भागलपुर के जेएलएनएमसीएच में जल्द ही प्लाज्मा थेरेपी से शुरू होगा कोरोना मरीजों का इलाज, प्लाज्मा थेरेपी एक ट्रायल थेरेपी है, न कि स्थापित थेरेपी – डॉ सत्येन्द्र

ग्राम समाचार, भागलपुर। भागलपुर के कोरोना मरीजों के लिए अच्छी खबर यह है कि यहां के जेएलएनएमसीएच में जल्द ही प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना मरीजों का इलाज शुरू हो जाएगा। इसके लिए जिलाधिकारी ने डॉ. विनय कुमार गुप्ता प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष मेडिसिन विभाग के नेतृत्व में चार सदस्यीय टीम का गठन कर दिया है। गठित टीम में डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष पैथोलॉजी विभाग, डॉ रेखा झा चिकित्सा पदाधिकारी एवं आईसी ब्लड बैंक और डॉक्टर पीबी मिश्रा सीनियर रेजिडेंट मेडिसिन विभाग को शामिल किया गया है। यह टीम आईसीएमआर के द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देश के आलोक में प्लाज्माथेरेपी पर काम करेंगे। इस टीम में शामिल डॉ सत्येन्द्र कुमार ने न केवल कोरोना को मात दिया बल्कि आज कोरोना पीड़ितों के सेवा में लगे हुए हैं। प्लाज्माथेरेपी को लेकर उन्होंने बताया कि जिस व्यक्ति को कोरोना का संक्रमण होता है तो उसके शरीर का प्रतिरोधक क्षमता सक्रिय हो जाता है। उक्त वायरस से लड़ने के लिए एक एंटीबाडी बनाता है। जो उक्त वायरस को शरीर मे उसके द्वारा फ़ैलाये गए हानिकारक तत्व को मारने में या बाहर निकलने में मदद करता है। चूँकि 80 फीसदी लोग बिना किसी गंभीर दिक्कत के उक्त बीमारी से स्वतः मुक्त हो जाते हैं। ऐसे रोगियों में एंटीबाडी की मात्रा अधिक बनती है और यह शरीर मे 3 से 6 महीने तक रहती है। इसी कारण किसी भी रोगी को दुबारा संक्रमण नही होता है। जो व्यक्ति डायबिटिक, हाइपरटेंशन, गुर्दा रोग आदि बीमारी से पीड़ित रहते है, उनमे प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कम रहता है। ऐसे व्यक्ति अगर कोरोना से संक्रमित होते है तो उनमें बीमारी गंभीर रूप ले सकता है या ले लेता है। ऐसे व्यक्ति के शरीर मे एंटीबॉडी की मात्रा काफी कम रहती है। अगर ऐसे व्यक्ति को जो कोरोना बीमारी से बिना किसी गम्भीरता के ठीक हुए हों यदि उनका एंटीबाडी निकाल कर गंभीर रोगी के शरीर मे डाल दिया जाय तो वह व्यक्ति जल्दी ठीक हो जाता है। इसी को हम प्लाज्मा थेरेपी के नाम से जानते हैं। डॉ सत्येन्द्र ने बताया कि प्लाज़मा थेरेपी में जिस व्यक्ति को एंटीबाडी देना है और जिनके शरीर से निकालना है उन दोनों का ब्लड ग्रुप एक होना चाहिए। डोनर के शरीर मे एंटीबाडी की मात्रा 1:1024 से लेकर 1:540 तक होना जरूरी है। हालांकि आईसीएमआर ने यह बाध्यता समाप्त कर दी है कि डोनर 4 सप्ताह पहले रोगमुक्त हो गए हों। डोनर का उम्र 20 से 50 के बीच हो। अन्य बीमारी से मुक्त हों। डोनर स्वेच्छा से ही अपना प्लाज़मा दान कर सकते हैं। उस पर किसी तरह का दबाव न हो। डॉ सत्येन्द्र ने बताया कि आईसीएमआर द्वारा अनुशंसित जगह पर ही यह प्लाज्मा दान किया जा सकता है। उक्त जगह पर एक पैथोलोजिस्ट जो एमडी डिग्री के साथ एक साल का ट्रांसफ्यूजन का अनुभव रखता हो। प्लाज्मा बैंक में एक प्लाज्मा सेपरेटर मशीन होना चाहिए। एक फ्रिज जिसमे तापमान -40 से -80 डिग्री सेंटीग्रेड करने की क्षमता हो, उसका होना जरूरी है। डॉ सत्येन्द्र ने बताया कि सरकार भागलपुर के साथ साथ पीएमसीएच, डीएमसीएच और एसकेएमसीएच में इसे चालू करने का प्लान कर रही है। अब स्थानीय प्रशासन कितना कर पाती है, उस पर निर्भर करता है। जहां तक भागलपुर की बात है तो भागलपुर के पास सारी अहर्ता है। उन्होंने बताया कि अभी तत्काल बिहार के सिर्फ एम्स पटना में यह सुविधा है। डोनर को पटना एम्स जाकर अपना प्लाज्मा दान करना पड़ रहा है।
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Editor - Bijay shankar

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