Bhagalpur News:किसानों के मुद्दे को लेकर प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
ग्राम समाचार, भागलपुर। शहर के भीखनपुर में बुधवार को किसान मुद्दे पर प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस अवसर पर हाल के दिनों में सरकार द्वारा पारित 3 कृषि कानून और बिहार में किसानों की स्थिति पर विस्तार पूर्वक चर्चा हुई। प्रशिक्षण कार्यशाला में अपनी बात रखते हुए उदय ने कहा कि किसानी को भारतीय संस्कृति में बहुत ही उच्च स्थान प्राप्त है, इसीलिए कहा गया है "उत्तम खेती मध्यम बान"। अर्थात खेती सबसे उत्तम है और व्यापार नौकरी उसके बाद आता है। परंतु विगत कुछ वर्षों में किसानों की स्थिति बदतर होती चली गई। एक वक्त था जब खेती किसानी करते हुए लोग अपने बच्चों को पढ़ा लिया करते थे। कष्ट से ही सही किसान के घर डॉक्टर इंजीनियर भी बन जाते थे। पर अब यह संभव नहीं। पढ़ाई तो दूर दैनिक जीवन की जरूरतें भी खेती से पूरा नहीं हो पा रहा है। इसका प्रमुख कारण किसानों के उपज को उचित मूल्य नहीं मिलना है। हरित क्रांति के बाद फसल उत्पादन मैं वृद्धि हुई लोगों का पेट तो भरा पर किसानों की खुद की जिंदगी दूभर होती गई। एक वक्त था जब किसान थोड़े से अनाज बेचकर डॉक्टर को दिखा लिया करते थे पर आज उसी काम के लिए कई क्विंटल अनाज बेचने की जरूरत हो जाती है। खेती में खर्च बढ़ गया पर उसके अनुसार अनाजों के मूल्य में वृद्धि नहीं हुई। अजमेरीपुर बैरिया से आई महिला किसान चंदा देवी ने बताया कि मक्के की खेती पूरी तरह से कंपनियों पर निर्भर हो गया है। कंपनी का बीज खाद कीटनाशक सब कुछ बाजार से ही लेना होता है। उसके बाद भी उपज के बाद उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। आज 12 रुपया प्रति किलो मक्के बेचने को किसान मजबूर है, जबकि मक्के का सरकारी मूल्य 18 रुपये से अधिक है। इस मौके पर सार्थक भरत ने तीनों किसी कानून को संक्षेप में रखा। उन्होंने बताया कि पहले कानून में एमएसपी खत्म किए बिना ही किसानों को उपज का उचित मूल्य देने के सरकार के वादे को समाप्त करना। दूसरे कानून के द्वारा कालाबाजारी को खुली छूट दे दी गई है। इस कानून के कारण पूंजीपति किसानों की उपज का कम कीमत पर खरीद कर आसानी से कालाबाजारी कर सकेंगे। तीसरे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग वाले कानून द्वारा खेती पर से किसानों का नियंत्रण पूरी तरह समाप्त हो जाएगा और अंततः वह अपने जमीन को बेचने को विवश हो जाएंगे। लालुचक नाथनगर के सुनील कुमार मण्डल ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि आज के दौर में खेती घाटे का सौदा बन गया है। इसमें मजदूरी भी मुश्किल से निकल पाता है। लेकिन किसान खेती से इसलिये जुड़े है कि उन्हें खेती और फसल से आत्मिक जुड़ाव होता है। हमारे पर्व त्योहार से लेकर शादी श्राद्ध सब इससे जुड़े होते हैं। किसान फसल व खेत को अपने सन्तान के तरह मानते हैं। किसानों ने इसे कभी बाज़ारीकरण के रूप से नहीं देख पाया परन्तु न्यूनतम समर्थन मूल्य के टेढ़ी व्यवस्था ने किसानों के साथ जीवन संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है। सभी फसलों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी किसानी की संस्कृति को बचाने केलिये बहुत जरूरी है। खरीक के शशि भूषण दास का कहना था कि गांव और खेती दोनों को बचाने के लिये किसानों के असली समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है। किसानों के लिये बनी सरकारी योजनाओं में पग पग पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। एक तरफ सभी सरकारी सम्पत्तियों को कम्पनियों को बेचा जा रहा है। प्राइवेट कम्पनियों के द्वारा ठेकेदारी वाली खेती अगर आएगा तो किसानों की जमीन उसी प्रकार छिनने लगेगी जैसे अंग्रेजो के गुलामी के दौर में जमींदारों के माध्यम से जमीन नीलाम होकर हड़प लिया जाता है। छोटे किसानों की स्थिति और खराब हो जाएगी। आज जरूरत है कि उचित दाम की गारंटी के साथ साथ खेती को बड़ी कम्पनियों से दूर रखा जाए तथा सरकारी योजनाओं के भ्रष्टाचार को दूर किया जाए। गोराडीह के जयनारायण ने कहा कि किसान की आमदनी बढ़ाने के लिए उनके अंदर जागरूकता की बहुत आवश्यकता है। साथ ही साथ उन्हें संगठित होकर जाति धर्म से ऊपर उठकर अपने किसानी को बचाने केलिये संघर्ष करने की आवश्यकता है। कंपनियों के आने से किसानों की किसानी और आज़ादी पर खतरे होंगे। अठगामा खरीक के किसान रंजीत कुमार मण्डल ने कहा कि खेती और पशुपालन दोनों को साथ रखकर सोचने की जरूरत है कि फसल पैदा करने वाले और दूध उत्पादन करने वाले लोग गरीब हो जाते हैं और आटा, चावल और मिठाई बेचने वाले अमीर हो जाते है। सरकार चाहती है कम्पनी वाले के मन मुताबिक खेती हो जिससे किसानों के जमीन भी बिक जाए और किसान सड़क पर आकर भीख मांगने पर मजबूर हो जाए। इस मौके पर सार्थक भरत, राहुल, मनोज कुमार, लाडली राज, ललन, अभिषेक कुमार आदि मौजूद थे।
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