Editorials : बाधित न हो स्कूली शिक्षा




ग्रामीण इलाकों के सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध कराना संभव नहीं है. प्रथम का काम सामुदायिक स्तर पर, खास कर प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में केंद्रित है. जहां तक ऑनलाइन शिक्षा की बात है, तो सबसे पहले शिक्षक और छात्र को डिजिटल तकनीक के माध्यम से जोड़ना आवश्यक है. शिक्षण की यह व्यवस्था दूर से बैठ कर संचालित की जाती है, इसलिए कई तरह की चुनौतियां भी हैं. असल समस्या ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए है, क्योंकि मूलभूत समस्या तकनीकी शिक्षा और इंटरनेट का विस्तार नहीं होना है.


अब सवाल उठता है कि अभी स्कूल बंद चल रहे हैं, तो ऐसे में क्या किया जाए? किस तरह के विकल्पों को आजमाया जाए? खासकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश की समस्या को ध्यान में रखते हुए हम लोग दो-तीन बातों पर काम कर रहे हैं.


जिनके पास इंटरनेट और लैपटॉप आदि की सुविधा है, वे ऑनलाइन जुड़ सकते हैं. साथ ही बच्चे ऐसे स्कूल में पढ़ते हों, जहां वे तकनीकी शिक्षा के साथ सहजता महसूस करते हों, लेकिन हम ग्रामीण स्कूलों के साथ और सामुदायिक स्तर पर काम करते हैं. बच्चों के समूह और छोटे बच्चों की माताओं के समूह से हम संपर्क में रहते हैं. पिछले तीन महीने से फोन के माध्यम से हमने उनसे संपर्क किया है.

एक बात स्पष्ट है कि स्मार्टफोन की सुविधा बहुत कम लोगों के पास है, लेकिन सामान्य फोन ज्यादातर लोगों के पास उपलब्ध है. हम रोजाना बहुत बड़े पैमाने पर एसएमएस भेज रहे हैं. एसएमएस द्वारा उनको गतिविधियां भेजते हैं, जैसे आपके घर में पानी कितना इस्तेमाल होता है? नहाने के लिए, पीने और खाना बनाने के लिए कितना पानी खर्च होता है? आप बाल्टी से अनुमान लगाइए. एसएमएस पर अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है. कई लोग फोन भी करते हैं. उनके तमाम तरह के सवाल होते हैं.

हफ्ते में एक दिन गतिविधि पर चर्चा होती है और उनसे सुझाव भी लिये जाते हैं. इस प्रकार दोतरफा संवाद से हमने बहुत कुछ सीखा है. हमें यह पता चलता है कि अभिभावक क्या सोच रहे हैं? ये सब हमें फोन के माध्यम से बातचीत से समझ में आता है. उसी के अनुसार हम फिर एसएमएस भेजते हैं. इस प्रकार यह एक स्तर हुआ. हम पूरे देश में 12000 गांवों से एसएमएस के माध्यम से ग्रामीण बच्चों से जुड़े हैं. यह हमने कोविड के दौरान प्रयोग किया है. इसके बाद भी हम अभिभावकों से इस प्रकार के संवाद को जारी रखेंगे. स्कूलों को भी संपर्क करना चाहिए. इसमें स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं हो रहा है, बल्कि पुरानी और सुलभ तकनीक से संपर्क हो रहा है.

हमने कई राज्यों में, जैसे अभी महाराष्ट्र में वहां की सरकार के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया है. यह उत्तर प्रदेश में भी शुरू हो रहा है. वहां रेडियो के माध्यम से हफ्ते में दो या तीन बार आधे घंटे का कार्यक्रम होता है. उस रेडियो प्रोग्राम में एसएमएस पर हुई चर्चा के बारे में विस्तार से बताया जाता है, ताकि लोगों को उसका एक सहारा रेडियो से भी मिले. हमें यह सोचने की जरूरत है कि अभी के हालात में जो टेक्नोलॉजी उपलब्ध है, उससे क्या-क्या किया जा सकता है?

यह कोशिश सरकारी और संस्था के स्तर पर भी हो रही है. महाराष्ट्र में नागपुर डिवीजन के छह जिलों में यह काम चल रहा है. वहां कई ऐसी पंचायतें हैं, जहां पर रेडियो प्रोग्राम लाउडस्पीकर से चलाये जा रहे हैं. इससे गांवों में लोगों की प्रतिभागिता बढ़ी है. ये कुछ उदाहरण हैं कि विषम हालात में मौजूद संसाधनों के इस्तेमाल से कुछ किया जा सकता है. इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ेगी, लोगों के पास लैपटॉप आदि की सुविधा होगी, तो और कोशिशें की जा सकेंगी.

सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या सीमित होती है. ऐसे में अगर शिक्षक फोन के माध्यम से जुड़ते हैं, तो कुछ काम हो सकता है. इससे बच्चों और अभिभावकों को भी शिक्षक से जुड़ाव महसूस होगा. संवाद का यह एक माध्यम है, जिससे यह महसूस होगा कि शिक्षक व्यक्तिगत तौर पर बच्चे को जानते हैं.

सच है कि यह ठोस विकल्प नहीं है, लेकिन एक तरीका हो सकता है, जिससे शिक्षक बच्चों से जुड़ सकते हैं. हम बिरयानी नहीं खा सकते हैं, तो कम से कम खिचड़ी बना कर तो खा सकते हैं. हम अभिभावक तक पहुंच गये हैं. मुझे लगता है कि स्कूल खुलने के बाद भी यह तरीका चलना चाहिए. अनपढ़ अभिभावक भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं, क्योंकि उनको लगता है कि बच्चे के प्रति उनकी भी जिम्मेदारी है.

अगर बच्चों के शिक्षक आपके घर पर फोन करें, तो निश्चित ही यह एक अच्छा अनुभव होगा. इस तरह के संपर्क को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. हमें यह देखना चाहिए कि अभी जो ऑनलाइन एजुकेशन का ट्रेंड चल रहा है, वह कितना प्रभावी साबित हो रहा है. जो स्कूल या कॉलेज ऑनलाइन टीचिंग की सुविधा दे रहे हैं, उसका रिजल्ट कैसा है, बच्चों को कितनी सहूलियत मिल रही है. इसका भी अध्ययन करना बहुत जरूरी है. जो अच्छाइयां हैं, उसे आगे लेकर चला जाये, जो कमियां हैं उसे दूर किया जाये.

(बातचीत पर आधारित)

सौजन्य : प्रभात खबर 


Share on Google Plus

Editor - MOHIT KUMAR

ग्राम समाचार से आप सीधे जुड़ सकते हैं-
Whatsaap Number -8800256688
E-mail - gramsamachar@gmail.com

* ग्राम समाचार से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें

* ग्राम समाचार के "खबर से असर तक" के राष्ट्र निर्माण अभियान में सहयोग करें। ग्राम समाचार एक गैर-लाभकारी संगठन है, हमारी पत्रकारिता को सरकार और कॉरपोरेट दबाव से मुक्त रखने के लिए आर्थिक मदद करें।
- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें