ग्राम समाचार न्यूज : रेवाड़ी : महिलाओं की सुरक्षा का विषय एक बार फिर हमें फिर झकझोर कर न सिर्फ सोचने पर मजबूर बल्कि शर्मसार भी कर रहा है| जिस अपराध से हमारे मानव सभ्यता को सबसे पहले दामन छुड़ा लेना चाहिए था उसी अपराध को हमारे बीच कई लोग ऐसे अंजाम देते हैं कि इंसानियत पर भी शक होने लगता है| हाथरस में 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ हुई हैवानियत में ने केवल समाज की जीभ काटने की चेष्टा हुई है, बल्कि रीढ़ को भी तोड़ कर साफ संकेत दे दिया गया है। समाज को सबक लेना चाहिए, अब न केवल नई जीभ, बल्कि नई रीढ़ के साथ समाज को सामने आकर मुकाबला करना होगा। यह घिनौनी हैवानियत दिनों दिन बढ़ती जा रही है। हाथरस के बाद बलरामपुर, आजमगढ़, बुलंदशहर, बारा इत्यादि में भी मानवता शर्मसार हुई है। इस देश के सजग और विधि- प्रिय नागरिक जितने विचलित हैं, क्या हमारी व्यवस्थाएं भी उतनी ही चिंतित हैं? शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा, जहां ऐसी घटनाओं पर पुलिस लीपापोती करने की कोशिश न करती हो। उत्तर प्रदेश में अगर इंकार की मुद्रा है, तो राजस्थान में भी वही ढर्रा है। व्यवस्था की टालमटोल, लापरवाही, उदासीनता का ही नतीजा है कि निर्भया के समय के बाद भी भारतीय समाज में बलात्कार की घटनाएं बढ़ती चली जा रही है। निर्भया के समय देश में भावना में उबाल आया था और ऐसा लगा कि हम सुधार की दिशा में बढ़ेंगे। अब आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 वर्ष में महिलाओं के शोषण की आशंका में बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं के सम्मान या पूजा के बारे में किसी भी धर्म की कथनी पर जाने की बजाय हमें केवल करनी की चिंता करनी चाहिए। बड़ी-बड़ी बातों का समय बीत चुका है, अब बड़ी कार्रवाई का समय है, आज यौन अपराधों और यौन हिंसा को पूरी गंभीरता से संज्ञान में लेने की जरूरत है। काश हमारे हमारे राजनीतिक दल इस मुद्दे पर पूरी इमानदारी से ध्यान देते, तो देश में बलात्कार के मामले कम से कम हो रहे होते। निर्भया के समय जो कानून बने थे, कानून में सुधार हुए थे, उन्हें लोग भूल चुके हैं, तो कि हमारी व्यवस्था भूल चुकी है? यह एक ऐसा अपराध है, जो अपने उपचार में पूरी संवेदना की मांग करता है। जहां पूरी व्यवस्था को अपनी पूरी ममता और मरहम के साथ पीड़िता के पक्ष में खड़ा होना चाहिए, वही उत्पीड़क के प्रति दया की गुंजाइश न के बराबर होनी चाहिए सामाजिक, धार्मिक, संविधानिक आधार पर कोई तक ऐसा नहीं, जिससे किसी बलात्कारी को किसी आड में पल भर के लिए भी बचाया जा सके। समाज में गुस्सा आज फिर चरम पर है, यह इशारा है कि कानून व्यवस्था से लोग संतुष्ट नहीं है। आज फिर गांधी जी के सत्य, प्रेम, अहिंसा और शास्त्री जी की दृढ़ता को याद कर आगे बढ़ने की जरूरत है। तंत्र को पूरी कड़ाई से अपने व्यवहार को परखना होगा और राजनेताओं को अपने दायरे में समदर्शी भाव रखना होगा। कानून-व्यवस्था के मामले में कम से कम परखना राजनीति हो और सभी राजनीतिक दल अपने-अपने राज्य में ऐसे अपराधों को काबू में करने के हर संभव प्रयास करें, तो इससे बढ़कर आज कोई दूसरी राष्ट्र सेवा नहीं होगी।
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Rewari News : महिलाओं की सुरक्षा का विषय एक बार फिर हमें झकझोर रहा : धर्मेंद्र बैरियावास
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