GoddaNews: कुड़मी को अजजा सूची में नहीं रख गैर अनुसूचित बनाने का निर्णय अन्यायपूर्ण- संजिव महतो

 



ग्राम समाचार गोड्डा ब्यूरो रिपोर्ट:-  प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी कुड़मि, समाज के लोगों ने 6 सितम्बर को काला पट्टी बैच आदि लगाकर अनुसूचित जनजाति की सूची में अबतक शामिल ना करने के कारण सरकार के प्रति विरोध जताया। रंगमटिया गोड्डा में अखिल भारतीय आदिवासी कुड़मि महासभा के बैनर तले संगठन के संस्थापक सदस्य संजीव कुमार महतो एवं अन्य सदस्यों ने काला बैच पट्टी बांधा।

उपरोक्त आशय की जानकारी प्रेस प्रतिनिधियों को देते हुए संजीव कुमार महतो ने बताया कि 6 सितंबर "अन्याय दिवस " है सभी गैर सूचीबद्ध/अनुसूचित 'जनजातियों' के लिए। क्योंकि 6 सितंबर 1950 को महामहिम राष्ट्रपति के विनिर्देश से संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति की सूची अस्तित्व मेंं आई। इस अनुसूचित जनजाति की सूची में कुड़मि समेत देश के कई जनजातियों को बेवजह शामिल ना किया गया परिणाम स्वरुप में गैर अनुसूचित या गैरसरकारी जनजाति बन कर रह गए।

इस गड़बड़ी के सुधार हेतू 18 दिसंबर 1950 को सांसद पंडित ह्रदय नाथ कुंजरू ने अनुसूचित जनजाति सूची से असंतुष्टि के संबंध मेंं 'भारतीय आदम जाति सेवक संघ' द्वारा तैयार किया गया एक मेमोरेंडम अन्य 15 सांसदों से हस्ताक्षरित करवाकर माननीय प्रधानमंत्री के पास भेजा। पत्र का जवाब देते हुए भारतीय गृह मंत्रालय ने एक मेमोरेंडम, संख्या - 26/12/50-RG, दिनांक - 13 फरवरी 1951 को जारी किया, जिसमें अनुसूचित जनजाति सूची मेंं शामिल होने से छूट गये जनजाति समुदायों के संबंध मेंं कहा गया, कि "1931 मेंं जो जनजाति समुदाय 'प्रिमिटिव ट्राइब्स' की सूची मेंं शामिल थे, उन्हें 'अनुसूचित जनजाति' की सूची मेंं सूचीबद्ध किया गया है। जो जनजाति इस सूची मेंं स्थान पाने से छूट गये हैं, उन्हें सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा अनुशंसा कर वापस शामिल किया जा सकता है।"

पूरे भारतवर्ष में कई जनजाति समुदायों के साथ छोटानागपुर पठार के नोटिफाइड कुड़मि जनजाति को भी बिना किसी नोटिफिकेशन के 1950 की अनुसूचित जनजाति सूची मेंं शामिल करने से छोड़ दिया गया। इसके बाद भी भारत सरकार के आदेशानुसार उन छूटे जनजातियों को खुद से खोजकर वापस शामिल करने का जिम्मा राज्य सरकारों का था, जो शायद ईमानदारीपूर्वक नहीं निभाया गया, क्योंकि ट्राइब जिन्हें बैकवर्ड कहा जाता है, वो खुद सामने आने की परिस्थिति में नहीं थे। जब तक उन्हें समझ में आया और सूची में शामिल करने की मांग उठने लगी, तब तक कालेलकर समिति (1955-56), लोकूर समिति (1965) और चंदा समिति (1967) के माध्यम से एसटी-एससी एमेंडमेंट एक्ट 1976 के द्वारा सूची में शामिल होने के लिए पाँच मापदंड रख दिया गया। 1999 में शामिल होने के प्रक्रिया को भी आरजीआइ, एनसीएसटी, सीटीएम और पार्लियामेंट के अंतर्गत और भी लेन्दी बना दिया गया। इस वजह से उन सभी जनजाति समुदाय के लोग वर्षों से अपने वाजिब अधिकारों और मूल पहचान से वंचित होते आ रहे हैं, जिन्हें अब तक सूची में शामिल नहीं किया गया। इस अन्यायपूर्ण निर्णय का एक प्रमुख भुक्तभोगी जनजातीय समुदाय "कुड़मि" जनजाति ने इस दौरान पिछले 70 सालों में जो खोया है, उसकी भरपाई कैसे होगा ! कौन करेगा इसकी भरपाई ? कुड़मि जनजाति के साथ हुए इस "अन्याय" का हिसाब कौन देगा?

आज के कार्यक्रम में कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए सीमित सदस्यों ने भाग लिया । भाग लेने वालों में संजीव कुमार महतो , विवेक महतो, चंदन कुमार महतो, बजरंग, पंकज, लखन आदि प्रमुख रहे।

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Editor - भुपेन्द्र कुमार चौबे

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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