ग्राम समाचार,बौंसी,बांका।
त्रिलिंग तीर्थ का महात्बैम्द्नथ 12 ज्योतिर्र्लिंगों में से एक हैं । यहाॅ सती का हृदय गिरा था , इसलिये यह हृदय पीठ कहलाता है । यहाॅ शिव के साथ सती रहस्य भी समाहित है । मंदिर परिसर में विश्वकर्मा ने सभी देव देवियों के भव्य मंदिर का भी निर्माण किये हैं । प्रमुख मंदिर के गुम्बद पर स्वर्णकलश सुशोभित हैं और अंदर में चंद्रकांत मणि जिनसे शिवलिंग पर
बूंद बूंद अमृत टपकते रहता है जो रहस्य है। शिवगंगा के पश्चिम में जहाॅ सती का शिव द्वारा चिता संस्कार किया गया था। वह चिताभूमि कहलाता है। मंदार स्थित काशी विश्वनाथ , बासुकिधाम में नागेश्वर और देवघर में रावणेश्वर बैद्यनाथ के मध्य क्षेत्र को त्रिलिंग क्षेत्र कहा जाता है । मान्यता है कि, इन तीनों शिवलिंगों पर श्रावण मास में गंगाजल चढ़ाने से जनम जनम का पाप कट जाता है । मंदार स्थित काशी विश्वनाथ की कथा है कि, जब
सती की इच्छा पर शिव ने अपने त्रिशूल पर काशी नगरी का निर्माण कराया और भक्ति वरदान के कारण दिवोदास को काशी नगरी दान में दे दी। अब सती के साथ शिव बादल पर निवास करने लगे। जिससे वे जीमूतवाहन कहलाये। कालांतर में वासव (इन्द्र) की विनती पर महादेव ने मंदार पर निवास करना स्वीकार किया। इसी मंदार से रावण ने शिव को उठाया और मधुसूदन बने बैजू के कारण वे देवघर में स्थित हुये और
रावणेश्वर बैद्यनाथ कहाये । इधर शिव के कंठहार बासुकिनाग ने अपने हाथों लिंग स्थापना करने की जिद ठान ली कि नाग जातियों का मान सम्मान जगत में कैसे कायम रहेगा ।बासुकि के समुद्रमंथन में किये गये महती योगदान का स्मरण शिव ने किया और उसे लिंग स्थापना की स्वीकृति दे दी ।गुजरात द्वारिका के राजा वीरसेन ने एक भूखंड बैजनाथ
और मंदार के सीध में देकर दारूकवन बसाया। जिसमें बासुकिनागराज ने नागेश्वर रूप में शिवलिंग की स्थापना कर बासुकिनाथ धाम बसाया । कहते हैं श्रावण मास में इन शिवलिंगों पर गंगाजल चढ़ते देखने के लिये तैंतीस करोड़ देव देवियाॅ अपने सिद्ध महाविद्याओं के साथ विभिन्न रूपों में क्षेत्र में विचरते हैं लेकिन शिवभक्त काॅवरिये उन्हें पहचान नहीं पाते ।
कुमार चंदन,ग्राम समाचार संवाददाता, बौंसी।
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