प्रथम शिक्षिका बनीं । वे केवल पांच वर्षों में ही तीन कन्या विद्यालयों को संचालित करती रहीं। उस काम में उनका सक्रिय सहयोग उस्मान शेख़ की बहन फातिमा शेख कर रही थीं। बहुजन समाज और महिला शिक्षा के लिए समर्पित त्याग की प्रतिमूर्ति फातिमा शेख भी प्रथम मुस्लिम समाज की शिक्षिका बनीं। इन्हीं दोनों महान शिक्षिकाओं के 

कारण भारत में सभी जातियों और धर्मों की महिलाओं की शिक्षा की नींव रखी गई थीं। ब्राह्मणवादी लोगों के द्वारा विद्यालय जाते और वापस आते समय उन पर कीचड़, गोबर,धूल आदि फेंका जाता था और अपशब्द कहा जाता था। उन तमाम कठिनाइयों,अपमानों एवं दुखों को सहते हुए उन्होंने नये आधुनिक भारत की आधारशिला रखी थीं। राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले एवं माता सावित्रीबाई फुले ने सवर्ण गर्भवती विधवा नारियों की जिंदगी बचाने के लिए और उनके बच्चों को जीवन देने के लिए बाल हत्या प्रतिषेध (रक्षा) गृह की स्थापना की थीं।उसकी पूरी जिम्मेदारी तथा देखभाल राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले के कंधे पर ही थीं। उस जिम्मेदारी का निर्वहन उन्होंने आजीवन की थीं।सावित्रीबाई फुले ने राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले के सामाजिक- सांस्कृतिक क्रांति में प्रत्येक स्तर पर कदम से कदम मिलाकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायीं। राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने मूलनिवासी बहुजन समाज में फैले ब्राह्मणवादी विचारों और धार्मिक कर्मकांडों को खत्म करने के लिए 1873ई "सत्यशोधक समाज" नामक संगठन की नींव डाली थीं तो राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ने उसे आगे बढ़ाने में 1890ई तक लगातार सक्रिय भूमिका निभाई थीं। 1873 ई में ही ज्योतिबा फुले की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक "गुलामगिरी"प्रकाशित हुई थी जिसे अध्ययन कर राष्ट्रमाता जगह -जगह लोगों के बीच ब्राह्मणवादी देवी -देवताओं और विचारों का खंडन एवं उसके दुर्गुणों की चर्चा करती थीं। 1890 ई में राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले के परिनिर्वाण के बाद 1891से 1897 ई तक सत्यशोधक समाज को नेतृत्व राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ने किया। 1897 ई में पुणे में हैजा और प्लेग की बीमारी फैली थीं जिसमें उन्होंने जी -जान से लोगों की सेवा करने के कार्य किए। प्लेग के शिकार एक अछूत महार बच्चे को अपने कंधे पर रख कर चिकित्सा के लिए अपने पुत्र डॉ यशवंत राव के पास ले जाने के क्रम में ही 10मार्च 1897 को वे स्वयं प्लेग की शिकार हो गयीं और सामाजिक सेवा में ही उनका परिनिर्वाण हुआ। 

राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले महान शिक्षाविद, महान मराठी कवित्री,महान समाज सुधारिका,दया, करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति थीं। उन्होंने आजीवन जाति -विभेद, छुआछूत, लिंग- विभेद, साम्प्रदायिक विभेद के विरुद्ध आन्दोलन को नेतृत्व दिया। भारत में समता, स्वतंत्रता, भाईचारा और न्याय की स्थापना के लिए उन्होंने मनुवादी- ब्राह्मणवादी व्यवस्था एवं धर्म -संस्कृति के खिलाफ शिक्षा का प्रसार- प्रचार करने एवं लगातार संघर्ष संचालित करने का आह्वान किया। इस सम्बन्ध में उन्होंने जगह -जगह भाषण दिया और स्वयं कविताओं की रचना कर मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को शिक्षित होने का आह्वान किया। उनकी पुस्तक काव्य फुले 1854 ई में प्रकाशित हुई थी। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता रानी पूर्व पंचायत समिति सदस्य सुनीता देवी, दीनदयाल दास, देवराज कुमार, रामू ताती, कारु दास, गीता देवी, मिलवा देवी , चमेली देवी आदि अन्य वक्ताओं ने माता सावित्री बाई फुले के चित्र पर माला अर्पित करते हुए उनके जीवन संघर्ष के बारे चर्चा किया। समारोह में जुली कुमारी, काजल कुमारी, मनीषा कुमारी ने गीत गाकर कार्यक्रम को आकर्षक बनाया। इस आयोजन में मुख्य रूप दलित मुक्ति मिशन के डायरेक्टर महेंद्र रोशन के साथ सैकड़ों दलित आदिवासी महिलाओं उपस्थित थे। 

उमाकांत साह, ग्राम समाचार संवाददाता,चांदन,बांका।

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Editor - कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बाँका,(बिहार)

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