GoddaNews: पीएमसीएच धनबाद का नाम शहीद निर्मल महतो चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल किया जाना स्वागत योग्य- संजिव महतो

 *झारखंड के इतिहास में रणधीर वर्मा एसपी नहीं बल्कि जनरल डायर की भूमिका में- संजीव कुमार महतो*


ग्राम समाचार गोड्डा, ब्यूरो रिपोर्ट:-  पीएमसीएच धनबाद का नामकरण शहीद निर्मल महतो चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल ,धनबाद किये जाने के विरोध में धनबाद सांसद पीएन सिंह और विधायक राज सिन्हा द्वारा ये कहना कि शहीद निर्मल महतो ने धनबाद के लिए कुछ नहीं किया और पीएमसीएच का नामकरण शहीद निर्मल महतो के नाम पर ना कर रणधीर वर्मा के नाम होना चाहिए, ये बिल्कुल झारखंड विरोधी मानसिकता का परिचायक है। माननीय लोगों को झारखंड का इतिहास पता नहीं है या झारखंड को ग़लत चीज थोपना चाहते हैं।

      उक्त बातें प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आजसू के केंद्रीय सचिव व अखिल भारतीय आदिवासी कुड़मि महासभा के संस्थापक सदस्य संजीव कुमार महतो ने कही|कहा कि शहीद निर्मल महतो सिर्फ धनबाद ही नहीं पूरे बृहद झारखंड के लोकप्रिय झारखंड आंदोलनकारी रहे हैं और झारखंड अलग राज्य आंदोलन में इनका सर्वोच्च योगदान रहा है। शहीद निर्मल महतो झारखंड आंदोलनकारी एवं झामुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष और आजसू के संस्थापक थे । झामुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष काल में उनकी हत्या झारखंड विरोधी असमाजिक लोगों द्वारा कर दिया गया। आज पूरा झारखंड मानता है कि अलग राज्य शहीद निर्मल महतो की शहादत की देन है। झारखंडी आवाम शहीद निर्मल महतो के योगदान का अनंत काल तक ऋणी है। एक पीएमसीएच का नामकरण तो निर्मल दा को श्रद्धांजलि देने का मात्र एक अल्प प्रायास मात्र है।

          ऐसे में विधायक राज सिन्हा जिस आई पी एस अधिकारी रणधीर वर्मा के नाम की सिफारिश कर रहे हैं । विधायक जी पहले पता करें कि रणधीर वर्मा जी ने पुलिस अधीक्षक रहते हुए किस तरह से झारखंड आंदोलन को कुचलने का काम किया था। रणधीर वर्मा का तो नाम बदलकर जनरल डायर भी कर दिया जाय तो कम होगा क्योंकि इन्होंने अपने कार्यकाल में कोल्हान क्षेत्र के चायबासा एसपी कार्याकाल में अंग्रेज अफसर जनरल डायर से भी ज्यादा गोली काण्ड करवाया। पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो द्वारा लिखित पुस्तक "झारखंड की समरगाथा" के पृष्ठ संख्या 400 से 411 तक के अनुसार वाईपी गोलिकांड 24 नवंबर 1980 , कुईड़ा पुलिस फायरिंग 26 नवंबर 1981, कुम्बिया पुलिस फायरिंग 5 नवंबर 1981, जोजोहातू पुलिस फायरिंग 14 नवंबर 1981, सारजोम हातु गोली कांड 25 नवंबर 1981, स्वर्णरेखा/खड़कई के विस्थापितों के लिए संघर्षरत गंगाराम कालुंडिया राष्ट्रपति पदक प्राप्त रिटायर सैनिक पर पुलिस फायरिंग 4 अप्रैल 1982 , तिरुल डीह पुलिस फायरिंग 21 अक्टूबर 1982, टोंटो गोली काण्ड 22 मई 1982, 1 जुन 1983 को गुआ बाजार में पुलिस जीप से बीदर नाग को घसीट घसीट कर हत्या यानि कुल मिलाकर देखा जाय तो एस पी आम झारखंडी और झारखंड आंदोलन का प्रबल विरोधी रहे हैं। इनकी गतिविधियों से साफ दिखता है कि ये झारखंड आंदोलन और झारखंडियों को तहस नहस करने का काम भरपूर किये हैं और आमजन का आवाज गोली बंदुक के दम पर दबाने में अपने पद और पावर का इस्तेमाल किया है।      

 शहीद निर्मल दा जैसे पवित्र इंसान से इसकी तुलना भी करना निर्मल दा की पवित्रता को दूषित करने के समान है।अगर झारखंड आंदोलन के इतिहास को देखा जाय तो ये सबसे क्रुर पुलिस अधिकारी रहे हैं इन्होंने चाईबासा एसपी रहते हुए पुलिस द्वारा झारखंडियों पर गोलियां चलाने की खुली छूट दे रखी थी। ये बिल्कुल झारखंड विरोधी मानसिकता के थे। सांसद पी एन सिंह और राज सिन्हा झारखंड के इतिहास और दर्द से खुद को जोड़िये । गैर झारखंडी होते हुए भी आप दोनों को झारखंड ने विधायक और सांसद स्वीकारा है, इस नाते झारखंड के भावना और हमारे महापुरुषों का थोड़ा सा ख्याल तो रखना चाहिए । कुछ नहीं तो कम से कम झारखंड के शीर्षस्थ महापुरुषों के काम पर प्रश्नचिन्ह ना लगाकर वो जिस सम्मान के हकदार हैं वो दें।

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Editor - भुपेन्द्र कुमार चौबे

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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